JD(U)
RJD
Nota
NOTA
BSP
IND
JSP
IND
IND
IND
IND
JGJP
AHFB(K)
SBKP
Rafiganj Election Results 2025 Live: रफीगंज विधानसभा सीट पर JD(U) ने फहराया परचम, जानें प्रत्याशी Pramod Kumar Singh को मिली कितनी बड़ी जीत
Rafiganj Vidhan Sabha Results Live: बिहार की रफीगंज विधानसभा सीट पर JD(U) का दबदबा, RJD को हराया
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बिहार के औरंगाबाद जिले का दूसरा सबसे बड़ा नगर रफीगंज, 19वीं सदी के जमींदार रफिउद्दीन अहमद के नाम पर बसा. धवा नदी के किनारे स्थित इस बस्ती को उन्होंने अनाज के गोदाम बना कर व्यापारिक केंद्र में तब्दील किया. 1880 के दशक में ईस्ट इंडियन रेलवे लाइन के विस्तार पर रफिउद्दीन ने स्टेशन के लिए जमीन दान दी और अनाज के पहले गोदाम खड़े किए. रेलवे के अभिलेखों में दर्ज “रफी का गंज” 1892 तक “रफीगंज” हो गया. कभी अनाज और अफीम से भरे, आज भी पुराने रेलवे क्वार्टर का गोदाम चुनावी पोस्टरों से पटे मिलते हैं.
क्षेत्र का सांस्कृतिक हृदय 15वीं सदी की पीर बाबा दरगाह है, जहां सभी धर्मों के किसान बारिश के लिए मन्नत के धागे बांधते हैं. यह दरगाह चिश्ती सूफी संत हजरत सैयद शाह मखदूम अली (1390‑1465) को समर्पित है, जो बगदाद से आए और शेरशाह सूरी के बाद सूफी परम्पराओं के जरिए इस्लामी शिक्षा फैलाने वाले अफगान व्यापारियों के दौर में मगध में बस गए. राजनेता भी चुनावी मुहिम की शुरुआत यहीं आशीर्वाद लेकर करते हैं. शेरशाह के ‘गुप्त खजाने’ की किस्सागोई अब ‘रफीगंज की दबे हुए संभावनाओं’ की राजनीतिक उपमा बन गई है.
387.58 वर्ग किमी के इस प्रखण्ड में 2011 जनगणना के अनुसार 3,12,367 लोग और जनघनत्व 806 प्रति वर्ग किमी है. कुल 46,192 घरों में से 5,389 शहरी और 40,803 ग्रामीण हैं. औसत परिवार का आकार 6.76 व्यक्ति है. 216 गांवों में 93 की आबादी 1,000 से कम और 81 की 1,000‑2,000 के बीच है.
1951 में स्थापित रफीगंज विधानसभा क्षेत्र, औरंगाबाद लोकसभा सीट के छह खंडों में एक है. अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने छह बार, RJD और JD(U) ने तीन‑तीन बार (जद(यू) में विलय से पहले समता पार्टी सहित) जीत दर्ज की. तो वहीं जनता पार्टी दो बार तथा स्वतंत्र पार्टी, CPI और भारतीय जन संघ ने एक‑एक बार जीत दर्ज की.
2011 की जनगणना के अनुसार यह सामान्य सीट है, पर अनुसूचित जाति मतदाता 27.1% और मुस्लिम मतदाता 14.3% हैं. क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण वोटर ही हैं, सिर्फ 7.54% शहरी वोटर हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में 3,30,654 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 लोकसभा में बढ़कर 3,39,817 हो गए. 2020 में मात्र 56.08% मतदान हुआ, यानी 43.92% ने भाग नहीं लिया.
2020 में RJD के मोहम्मद निहालुद्दीन ने LJP‑समर्थित निर्दलीय प्रमोद कुमार सिंह को 9,429 वोट से हराया; JD(U) के दो‑बार के पूर्व विधायक अशोक कुमार सिंह आधे मतों पर सिमट गए. 2024 लोकसभा में भी रफीगंज विधानसभा खंड पर RJD ने BJP पर 19,786 वोट की बढ़त बनाई. ये आंकड़े संकेत देते हैं कि 2025 में NDA को रणनीति और शायद उम्मीदवार, दोनों पर पुनर्विचार करना होगा, ताकि मतदाताओं का विश्वास वापस जीता जा सके और RJD की मजबूत पकड़ को चुनौती दी जा सके.
(अजय झा)
Pramod Kumar Singh
IND
Ashok Kumar Singh
JD(U)
Ranjit Kumar
BSP
Manoj Kumar Singh
LJP
Arif Raja
IND
Nota
NOTA
Santosh Kumar
IND
Sandeep Singh Samdarshi
JAP(L)
Raj Kumar
RSSD
Ravi Shankar Kumar
VPI
Ashok Kumar Singh
IND
Vishal Kumar Singh
NCP
Vijay Kumar
JMBP
Arman Khan
BSLP
Ramjee Singh Kanta
AHFB(K)
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
बिहार चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन पर पार्टी के भीतर निराशा है. शशि थरूर ने 'गंभीर आत्मनिरीक्षण' की मांग की, जबकि अन्य नेताओं ने हार का कारण संगठन की कमजोरी, गलत टिकट वितरण और जमीनी हकीकत से कटे कुछ नेताओं को बताया.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटों पर AIMIM ने अपनी मजबूत उपस्थिति को जारी रखा है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बहादुरगंज, कोचा धामन, अमौर और बाबसी जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर जनता ने AIMIM को दोबारा जीत दी है. अमौर सीट पर पार्टी के एकमात्र विधायक अख्तरुल इमान ने सफलता पाई जो जनता के भरोसे और पार्टी संगठन की कड़ी मेहनत का परिणाम है.
बिहार चुनाव में एनडीए की शानदार जीत पर चिराग पासवान ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने बताया कि बिहार के लोगों ने सही समय पर सही फैसला लिया, और डबल इंजन सरकार ने विकास की राह को मजबूत किया. उन्होंने चुनावी रणनीति, गठबंधन की भूमिका और राजनीतिक चुनौतियों पर भी खुलकर बात की.