HAM(S)
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JSP
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NOTA
IND
PPI(D)
IND
NIUP
Bihar Election Result 2025 Live: इमामगंज (एससी) विधानसभा सीट पर HAM(S) को दोबारा मिली जीत
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इमामगंज बिहार के जिले का एक प्रखंड है, जो झारखंड के पलामू जिले की सीमा के निकट बसा हुआ है. यह गया से लगभग 65 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है. यह क्षेत्र छोटानागपुर पठार के पहाड़ी और वनाच्छादित किनारे पर स्थित है, जिससे इसकी भौगोलिक बनावट कठोर और पहाड़ी है. इसके किनारे से मोरहर और सोरहर जैसी मौसमी नदियां बहती हैं, जो सोन नदी की सहायक नदियां हैं. इसके आस-पास के प्रमुख शहरों में शेरघाटी, औरंगाबाद, चतरा और रफीगंज शामिल हैं. इमामगंज का नाम शेरघाटी के राजा इमाम बख्श खान के नाम पर पड़ा है.
इमामगंज क्षेत्र लंबे समय से चेरो, खरवार और उरांव जैसी आदिवासी जनजातियों का गढ़ रहा है, जो सदियों से बाहरी शासनों के विरुद्ध प्रतिरोध के लिए प्रसिद्ध रही हैं. 12वीं से 18वीं सदी तक दक्षिण-पश्चिम बिहार पर शासन करने वाले चेरो राजवंश का इस क्षेत्र पर प्रभाव था. ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रारंभिक आदिवासी आंदोलनों में से एक 'कोल विद्रोह' में भी इमामगंज की महत्वपूर्ण भूमिका रही. भूमि हड़प और जबरन कर वसूली के विरोध में चरो और खरवार जनजातियों ने अंग्रेजी सत्ता और जमींदारों के खिलाफ विद्रोह छेड़ा.
ब्रिटिश शासन और जमींदारी प्रथा के विरुद्ध संघर्ष करने वाले कई डकैतों के लिए इमामगंज का पहाड़ी और वन क्षेत्र छिपने के लिए सुरक्षित स्थान बन गया था. स्वतंत्रता के बाद कुख्यात डकैत लखन सिंह ने इस क्षेत्र में "स्थानीय रॉबिनहुड" के रूप में ख्याति पाई. इसके अलावा, जमींदारों और भूमिहीन समुदायों के बीच अक्सर संघर्ष होते रहे, जिससे क्षेत्र में किसान आंदोलनों की भी झलक मिलती है.
इमामगंज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सतत सामाजिक असमानता ने इसे नक्सलवाद की जद में ला दिया. हालांकि अब नक्सल प्रभाव काफी घट गया है, लेकिन किसी भी पुनरुत्थान की संभावना को रोकने के लिए आज भी यहां सीआरपीएफ कैंप तैनात है.
इमामगंज के आस-पास की पहाड़ियों में पाए गए शैल चित्र और मेगालिथिक अवशेष इस बात के संकेत हैं कि यह क्षेत्र प्रागैतिहासिक काल से ही आदिवासी संस्कृति से जुड़ा हुआ है.
इमामगंज को बाद में एक प्रखंड के रूप में स्थापित किया गया. यह 255 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और इसमें सात ग्राम पंचायतें और कुल 195 गांव शामिल हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, प्रखंड की जनसंख्या 1,92,812 थी, जिनमें से 70,966 लोग अनुसूचित जातियों के अंतर्गत आते हैं. यहां हिंदुओं की जनसंख्या 82.73 प्रतिशत और मुस्लिमों की 16.84 प्रतिशत थी. क्षेत्र की जनसंख्या घनत्व 757 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर थी, और लगभग 32,334 घर थे. बावजूद इसके कि क्षेत्र पिछड़ा माना जाता है, यहां की साक्षरता दर 59.61 प्रतिशत थी, जो बिहार के कई अन्य भागों से बेहतर है.
