BJP
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ASP(K)
IND
YSD
RLJP
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IND
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AHFB(K)
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बिहार के गया जिले के टिकारी अनुमंडल में स्थित गुरुआ एक प्रखंड है. यह जिले के 24 प्रखंडों में से एक है और प्राचीन मगध साम्राज्य का हिस्सा रहा है, जिससे इसका ऐतिहासिक महत्व और भी बढ़ जाता है. इसके निकट ही पवित्र नगरी गया और बोधगया स्थित हैं, जिससे इसकी सांस्कृतिक और धार्मिक अहमियत स्पष्ट होती है. हालांकि, उचित ऐतिहासिक अभिलेखों के अभाव के कारण गुरुआ का अधिकांश अतीत रहस्य के आवरण में छिपा हुआ है. यहां तक कि 'गुरुआ' नाम की उत्पत्ति भी स्पष्ट नहीं है. कुछ लोग मानते हैं कि यह किसी आध्यात्मिक गुरु का निवास या विद्वानों और भिक्षुओं का एक संगम स्थल रहा होगा. बिहार की लोकभाषा में नामों में 'आ' प्रत्यय का प्रचलन इसे 'गुरु' से 'गुरुआ' बना सकता है.
हाल ही में हुए पुरातात्विक प्रयासों ने गुरुआ के अज्ञात अतीत की परतें खोलनी शुरू की हैं. ऐसा ही एक स्थल है-भुरहा गांव, जो प्राचीन बौद्ध सभ्यता से जुड़ा हुआ माना जाता है. इस गांव का उल्लेख ब्रह्म रामायण जैसे ग्रंथों में भी मिलता है और यह बौद्ध अनुयायियों के लिए श्रद्धा का केन्द्र है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद बोधगया से सारनाथ जाते समय इस क्षेत्र से गुजरे थे. गांव में कई बुद्ध मूर्तियां पाई गई हैं, जिनमें से एक चार फीट ऊंची काले पत्थर की ध्यानमग्न प्रतिमा है. यह इस बात का संकेत है कि यहां कभी बौद्ध कला निर्माण का प्रमुख केन्द्र रहा होगा.
सन् 1847 में मेजर किट्टो ने भुरहा का सर्वेक्षण कर बौद्ध स्तूपों, चैत्य और विहारों के अवशेष खोजे थे. बाद की खुदाई में यहां 6वीं से 10वीं सदी तक के स्तंभ, अभिलेख और पूजात्मक स्तूप भी प्राप्त हुए. इस क्षेत्र की एक और विशेषता है, इसके प्राकृतिक जलस्रोत, जहां जमीन से पानी स्वतः निकलता है. यह अभी भी वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य बना हुआ है. इतिहासकार मानते हैं कि यह खोज सिर्फ शुरुआत है और भुरहा शोधकर्ताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण स्थल बन सकता है.
गया से 31 किलोमीटर पश्चिम और बोधगया से 46 किलोमीटर दूर स्थित गुरुआ प्रखंड की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 1,84,286 थी, जिसकी घनता 928 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर थी. यहां 29,938 घर हैं, और साक्षरता दर मात्र 52.08% है. इसमें भी लैंगिक अंतर स्पष्ट है. पुरुषों में साक्षरता 60.09% जबकि महिलाओं में मात्र 43.56% है. लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर 940 महिलाओं का है.
गुरुआ प्रखंड में कुल 175 गांव हैं, जिनमें से 12 गांवों की जनसंख्या 200 से कम और 139 गांवों की जनसंख्या 2000 से कम है.
गुरुआ 1977 में एक विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र बना और यह औरंगाबाद लोकसभा सीट के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. पिछले कुछ दशकों में यह भाजपा और राजद के बीच मुकाबले का प्रमुख क्षेत्र बन गया है. 2000 से 2005 तक राजद ने लगातार तीन चुनाव जीते, जबकि भाजपा ने 2010 और 2015 में जीत हासिल की. 2020 में राजद ने सीट फिर से अपने नाम की.
दिलचस्प बात यह है कि यहां जीत का अंतर लगभग 6,500 वोटों के आसपास बना रहता है. 2015 में भाजपा ने 6,515 वोटों से, 2020 में राजद ने 6,599 वोटों से और 2024 के लोकसभा चुनावों में राजद उम्मीदवार ने गुरुआ में 6,970 वोटों की बढ़त हासिल की.
अब तक भाजपा और राजद ने इस सीट पर छह बार जीत हासिल की है, जबकि कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो-दो बार और जनता पार्टी ने 1977 में एक बार जीत दर्ज की है.
हालांकि गुरुआ एक सामान्य वर्ग की सीट है, परंतु यहां अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है जो लगभग 32.4% है. मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी लगभग 9.4% है. 2020 विधानसभा चुनाव में कुल 2,86,233 मतदाता थे, जिनमें से मात्र 1.22% शहरी मतदाता थे. जो यह दर्शाता है कि गुरुआ पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र है. उस चुनाव में मतदान प्रतिशत 62.54% था, जो 2024 लोकसभा चुनाव में बढ़कर 2,91,144 मतदाता हो गया.
(अजय झा)
Rajiv Nandan
BJP
Raghwendra Narayan Yadav
BSP
Sudhir Kumar Verma
JAP
Yugesh Paswan
RSJP
Arvind Kumar Srivastava
IND
Ramashray Ravidas
AHFB(K)
Binay Kumar
IND
Dilip Kumar Singh
IND
Ramadhar Singh
NCP
Moejaj
BLD
Ajay Kumar
PMS
Uday Kumar Verma
IND
Raja Ram Azad
BLNP
Nota
NOTA
Mithilesh Kumar Sharma
AIFB
Ranjan Kumar Barnwal
IND
Krishandeo Singh
IND
Bhim Prasad
RJLP(S)
Dina Nath Prasad
AJPR
Arvind Kumar
PPI(D)
Brajesh Pandey
RSSD
Vinod Paswan
IND
Ashok Kumar Singh
BLCP
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटों पर AIMIM ने अपनी मजबूत उपस्थिति को जारी रखा है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बहादुरगंज, कोचा धामन, अमौर और बाबसी जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर जनता ने AIMIM को दोबारा जीत दी है. अमौर सीट पर पार्टी के एकमात्र विधायक अख्तरुल इमान ने सफलता पाई जो जनता के भरोसे और पार्टी संगठन की कड़ी मेहनत का परिणाम है.
बिहार चुनाव में एनडीए की शानदार जीत पर चिराग पासवान ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने बताया कि बिहार के लोगों ने सही समय पर सही फैसला लिया, और डबल इंजन सरकार ने विकास की राह को मजबूत किया. उन्होंने चुनावी रणनीति, गठबंधन की भूमिका और राजनीतिक चुनौतियों पर भी खुलकर बात की.