JD(U)
RJD
JSP
Nota
NOTA
ASP(K)
IND
BSP
SUCI
Bihar Election Result 2025 Live: अस्थावां विधानसभा सीट पर JD(U) को दोबारा मिली जीत
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अस्थावां, बिहार के नालंदा जिले का एक प्रखंड है, जो जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से लगभग 11 किलोमीटर पूर्व में स्थित है. ऐतिहासिक नालंदा नगर भी अस्थावां से 11 किलोमीटर पूर्व, पावापुरी 20 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर लगभग 35 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं. राज्य की राजधानी पटना यहां से लगभग 90 किलोमीटर दूर है. अस्थावां के निकट से फल्गु नदी बहती है और इसका समतल भू-भाग कृषि के लिए अत्यंत उपयुक्त है, जो यहां की मुख्य आजीविका है.
अस्थावां का इतिहास सदियों पुराना है और यह कभी मगध साम्राज्य का हिस्सा रहा है. यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से आसपास के गांवों के लिए स्थानीय व्यापार केंद्र के रूप में कार्य करता रहा है. नालंदा महाविहार (विश्वविद्यालय) की नजदीकी का प्रभाव अस्थावां की संस्कृति और जीवनशैली पर भी पड़ा है. हालांकि, अस्थावां के नामकरण और इतिहास से जुड़े दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं.
अस्थावां विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी और यह नालंदा लोकसभा सीट के सात विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. इसमें अस्थावां, बिंद और सरमेरा प्रखंड शामिल हैं, जबकि बरबीघा प्रखंड का कुछ भाग भी इसमें आता है.
यह क्षेत्र अब तक 18 चुनाव देख चुका है, जिसमें वर्ष 2001 का उपचुनाव भी शामिल है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो नालंदा जिले से ही आते हैं, का राजनीतिक प्रभाव अस्थावां पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. 2001 के बाद से उनकी पार्टी यहां कभी नहीं हारी है समता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) ने इस सीट पर लगातार छह बार जीत दर्ज की है. दिलचस्प बात यह है कि 1985 से 2000 तक लगातार चार बार और कुल पांच बार निर्दलीय उम्मीदवारों ने यहां जीत हासिल की थी. लेकिन जैसे ही नीतीश कुमार 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने, अस्थावां का समर्थन स्थायी रूप से उनके साथ हो गया.
अब तक यहां कांग्रेस ने चार बार, जनता पार्टी ने दो बार, और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने एक बार जीत दर्ज की है. लेकिन राज्य की दो बड़ी पार्टियां- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद)- आज तक अस्थावां में कोई प्रभाव नहीं बना सकी हैं.
अस्थावां पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र है, जिसमें कोई शहरी मतदाता नहीं हैं. 2020 में यहां कुल 2,91,267 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 3,03,479 हो गए. यहां अनुसूचित जाति की आबादी कुल मतदाताओं का 25.19 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिम मतदाता लगभग 5.1 प्रतिशत हैं.
2005 से चुनावी राजनीति में सक्रिय जद(यू) के जितेन्द्र कुमार अब तक अस्थावां से पांच बार जीत चुके हैं. उनके पिता अयोध्या प्रसाद ने भी 1972 और 1980 में कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से जीत दर्ज की थी. 2020 के विधानसभा चुनाव में जितेन्द्र कुमार ने राजद के अनिल कुमार को 11,600 वोटों से हराया. 2015 में उन्होंने लोजपा के छोटेलाल यादव को 10,444 वोटों से और 2010 में लोजपा के कपिलदेव प्रसाद सिंह को 19,570 वोटों से हराया. 2005 में उनकी जीत का अंतर 15,486 था. स्थानीयता, राजनीतिक विरासत और नीतीश कुमार के प्रति निष्ठा- ये तीन प्रमुख कारण हैं जिनकी वजह से उन्हें लगातार समर्थन मिलता रहा है.
2024 के लोकसभा चुनाव में जद(यू) को अस्थावां खंड में 29,454 वोटों की बढ़त मिली, जो पार्टी की पकड़ को और मजबूत करता है. हालांकि जद(यू) की एकतरफा जीतों ने अस्थावां को एक मजबूत गढ़ बना दिया है, लेकिन इसके चलते मतदान प्रतिशत 50% से नीचे बना हुआ है.
2020 में मतदान 49.51%, 2019 के लोकसभा चुनाव में 45.69% और 2015 में 49.24% रहा. इसकी एक प्रमुख वजह मतदाताओं में यह धारणा हो सकती है कि उनका वोट कोई फर्क नहीं डालेगा क्योंकि जद(यू) की जीत तय है. यही उदासीनता राजद नेतृत्व वाले महागठबंधन के लिए एक अवसर हो सकती है. अगर मतदान प्रतिशत बढ़ाया जाए, तो जद(यू) की चुनौती आसान नहीं रहेगी.
(अजय झा)
Anil Kumar
RJD
Ramesh Kumar
LJP
Bipin Kumar
IND
Gauri Kumar
IND
Ajeet Kumar
IND
Uday Shankar Kumar
IND
Sushil Prasad
JD(S)
Chandra Mauli Prasad
IND
Punam Kumari
PP
Anil Kumar
BMF
Balmukund Paswan
IND
Nota
NOTA
Raghunath Ram
RJWP(S)
Ganauri Mochi
BMP
Deoki Paswan
BRD
Rajeev Ranjan
BSLP
Sachindra Kumar
BP(L)
Sujay Kumar
RSMJP
Vinita Kumari
SHS
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
बिहार चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन पर पार्टी के भीतर निराशा है. शशि थरूर ने 'गंभीर आत्मनिरीक्षण' की मांग की, जबकि अन्य नेताओं ने हार का कारण संगठन की कमजोरी, गलत टिकट वितरण और जमीनी हकीकत से कटे कुछ नेताओं को बताया.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटों पर AIMIM ने अपनी मजबूत उपस्थिति को जारी रखा है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बहादुरगंज, कोचा धामन, अमौर और बाबसी जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर जनता ने AIMIM को दोबारा जीत दी है. अमौर सीट पर पार्टी के एकमात्र विधायक अख्तरुल इमान ने सफलता पाई जो जनता के भरोसे और पार्टी संगठन की कड़ी मेहनत का परिणाम है.
बिहार चुनाव में एनडीए की शानदार जीत पर चिराग पासवान ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने बताया कि बिहार के लोगों ने सही समय पर सही फैसला लिया, और डबल इंजन सरकार ने विकास की राह को मजबूत किया. उन्होंने चुनावी रणनीति, गठबंधन की भूमिका और राजनीतिक चुनौतियों पर भी खुलकर बात की.