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हिलसा बिहार के नालंदा जिले का एक उपखंड स्तरीय कस्बा है, जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यह कस्बा सोन और फल्गु नदियों के निकट स्थित है. सोन नदी लगभग 50 किलोमीटर और फल्गु नदी करीब 30 किलोमीटर दूर है. जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से यह 32 किलोमीटर पश्चिम में तथा राज्य की राजधानी पटना से केवल 43 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
हिलसा की एक विशेषता है. यह दो प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों- पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) और नालंदा से काफी करीब है. नालंदा के प्रसिद्ध अवशेष, जिन्हें नालंदा महाविहार कहा जाता है और जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, हिलसा से केवल 29 किलोमीटर दूर हैं. यह निकटता हिलसा को बौद्धिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र बनाती है. प्राचीन काल में हिलसा को "हलधरपुर" नाम से जाना जाता था, और इसके ऐतिहासिक जुड़ाव द्वापर युग तक बताए जाते हैं. यहां सूर्य मंदिर, काली मंदिर और बाबा अभयनाथ मंदिर जैसे कई प्राचीन मंदिर मौजूद हैं, जो इसकी सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं.
‘हिलसा’ नाम मछली से जुड़ा नहीं है, जैसा आम तौर पर समझा जाता है. इस नाम की उत्पत्ति को लेकर दो प्रमुख धारणाएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि पुराना नाम 'हलधरपुर' समय के साथ अपभ्रंश होकर ‘हिलसा’ बन गया. वहीं दूसरी धारणा के अनुसार, इस क्षेत्र का नाम हरिनंदन प्रसाद उर्फ हिलास बाबू के नाम पर पड़ा, हालांकि उनके बारे में कोई ऐतिहासिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं.
हिलसा विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1957 में हुई थी और यह नालंदा लोकसभा क्षेत्र के सात विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. इस क्षेत्र में हिलसा, करायपरसुराय, थरथरी और परवलपुर प्रखंड शामिल हैं.
2020 के विधानसभा चुनावों में इस क्षेत्र में 3,02,211 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 3,15,153 हो गए. 2020 में यहां अनुसूचित जाति के मतदाता 18.27% और मुस्लिम मतदाता लगभग 1.9% थे. यह इलाका मुख्यतः ग्रामीण है, जहां केवल 12.45% मतदाता शहरी श्रेणी में आते हैं. 2020 में यहां 54.85% मतदान हुआ था, जो बिहार के औसत के लिहाज से संतोषजनक माना जाता है.
1957 से लेकर अब तक यहां 16 बार चुनाव हो चुके हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का प्रभाव यहां पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, क्योंकि वह स्वयं नालंदा जिले से आते हैं. उनकी पार्टी समता पार्टी (जो बाद में जदयू में विलीन हो गई) ने इस सीट पर पांच बार जीत हासिल की है.
2000 से 2020 तक के छह चुनावों में समता पार्टी/जदयू ने पांच बार जीत दर्ज की, केवल 2015 में यह सीट राजद को दी गई थी जब जदयू ने बीजेपी से गठबंधन तोड़कर महागठबंधन में शामिल होने का निर्णय लिया था. कांग्रेस, जो महागठबंधन का हिस्सा रही है, इस सीट से चार बार जीत चुकी है, जबकि बीजेपी (या इसके पूर्व स्वरूप भारतीय जनसंघ) ने तीन बार, और राजद, जनता पार्टी, इंडियन पीपल्स फ्रंट व जनता दल ने एक-एक बार जीत हासिल की है.
हालांकि जदयू ने हिलसा में कई बार जीत दर्ज की है, पर हाल के चुनावों में मुकाबले बेहद करीबी रहे हैं. 2020 में जदयू के कृष्णमुरारी शरण ने महज 12 वोटों से राजद के विधायक शक्ति सिंह यादव को हराया था. वोटों की गिनती दोबारा हुई और 182 पोस्टल बैलेट खारिज किए जाने पर राजद ने धांधली का आरोप लगाया.
2024 के लोकसभा चुनावों में भी हिलसा विधानसभा क्षेत्र में जदयू के उम्मीदवार ने राजद प्रत्याशी को केवल 188 वोटों से हराया. ये दोनों करीबी मुकाबले दर्शाते हैं कि 2025 के चुनाव में फिर से कड़ा और अनिश्चित संघर्ष देखने को मिल सकता है, जिससे चुनाव विश्लेषकों के लिए भी परिणामों की भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा.
(अजय झा)
Atri Muni Urph Shakti Singh Yadav
RJD
Kumar Suman Singh @ Ranjit Singh
LJP
Ramvilaf Paswan
BSP
Dular Chand Prasad
IND
Kapil Prasad
IND
Raju Kumar
JAP(L)
Abhay Shankar
RJJP
Suryamani Prakash
JVKP
Sudhir Kumar
IND
Munendra Kumar
IND
Nota
NOTA
Jainendra Kumar
NCP
Ashok Kumar
IND
Ravindar Das
SSD
Shyam Kanta Kumar
NJRP
Rajiv Nayan Prasad
PP
Mamta Rani Urf Pinki Devi
PBP
Niraj Sharma
JD(S)
Kumar Hari Charan Singh Yadav
BMF
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटों पर AIMIM ने अपनी मजबूत उपस्थिति को जारी रखा है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बहादुरगंज, कोचा धामन, अमौर और बाबसी जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर जनता ने AIMIM को दोबारा जीत दी है. अमौर सीट पर पार्टी के एकमात्र विधायक अख्तरुल इमान ने सफलता पाई जो जनता के भरोसे और पार्टी संगठन की कड़ी मेहनत का परिणाम है.
बिहार चुनाव में एनडीए की शानदार जीत पर चिराग पासवान ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने बताया कि बिहार के लोगों ने सही समय पर सही फैसला लिया, और डबल इंजन सरकार ने विकास की राह को मजबूत किया. उन्होंने चुनावी रणनीति, गठबंधन की भूमिका और राजनीतिक चुनौतियों पर भी खुलकर बात की.