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Warsaliganj Vidhan Sabha Election Results Live: वारसलीगंज विधानसभा सीट के नतीजे सामने आए, RJD ने BJP को दी शिकस्त
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बिहार के नवादा जिले में स्थित वारिसलीगंज एक ऐसा कस्बा है जिसकी पहचान और इतिहास दोनों ही काफी रोचक हैं. हालांकि इसके नाम की वर्तनी को लेकर कुछ भ्रम है, कहीं इसे "वारसलीगंज" तो कहीं "वारिसलीगंज" लिखा जाता है. लेकिन चुनाव आयोग ने विधानसभा क्षेत्र के रूप में इसे "वारसलीगंज" के नाम से मान्यता दी है.
वारसलीगंज का नाम वारिस अली खान के नाम पर रखा गया था, जो माई खानदान के कमगर खान के भाई थे. माई परिवार मुस्लिम राजपूतों का एक प्रभावशाली वंश था, जो कभी नरहट-समई क्षेत्र पर शासन करता था, जो आज नवादा जिले का हिस्सा है.
इस क्षेत्र का इतिहास बहुत समृद्ध है, लेकिन दुर्भाग्यवश इसे कभी ठीक से दर्ज या संरक्षित नहीं किया गया. यही कारण है कि यहां कई प्राचीन अवशेष तो मिलते हैं, परंतु उनकी जानकारी अधिकतर लोककथाओं और किवदंतियों पर आधारित है.
माफी गांव, जो आज एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल है, कहा जाता है कि द्वापर युग का है और इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है. वहीं दरियापुर पार्वती गांव में कपोतिका बोध बिहार के अवशेष पाए जाते हैं, जहां अवलोकितेश्वर को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है. अप्सरह गांव में राजा आदित्यसेन से जुड़ी ऐतिहासिक धरोहरें मौजूद हैं.
बात करें नारोमुरार गांव की तो यहां राम और शिव को समर्पित 400 साल पुराना ठाकुर वाड़ी मंदिर है और 32 फुट ऊंची हनुमान प्रतिमा भी स्थित है. वहीं मकनपुर गांव में गुप्तकालीन विष्णु प्रतिमाएं आज भी निजी जमीनों पर देखी जा सकती हैं.
वारसलीगंज ब्लॉक स्तरीय कस्बा है, जो मगध क्षेत्र का हिस्सा है और खेती के लिहाज से यह क्षेत्र अत्यंत उपजाऊ माना जाता है. यहां की खेती सकरी नदी और उसकी नहरों से सिंचित होती है.
एक समय पर यह कस्बा चीनी और कपड़ा मिलों के लिए जाना जाता था, लेकिन बिहार में "जंगल राज" के नाम से प्रसिद्ध लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में यहां की अधिकांश इकाइयां बंद हो गईं.
हालांकि अब फिर से विकास की उम्मीदें जगी हैं. अडानी ग्रुप ने यहां 1,400 करोड़ रुपये की लागत से एक सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट लगाने की घोषणा की है. इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा होने और सहायक उद्योगों के आने की संभावना बढ़ी है.
1951 में स्थापित हुआ वारसलीगंज विधानसभा क्षेत्र नवादा लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है. अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में इस सीट ने कई राजनीतिक बदलाव देखे हैं. एक समय पर यह कांग्रेस का गढ़ था, लेकिन अब धीरे-धीरे भाजपा का प्रभाव यहां बढ़ा है.
कांग्रेस ने यहां 7 बार जीत दर्ज की, अंतिम बार 1995 में. सीपीआई ने 3 बार, निर्दलीय उम्मीदवारों ने 2 बार, जनता पार्टी और जेडीयू ने 1-1 बार जीत हासिल की. भाजपा ने 2015 और 2020 में लगातार दो बार जीत दर्ज की.
2024 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने वारसलीगंज सहित नवादा की 6 में से 5 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई. वारसलीगंज में भाजपा ने 14,631 वोटों से बढ़त हासिल की.
वारसलीगंज में अनुसूचित जाति के मतदाता करीब 22.23% हैं जबकि मुस्लिम मतदाता 9.3% हैं. यह क्षेत्र मुख्य रूप से ग्रामीण है, जहां 92.31% आबादी गांवों में रहती है और केवल 7.7% शहरी है.
2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 3,51,015 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से केवल 48.76% (1,71,160) ने वोट डाला. भाजपा की अरुणा देवी ने 62,451 वोट पाकर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस के सतीश कुमार को 53,421 वोट मिले.
2025 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए, यदि कोई अप्रत्याशित घटना न हो तो भाजपा के लिए वारसलीगंज सीट बरकरार रखना संभव नजर आ रहा है. आर्थिक विकास की संभावनाएं, राजनीतिक स्थिरता और मजबूत जमीनी नेटवर्क भाजपा की स्थिति को मजबूत बनाते हैं.
(अजय झा)
Satish Kumar
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Arti Sinha
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Sumit Raj
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Balmiki Prasad
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बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
बिहार चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन पर पार्टी के भीतर निराशा है. शशि थरूर ने 'गंभीर आत्मनिरीक्षण' की मांग की, जबकि अन्य नेताओं ने हार का कारण संगठन की कमजोरी, गलत टिकट वितरण और जमीनी हकीकत से कटे कुछ नेताओं को बताया.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटों पर AIMIM ने अपनी मजबूत उपस्थिति को जारी रखा है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बहादुरगंज, कोचा धामन, अमौर और बाबसी जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर जनता ने AIMIM को दोबारा जीत दी है. अमौर सीट पर पार्टी के एकमात्र विधायक अख्तरुल इमान ने सफलता पाई जो जनता के भरोसे और पार्टी संगठन की कड़ी मेहनत का परिणाम है.
बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के भीतर सीटों पर चल रही खींचतान के बीच दो पर सहमति बन गई है. इस घमासान में राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) प्रमुख दल हैं. RJD किसी भी सीट से पीछे नहीं हटते हुए है कुल 143 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जिसके दबाव में सहयोगी पार्टियों को झुकना पड़ा.