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Bihar Election Result 2025 Live: बांकीपुर विधानसभा सीट पर BJP को दोबारा मिली जीत
Bankipur Assembly Election Result Live: बांकीपुर में RJD पीछे, BJP आगे! जानें वोटों का अंतर कितना
Bihar Election Result 2025 Live: बांकीपुर विधानसभा सीट पर BJP को दोबारा मिली जीत
Bankipur Election Results 2025 Live: बांकीपुर सीट पर उलटफेर! RJD भारी अंतर से पीछे
Bankipur Vidhan Sabha Chunav Result Live: बिहार के पाटलिपुत्र क्षेत्र में पार्टियों/गठबंधनों का प्रदर्शन कैसा है?
Bankipur Chunav Results Live: बांकीपुर सीट पर BJP का वर्चस्व, 37067 वोटों के विशाल अंतर से RJD को पछाड़ा
अधिकांश लोगों के लिए बांकीपुर केवल बिहार की राजधानी पटना का एक आवासीय इलाका भर हो सकता है. लेकिन इतिहास के छात्रों के लिए यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह वही स्थान है जो कभी पाटलिपुत्र का हिस्सा हुआ करता था. यह मौर्य साम्राज्य की सत्ता की सीट, जिसे प्राचीन काल में गंगा और सोन नदियों के संगम पर स्थित माना जाता था. हालांकि समय के साथ सोन नदी ने अपनी दिशा बदल ली और अब वह गंगा से काफी पहले ही मिल जाती है, जबकि गंगा भी वर्षों में अपने ऐतिहासिक तटों से दूर होती गई है.
इन दोनों प्रमुख नदियों के प्रवाह में आए बदलावों के बावजूद, बांकीपुर का ऐतिहासिक महत्व आज भी कायम है. सिविल कोर्ट्स, पटना कलेक्टरेट, 1891 में स्थापित खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी, और दरभंगा हाउस जैसे प्रतिष्ठित स्थल इस बात के प्रमाण हैं कि बांकीपुर कभी पटना का दिल था और आज भी है, जो अब पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभागों का घर है.
राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो बांकीपुर का इतिहास कुछ खास घटनाओं से नहीं भरा है. यह 2008 में विधानसभा क्षेत्र बना और तभी से यह लगभग एकतरफा मुकाबले का गवाह रहा है, जहां भाजपा ने हर चुनाव में भारी अंतर से जीत दर्ज की है, भले ही मतदाता उपस्थिति बेहद कम रही हो. यह प्रवृत्ति वर्षों से बनी हुई है, जिससे यह सीट राज्य की सबसे पूर्वानुमानित सीटों में से एक बन गई है. बांकीपुर, पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. पहले यह क्षेत्र 'पटना वेस्ट' के नाम से जाना जाता था, और भाजपा ने पिछले आठ चुनावों से इस पर कब्जा जमाए रखा है, जिनमें से तीन चुनाव बांकीपुर नाम से हुए हैं.
इस क्षेत्र में पिछले तीन दशकों से एक पिता-पुत्र की जोड़ी का दबदबा रहा है. नबीन किशोर प्रसाद सिन्हा ने 1995 से शुरू होकर पटना वेस्ट से लगातार चार बार जीत दर्ज की. उनके निधन के बाद उनके बेटे नितिन नबीन (सिन्हा) ने 2006 का उपचुनाव जीता और 2010, 2015 और 2020 के चुनावों में भाजपा की जीत की लहर को कायम रखा, जब यह सीट बांकीपुर के नाम से जानी जाने लगी.
इसका प्रमुख कारण कायस्थ समुदाय का प्रभाव माना जाता है, जो इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. चाहे विधानसभा हो या लोकसभा, सिन्हा परिवार का दबदबा बना रहा. 2009 और 2014 में फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में पटना साहिब लोकसभा सीट पर जीत हासिल की, जबकि 2019 में जब वे कांग्रेस में चले गए, तब रविशंकर प्रसाद (जो स्वयं कायस्थ हैं) ने यह सीट जीती. 2024 के चुनाव में रविशंकर प्रसाद का मुकाबला कुशवाहा नेता अंशुल अविजीत से हुआ, लेकिन एक बार फिर कायस्थ वोट निर्णायक साबित हुआ.