लिंगानुपात 945 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष था, जबकि 0-6 वर्ष के बच्चों में यह अनुपात 991 था, जो अपेक्षाकृत सकारात्मक संकेत है.
इमामगंज विधानसभा क्षेत्र अब तक 17 चुनाव देख चुका है, जिनमें 2024 का उपचुनाव भी शामिल है. प्रारंभिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने चार बार जीत दर्ज की. बाद में समता पार्टी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू ने पांच बार यह सीट जीती, जिनमें जदयू के नेता और एससी समुदाय के प्रभावशाली नेता जीतन राम मांझी की लोकप्रियता प्रमुख कारण रही. जब मांझी ने जदयू से अलग होकर अपनी पार्टी 'हम' (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) बनाई, तब उन्होंने लगातार तीन बार यह सीट जीती.
2015 और 2020 में जीतन राम मांझी ने इमामगंज सीट जीती. 2024 में उनके लोकसभा चुनाव जीतने और नरेंद्र मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने के बाद विधानसभा से इस्तीफा देने के कारण उपचुनाव हुआ. इसमें उनकी बहू दीपा मांझी ने 5,945 वोटों के कम अंतर से यह सीट बरकरार रखी. जन सुराज पार्टी, जो प्रशांत किशोर द्वारा स्थापित की गई है, ने इस उपचुनाव में 37,082 वोट हासिल कर तीसरा स्थान प्राप्त किया, जिससे जीत का अंतर और कम हो गया.
इमामगंज विधानसभा क्षेत्र औरंगाबाद लोकसभा सीट के छह विधानसभा खंडों में से एक है. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित यह क्षेत्र पूरी तरह ग्रामीण है, जहां 38.11 प्रतिशत मतदाता अनुसूचित जातियों से और 14.9 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय से आते हैं. 2020 में यहां कुल 2,95,866 मतदाता थे, जो 2024 में बढ़कर 3,10,285 हो गए. 2020 में मतदान प्रतिशत 58.89 रहा.
2024 के लोकसभा चुनावों में आरजेडी ने औरंगाबाद सीट पर जीत हासिल की और इमामगंज समेत सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई. ऐसे में अगला विधानसभा चुनाव जीतन राम मांझी और उनकी पार्टी ‘हम’ के लिए एक कड़ी परीक्षा होगा. एनडीए का हिस्सा रहते हुए मांझी दोबारा मैदान में उतर सकते हैं, लेकिन जन सुराज पार्टी की मजबूत उपस्थिति से मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है.
(अजय झा)
Uday Narain Choudhary
RJD
Kumari Shobha Sinha
LJP
Nota
NOTA
Fakirchand Das
JAP(L)
Jitendra Kumar Paswan
RLSP
Jitendra Chaudhary
JGJP
Bijendra Paswan
IND
Deepak Ram
NCP
Lalan Kumar
APOI
Banarsi Das
PPI(D)
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
बिहार चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन पर पार्टी के भीतर निराशा है. शशि थरूर ने 'गंभीर आत्मनिरीक्षण' की मांग की, जबकि अन्य नेताओं ने हार का कारण संगठन की कमजोरी, गलत टिकट वितरण और जमीनी हकीकत से कटे कुछ नेताओं को बताया.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटों पर AIMIM ने अपनी मजबूत उपस्थिति को जारी रखा है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बहादुरगंज, कोचा धामन, अमौर और बाबसी जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर जनता ने AIMIM को दोबारा जीत दी है. अमौर सीट पर पार्टी के एकमात्र विधायक अख्तरुल इमान ने सफलता पाई जो जनता के भरोसे और पार्टी संगठन की कड़ी मेहनत का परिणाम है.
बिहार चुनाव में एनडीए की शानदार जीत पर चिराग पासवान ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने बताया कि बिहार के लोगों ने सही समय पर सही फैसला लिया, और डबल इंजन सरकार ने विकास की राह को मजबूत किया. उन्होंने चुनावी रणनीति, गठबंधन की भूमिका और राजनीतिक चुनौतियों पर भी खुलकर बात की.