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Sheikhpura Assembly Election Result Live: बिहार की इस सीट पर Randhir Kumar Soni ने Vijay Kumar को हराया, जानें किसे मिले कितने वोट
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शेखपुरा को जुलाई 1994 में मुंगेर से अलग कर एक नया जिला बनाया गया था. यह जिला मुख्यालय भी है. इसके गठन के पीछे एक प्रमुख स्थानीय राजनेता, राजो सिंह के निरंतर प्रयासों की अहम भूमिका रही. जनसंख्या के लिहाज से शेखपुरा बिहार का सबसे छोटा जिला माना जाता है. इस जिले के निर्माण का मुख्य उद्देश्य क्षेत्र में विकास और समृद्धि को बढ़ावा देना था. उम्मीद थी कि जिला बनने के बाद स्थानीय लोगों को बेहतर सुविधाएं और विकास के नए अवसर मिलेंगे. लेकिन यह सपना आज तक अधूरा ही रहा है.
शेखपुरा आज भी भारत के 250 सबसे पिछड़े और गरीब जिलों में गिना जाता है. यही वजह है कि यह केंद्र सरकार की "बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड प्रोग्राम" (Backward Regions Grant Fund Programme) के तहत सहायता प्राप्त करने वाले ज़िलों में शामिल है.
शेखपुरा के उत्तर में नालंदा और पटना, दक्षिण में नवादा और जमुई, पूर्व में लखीसराय तथा पश्चिम में नालंदा और नवादा जिले स्थित हैं. यहाँ की भूमि समतल है, लेकिन दक्षिणी क्षेत्रों में कुछ छोटे पहाड़ियां भी हैं. भूमि उपजाऊ होने के बावजूद सिंचाई की सुविधाओं की कमी कृषि उत्पादकता को सीमित कर देती है, जिससे किसान मानसून पर निर्भर रहते हैं. सोनय, करिहारी, टांटी और कच्ची जैसी मौसमी नदियां वर्षा ऋतु में ही बहती हैं. कृषि यहां की प्रमुख आजीविका है, लेकिन कुछ हद तक खनन और स्टोन क्रशर जैसे छोटे उद्योग भी रोजगार का साधन हैं.
शेखपुरा का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. स्थानीय मान्यता है कि भीम की पत्नी हिडिंबा यहां के गिरिहिंडा पहाड़ियों में रहती थीं और उनका पुत्र घटोत्कच कौरव-पांडव युद्ध में एक वीर योद्धा के रूप में लड़ा था.
प्रशासनिक दृष्टि से, शेखपुरा पल्लव शासनकाल में एक केंद्र रहा और मुगल काल में यहां थाना स्थापित किया गया. अंग्रेजों के समय यह कोतवाली बना और स्वतंत्रता के बाद एक ब्लॉक के रूप में उभरा.
इस नगर की स्थापना सूफी संत हजरत मखदूम शाह शोएब रहमतुल्लाह अलैह ने की थी, जिन्होंने घने जंगलों को साफ कर यहां बसावट की शुरुआत की. नगर का नाम उन्हीं के सम्मान में रखा गया.
शेखपुरा विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी और यह जमुई लोकसभा क्षेत्र के छह भागों में से एक है. 2020 में यहां 2,56,789 मतदाता पंजीकृत थे, जो 2024 में बढ़कर 2,62,743 हो गए. अनुसूचित जाति के मतदाता 19.2% और मुस्लिम मतदाता 8.5% हैं. यह क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण है, जिसमें केवल 18.45% मतदाता शहरी हैं. पिछले तीन चुनावों में मतदान प्रतिशत लगभग 55% के आसपास रहा है, जिसमें 2020 में यह 56.28% रहा.
शेखपुरा विधानसभा सीट पर दो उपचुनाव समेत अब तक 19 चुनाव हो चुके हैं. यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है, जिसने 12 बार जीत दर्ज की है. 1967, 1969 और 1972 में यह सीट सीपीआई के कब्जे में रही, जिसने लगातार तीन बार जीत दर्ज की. इसके अलावा जनता दल (यू) दो बार, एक बार एक निर्दलीय और एक बार राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने भी जीत हासिल की.
शेखपुरा की राजनीति में सबसे बड़ा नाम राजो सिंह, जिन्हें लोग प्यार से 'राजो बाबू' कहते थे, का रहा है. उन्होंने पांच बार यह सीट जीती, जिनमें से एक बार निर्दलीय के रूप में. उनके पुत्र संजय सिंह और पुत्रवधू सुनीला देवी ने दो-दो बार जीत दर्ज की, और इस तरह इस परिवार ने 33 वर्षों तक इस क्षेत्र पर कब्जा बनाए रखा. यह सिलसिला 2010 में समाप्त हुआ जब सुनीला देवी चुनाव हार गईं, जिससे कांग्रेस और उनके परिवार की पकड़ ढीली पड़ गई.
2010 और 2015 में जेडीयू के रणधीर कुमार सोनी ने जीत दर्ज की. 2020 में भी वे जीत सकते थे, लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के अलग चुनाव लड़ने से वोटों का बंटवारा हुआ और राजद के विजय कुमार ने जीत दर्ज की. 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की एकजुटता देखने को मिली, जहां लोजपा (रामविलास) ने शेखपुरा खंड में 13,684 मतों की बढ़त बनाई.
2025 का विधानसभा चुनाव कड़ा मुकाबला साबित हो सकता है, जहां अंतिम समय में मतदाता जुटाव (mobilization) निर्णायक भूमिका निभा सकता है. विशेष रूप से वे मतदाता जिन्होंने 2020 में मतदान नहीं किया था, वे इस बार सत्ता की दिशा तय कर सकते हैं.
(अजय झा)
Randhir Kumar Soni
JD(U)
Imam Ghazali
LJP
Rinku Devi
IND
Dilip Kumar
RJJP
Sanket Kumar
RLSP
Nota
NOTA
Rajendra Prasad Gupta
IND
Gautam Kumar
IND
Ajay Kumar
JAP(L)
Krishna Murari Kumar
IND
Daro Bind
JTLP
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटों पर AIMIM ने अपनी मजबूत उपस्थिति को जारी रखा है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बहादुरगंज, कोचा धामन, अमौर और बाबसी जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर जनता ने AIMIM को दोबारा जीत दी है. अमौर सीट पर पार्टी के एकमात्र विधायक अख्तरुल इमान ने सफलता पाई जो जनता के भरोसे और पार्टी संगठन की कड़ी मेहनत का परिणाम है.
बिहार चुनाव में एनडीए की शानदार जीत पर चिराग पासवान ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने बताया कि बिहार के लोगों ने सही समय पर सही फैसला लिया, और डबल इंजन सरकार ने विकास की राह को मजबूत किया. उन्होंने चुनावी रणनीति, गठबंधन की भूमिका और राजनीतिक चुनौतियों पर भी खुलकर बात की.