RJD
HAM(S)
Nota
NOTA
IND
BSP
JSP
IND
IND
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VINDP
Tikari Vidhan Sabha Chunav Result: Ajay Kumar ने टिकारी विधानसभा सीट पर लहराया परचम
Bihar Assembly Election Results 2025 Live: दिग्गज कैंडिडेट्स के क्या हैं हाल?
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टिकारी, जिसे टेकारी भी कहा जाता है, बिहार के गया जिले का एक अनुमंडल स्तरीय नगर है. कभी यह क्षेत्र टेकारी राज का प्रमुख केंद्र हुआ करता था, जो मुगल और ब्रिटिश शासन के दौरान अपने चरम पर था. गया, बोधगया और नवादा के नजदीक स्थित यह ऐतिहासिक नगर आज भले ही अपनी पूर्व गरिमा से दूर हो, लेकिन इसका इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है.
टेकारी राज लगभग 250 वर्षों (1709–1958) तक अस्तित्व में रहा. यह कोई स्वतंत्र राज्य नहीं था, बल्कि एक जमींदारी रियासत थी, जो 7,500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले 2,046 गांवों पर शासन करती थी. वर्तमान गया से लगभग 15 किलोमीटर पश्चिम में स्थित यह क्षेत्र मोरहर और जमुना दो नदियों के बीच बसा हुआ था.
टेकारी राजवंश के वंशज आज बहुत कम बचे हैं, लेकिन इस परिवार की उत्पत्ति गौरवपूर्ण नहीं थी. जब मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था, तब टेकारी के जमींदार धीर सिंह ने इस क्षेत्र में विद्रोहों को दबाने में अहम भूमिका निभाई. इसके बदले में 13वें मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने उन्हें 'राजा' की उपाधि प्रदान की. इस परिवार ने पहले मराठों के खिलाफ मुगलों का साथ दिया और फिर अवसरवादी नीति अपनाते हुए अपने जमींदारी हितों की रक्षा के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी का समर्थन किया. इसके पुरस्कारस्वरूप उन्हें 'महाराजा' की उपाधि मिली. इस परिवार की संपत्ति अपार थी. वे कंपनी को वार्षिक ₹3 लाख चुकाते थे, जबकि अपनी जमींदारी से ₹6 लाख की वसूली करते थे. स्वतंत्रता के बाद जमींदारी प्रथा के समाप्त होने से इस परिवार में हिंसक विवाद शुरू हो गए, जो रक्तपात और राजवंश के पतन में बदल गए.
वर्तमान में टिकारी का स्वरूप उसके ऐतिहासिक वैभव से बिल्कुल भिन्न है. 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की साक्षरता दर मात्र 56.66 प्रतिशत है और जनसंख्या घनत्व 1,099 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है. 147 गांवों में फैले इस क्षेत्र में 239,187 लोग 36,949 घरों में निवास करते हैं, यानी औसतन प्रति परिवार लगभग 6.5 सदस्य.
टिकारी, औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली छह विधानसभा सीटों में से एक है. लेकिन जैसे टिकारी राज की विरासत धीरे-धीरे फीकी पड़ी, वैसे ही 2010 से पहले के चुनावी रिकॉर्ड भी लगभग अनुपलब्ध हैं. 2010 से अनिल कुमार इस क्षेत्र में एक प्रमुख राजनीतिक चेहरा बनकर उभरे हैं. उन्होंने पहली बार 2010 में जदयू के टिकट पर जीत दर्ज की. 2015 में टिकट न मिलने पर उन्होंने पार्टी बदलकर हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) का दामन थामा, लेकिन चुनाव हार गए. 2020 में हम ने एनडीए के साथ मिलकर टिकरी से चुनाव लड़ा, जिसमें जदयू और बीजेपी के समर्थन से अनिल कुमार ने 2,630 वोटों के मामूली अंतर से जीत दर्ज की. यह मुकाबला इसलिए भी कड़ा हो गया था क्योंकि एनडीए से अलग होकर लोजपा ने 16,000 से अधिक वोट ले लिए थे. 2025 में सीट को बनाए रखना एनडीए के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर तब जब 2024 के लोकसभा चुनावों में आरजेडी ने औरंगाबाद सीट जीतकर टीकरी विधानसभा क्षेत्र में 9,242 वोटों की बढ़त हासिल की.
हालांकि टिकारी एक सामान्य सीट है, यहां अनुसूचित जातियों की आबादी 23.88 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता 5.9 प्रतिशत हैं. केवल 4.62 प्रतिशत मतदाता शहरी क्षेत्र से आते हैं, जिससे यह क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण प्रकृति का है.
2020 के विधानसभा चुनावों में टीकरी में 3,10,262 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से 60.25 प्रतिशत ने मतदान किया. 2024 के लोकसभा चुनावों तक यह संख्या बढ़कर 3,18,059 हो गई.
(अजय झा)
Sumant Kumar
INC
Kamlesh Shrma
LJP
Sheo Bachan Yadav
BSP
Ravis Kumar Raj
BJKD(D)
Ajay Yadav
JAP(L)
Punam Kumari
SSD
Santosh Kumar
AJPR
Ramachndra Ajad
AHFB(K)
Ranjan Radharj
IND
Jitendra Mishra
PBP
Nota
NOTA
Raushan Kumar Singh
IND
Ashok Kumar
IND
Abita Devi
RJLP(S)
Dilip Kumar
RSJP
Shivnarayan Mishra
RPI(A)
Abhishek Singh
SPKP
Prasun Kumar
BLCP
Janardan Sharma
PMP
Kundan Kumar
PPI(D)
Hardeo Yadav
LTSP
Gopal Kumar
BLNP
Kishor Kumar
IND
Lalti Devi
IND
Chandan Kumar
BBMP
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार कर रहे माननीयों को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. गया और कैमूर जिले में बीजेपी के वीरेंद्र सिंह और संगीता कुमारी के साथ-साथ हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के विधायक अनिल कुमार से जनता ने उनके पांच साल के काम का हिसाब मांगा.
बिहार विधानसभा चुनाव में नेताओं को जनता के तीखे सवालों और गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. गया के टिकारी और वजीरगंज के साथ-साथ कैमूर के मोहनिया में जब मौजूदा विधायक वोट मांगने पहुंचे, तो मतदाताओं ने उन्हें घेर लिया और पिछले पांच साल के काम का हिसाब मांगा. टिकारी में जीतन राम मांझी की पार्टी विधायक अनिल कुमार को घेर लिया.
बिहार के गया जिले में सत्तापक्ष के प्रत्याशी और वर्तमान विधायक वोट मांगने गए लेकिन जनता ने उनकी बात नहीं सुनी और विरोध किया. वजीरगंज के बीजेपी विधायक वीरेंद्र सिंह को इतना विरोध सहना पड़ा कि उन्हें गाँव छोड़ना पड़ा.