जहां तक बांकीपुर विधानसभा सीट की बात है, नितिन नबीन ने 2010 में 60,840 वोटों से, 2015 में 39,767 वोटों से, और 2020 में 39,036 वोटों से जीत हासिल की. 2020 में उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा को हराया. हालांकि इन विशाल जीतों के पीछे मतदान प्रतिशत में लगातार गिरावट जैसी चिंताजनक पहलू भी छिपा है. 2015 में यह 40.25 प्रतिशत था, जो 2019 लोकसभा चुनाव में घटकर 38.88 और 2020 में 35.92 प्रतिशत रह गया. यह उदासीनता हैरान करने वाली है. यह कहना मुश्किल है कि यह शहरी मतदाता की उदासीनता है या यह भावना कि एक मजबूत भाजपा गढ़ में उनका वोट कोई फर्क नहीं डालता. भाजपा को इससे शायद फर्क न पड़े, लेकिन लोकतंत्र के लिहाज से यह गंभीर संकेत है, विशेषकर बिहार के लिए, जो वैशाली जैसी प्राचीन गणराज्य की भूमि रही है.
2020 विधानसभा चुनावों में बांकीपुर में कुल 3,31,775 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें 8.04 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 7.8 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता शामिल थे. कायस्थ समुदाय, जिसकी जनसंख्या लगभग 15 प्रतिशत आंकी गई है, एकजुट होकर भाजपा को समर्थन देता रहा है और यही उसकी जीत का प्रमुख कारण रहा है. 2024 के लोकसभा चुनाव तक यह संख्या बढ़कर 3,96,781 हो गई. बांकीपुर पूरी तरह शहरी क्षेत्र है जहां ग्रामीण मतदाता शून्य हैं.
अब जिम्मेदारी राजद-नीत महागठबंधन पर है कि वह 64 प्रतिशत उदासीन मतदाताओं को जागरूक करे और ऐसा प्रभावशाली उम्मीदवार खड़ा करे जो लगभग तय हार को संभावित जीत में बदल सके. चूंकि भाजपा की स्थिति मजबूत है, विपक्ष की रणनीति केवल सिन्हा परिवार की विरासत से मुकाबला करने की नहीं, बल्कि मतदाताओं की रुचि फिर से जगाने की भी होनी चाहिए.
(अजय झा)
Luv Sinha
INC
Pushpam Priya Chaudhary
PP
Nota
NOTA
Saurabh Singh
BSLP
Usha Devi Srivastava
IND
Indra Kumar Singh Chandapuri
JAP(L)
Subodh Kumar
SSD
Arvind Kumar Singh
PMP
Kaushal Kishore Pandey
IND
Anang Bhushan Verma
IND
Tejaswani Jyoti
BLCP
Sushil Kumar Singh
NCP
Nitesh Kumar
JDR
Jaya Laxmi
IND
Sanjeev Kumar
BP(L)
Vikash Kumar Roy
BMF
Manish Barriarr
IND
Muknd Kumar
IND
Dukhan Paswan
RJSBP
Piyush Kant Singh
BND
Prabhash Chandra Sharma
IND
Pavan Kumar Jha
IND
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
बिहार में मतदान के दौरान आरजेडी ने चुनाव प्रक्रिया को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिससे सियासी माहौल गरमा गया है. पार्टी का आरोप है कि जानबूझकर मतदान की गति धीमी की जा रही है और इसके लिए कई इलाकों में बिजली तक काटी जा रही है. आरजेडी ने कहा है, ‘वोटिंग सुस्त करने के लिए बिजली काटी जा रही है’. यह आरोप विशेष रूप से ग्रामीण और अल्पसंख्यक बहुल इलाकों के लिए लगाए गए हैं.
बिहार चुनाव में पटना की कुम्हरार सीट पर बीजेपी के एक फैसले से सियासी घमासान मच गया है. पार्टी ने अपने मौजूदा कायस्थ विधायक अरुण कुमार सिन्हा का टिकट काटकर वैश्य समाज के संजय गुप्ता को मैदान में उतारा है, जिससे कायस्थ समाज में भारी नाराजगी है. कुम्हरार में करीब 70,000 कायस्थ मतदाता हैं और यह सीट 1990 से बीजेपी का गढ़ रही है.
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सियासी हलचल तेज हो गई है. बांकीपुर से बीजेपी प्रत्याशी नितिन नवीन के नामांकन के मौके पर एनडीए ने अपना शक्ति प्रदर्शन किया, जिसमें यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णु देव साय और सांसद मनोज तिवारी जैसे बड़े नेता शामिल हुए. इस दौरान मनोज तिवारी ने विपक्षी गठबंधन पर निशाना साधा.