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Kutumba (SC) Vidhan Sabha Results Live: बिहार की कुटुम्बा (एससी) विधानसभा सीट पर HAM(S) का दबदबा, INC को हराया
Kutumba (SC) Election Results 2025 Live: कुटुम्बा (एससी) सीट पर उलटफेर! INC भारी अंतर से पीछे
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Bihar Assembly Election Results 2025 Live: दिग्गज कैंडिडेट्स के क्या हैं हाल?
Bihar Election Results Live: बिहार चुनाव में राजनीतिक गठबंधनों का प्रदर्शन कैसा है?
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कुटुंबा बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित एक प्रखंड है जो राज्य के दक्षिणी हिस्से में और मगध क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यह एक ऐसा प्रखंड जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है. यह औरंगाबाद शहर से लगभग 24 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है और इसके आसपास के प्रमुख कस्बों में नविनगर, देव, हरिहरगंज, हुसैनाबाद और डेहरी-ऑन-सोन शामिल हैं.
कुटुंबा का इतिहास मगध साम्राज्य से भी पहले का है. शेरशाह सूरी (1486–1545 ई.) के शासनकाल में यह क्षेत्र रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बन गया था. अपने प्रशासनिक सुधारों और ग्रैंड ट्रंक रोड के लिए प्रसिद्ध शेरशाह ने इस क्षेत्र को अपने साम्राज्य के अधीन कर लिया. उनकी मृत्यु के बाद कुटुंबा मुगल साम्राज्य के रोहतास सरकार (जनपद) का हिस्सा बना. आज भी यहां अफगानी वास्तुकला के अवशेष देखे जा सकते हैं.
मुगल साम्राज्य के पतन के बेद कुटुंबा स्थानीय जमींदारों के नियंत्रण में आ गया. इन जमींदारों ने ब्रिटिश शासन का विद्रोह किया. कुटुंबा से जुड़े देव राज परिवार ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. देव के फतेह नारायण सिंह ने 1857 की क्रांति में कुंवर सिंह का समर्थन किया. ब्रिटिश काल में यह क्षेत्र बिहार जनपद के अंतर्गत था और यहां के जमींदार अंग्रेजी नीतियों के विरोध में सक्रिय थे.
जनगणना 2011 के अनुसार, कुटुंबा की जनसंख्या लगभग 2,26,599 थी, और जनघनत्व 890 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था. कुल क्षेत्रफल 255 वर्ग किलोमीटर में फैले इस प्रखंड में 216 गांव हैं, जिनमें से अधिकांश छोटे हैं. 12 गांवों की जनसंख्या 200 से कम थी, जबकि 127 गांवों में 1,000 से कम लोग रहते थे. यहां कुल 34,623 घर हैं.
कुटुंबा की साक्षरता दर 58.35% है, जिसमें पुरुषों की दर 66.56% और महिलाओं की 49.61% है. लिंगानुपात 938 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष है. यहां की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है, जिसमें धान, गेहूं और दालें प्रमुख फसलें हैं.
हालांकि कुटुंबा का ऐतिहासिक महत्व प्राचीन है, पर इसकी राजनीतिक पहचान अपेक्षाकृत नई है. 2008 में इसे औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत एक अलग विधानसभा क्षेत्र घोषित किया गया और 2010 में पहली बार चुनाव हुआ. पहला चुनाव जनता दल (यूनाइटेड) ने जीता, जबकि कांग्रेस ने 2015 और 2020 में जीत दर्ज की.
2025 में यह सीट फिर सुर्खियों में आई जब इसके दो बार के विधायक राजेश कुमार को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
राजेश कुमार ने 2010 में करारी हार का सामना किया था और तीसरे स्थान पर रहे थे. लेकिन जब कुटुंबा सीट 2015 में राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के तहत कांग्रेस को सौंपी गई, तो उन्होंने जोरदार वापसी की. 2015 में उन्होंने 10,098 मतों के अंतर से जीत दर्ज की, जिसे 2020 में बढ़ाकर 16,653 कर दिया. इन दोनों चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के लिए हम (HAM) ने चुनाव लड़ा था.
एनडीए अब राजेश कुमार के प्रभाव को कम करने के लिए नई रणनीति बना रहा है. संभावना है कि वह इस बार किसी अन्य घटक दल को मौका दे. 2024 लोकसभा चुनावों में औरंगाबाद की कुटुंबा सहित छह में से सभी विधानसभा सीटों पर राजद की मजबूती ने एनडीए के लिए राह कठिन कर दी है.
कुटुंबा विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, जो यहां के 29.2% मतदाता हैं. मुस्लिम आबादी लगभग 7.8% है. यह पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र है, जहां 2020 में कुल 2,66,974 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 में बढ़कर 2,77,837 हो गए. 2020 में मतदान प्रतिशत मात्र 52.06% रहा.
एनडीए के लिए सबसे बड़ा कार्य है उन लगभग 48% मतदाताओं को सक्रिय करना, जिन्होंने 2020 में मतदान नहीं किया. यही वर्ग महागठबंधन की पकड़ को कमजोर करने और राजेश कुमार की संभावित हैट्रिक को रोकने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है.
(अजय झा)
Shravan Bhuiya
HAM(S)
Lalam Ram
IND
Sarun Paswan
LJP
Krishna Ram
BSP
Sateyendra Ram
IND
Nota
NOTA
Harikarishna Paswan
BMP
Wikesh Paswan
IND
Ranjeet Sagar
IND
Anil Kumar
JAP(L)
Vikash Kumar Pawan
BHSP
Yugesh Ram
BMF
Shailesh Rahi
AHFB(K)
Nagendra Parsad
IND
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
बिहार चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन पर पार्टी के भीतर निराशा है. शशि थरूर ने 'गंभीर आत्मनिरीक्षण' की मांग की, जबकि अन्य नेताओं ने हार का कारण संगठन की कमजोरी, गलत टिकट वितरण और जमीनी हकीकत से कटे कुछ नेताओं को बताया.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटों पर AIMIM ने अपनी मजबूत उपस्थिति को जारी रखा है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बहादुरगंज, कोचा धामन, अमौर और बाबसी जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर जनता ने AIMIM को दोबारा जीत दी है. अमौर सीट पर पार्टी के एकमात्र विधायक अख्तरुल इमान ने सफलता पाई जो जनता के भरोसे और पार्टी संगठन की कड़ी मेहनत का परिणाम है.
बिहार चुनाव में एनडीए की शानदार जीत पर चिराग पासवान ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने बताया कि बिहार के लोगों ने सही समय पर सही फैसला लिया, और डबल इंजन सरकार ने विकास की राह को मजबूत किया. उन्होंने चुनावी रणनीति, गठबंधन की भूमिका और राजनीतिक चुनौतियों पर भी खुलकर बात की.