सच्चा प्यार, झूठ और वफादारी... वादियों के बीच भावनाओं के तूफान में मंच पर 'Stuck' हुई जिंदगी
मेटावालो... तीन तालियों ने तुम्हारा सिस्टम हैंग कर दिया! बना दिया 63 घंटे की बतकही का रिकॉर्ड
सुंदर कार्य, सुंदर चरित्र और सुंदर प्रयोजन... हनुमानजी के वर्णन वाला प्रसंग सुंदर कांड क्यों कहलाता है?
1900 साल पुराना इतिहास, सप्तशती में जिक्र... बिहार के इस दुर्गा मंदिर से जुड़ी है चंड-मुंड के वध की घटना
जब अहंकार की ‘अग्नि’ से टकराई प्रेम की ‘बरखा’... श्रीराम सेंटर में मंच पर उतरा इंसानी सोचों का महासंग्राम
दास्तान-ए-डाकू सुल्ताना... नौटंकी के जरिए बिखरा लोककला का रंग, श्रीराम सेंटर के कलाकारों ने किया जीवंत अभिनय
राजस्थान की रंग-बिरंगी सांस्कृतिक विरासत में, जहां हर रंग वीरता, परंपरा और उत्सव की कहानी बयां करता है, चरी नृत्य एक चमकता रत्न है. सिर पर पीतल की गगरियों की ऊंची मीनार और तपती धूप एक रूपक हो गए, जिसकी जगह ले ली आग ने. चरी नृत्य राजस्थानी परंपरा में प्रस्तुत पारंपरिक लोक नृत्य कौशल, धैर्य और लालित्य का अद्भुत प्रदर्शन है.
श्रीराम भारतीय कला केंद्र की ओर से आयोजित केंद्र डांस फेस्टिवल-2025 का गुरुवार को आखिरी दिन रहा. इस आखिरी दिन कमानी ऑडिटोरियम में 'नृत्य नाटिका कर्ण' की प्रस्तुति दी गई. मयूरभंज छऊ पर आधारित इस नृत्य नाटिका का सबसे प्रधान आकर्षण था कि इसमें जरूरी भाव गढ़ने के लिए सिर्फ पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ ही संगीत दिया गया था.
मीरा की भावपूर्ण गाथा को श्रीराम भारतीय कला केंद्र ने अपने ‘केंद्र डांस फेस्टिवल 2025’ के जरिए मंच पर उकेरा. बीते रविवार कमानी ऑडिटोरियम मीरा की इस अतुलनीय गाथा का साक्षी बना जहां नृत्य-नाटिका ‘मीरा’ में उनके जीवन दर्शन की झलकियां दिखाई दीं.
श्रीराम भारतीय कला केंद्र की ओर से आयोजित केंद्र डांस फेस्टिवल का मंगलवार को दूसरा दिन था और इस मौके पर संस्थान की ओर से विशेष प्रस्तुति दी गई है, जिसका नाम था 'परिक्रमा'. परिक्रमा कुछ भी हो सकती है, सूर्य के चारों ओर धरती समेत अन्य ग्रहों की परिक्रमा, ग्रहों के चारों ओर उपग्रहों की परिक्रमा या फिर मंदिर में ईश्वर की प्रतिमा के चारों ओर श्रद्धालु की परिक्रमा.
यह फेस्टिवल सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन भर नहीं है, बल्कि भारत की गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं का उत्सव है. इसके जरिए भक्ति, साहस, नैतिकता और एकता जैसे मूल्यों की समझ एक बार फिर जेहन में उतरती है
भामाकल्पम" कुचिपुड़ी नृत्य शैली का एक अनमोल रत्न है, जो अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति और जटिल नृत्य संरचनाओं के लिए जाना जाता है. यह नृत्य-नाटिका भक्ति, प्रेम और मानवीय भावनाओं को सुंदरता से दर्शाती है. यह आयोजन नृत्य प्रेमियों और कला की परख करने वाले और शास्त्रीय नृत्य परंपरा को कायम रखने वाले पारखियों के लिए एक यादगार अनुभव होने वाला है.
श्रीराम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स की ओर से आयोजित चार दिवसीय शीला भरत राम नाट्य महोत्सव का आखिरी और चौथा दिन महान नाट्य कृति अग्नि और बरखा के नाम रहा. रविवार की शाम जो दर्शक सभागार में बैठे थे, लगभग तीन घंटे बाद जब वह बाहर निकले तो तमाम खामोशियों के बीच उनके पास कहने के लिए सिर्फ कुछ शब्द थे. बहुत खूबसूरत, Mind-blowing, क्या प्ले था, Amazing...
तुगलक नाटक में तुगलक को दुनिया बदलने की दीवानगी से ग्रसित एक ऐसे नायक/ प्रतिनायक के तौर पर प्रस्तुत किया गया है जो महज अपने स्वार्थ के लिए किसी भी बचकानी हरकत के प्रति कोई हिचक नहीं रखता. सुल्तान होने के नाते वह चाटुकारों और जीहुज़ूरी करने वालों से घिरा हुआ है. वह उसे भ्रमित करके रखे हुए हैं. वह असलियत से कोसों दूर अपने ही ख्वाब की मस्ती में है.
फेस्टिवल में गिरीश कर्नाड द्वारा लिखित ऐतिहासिक नाटक 'तुग़लक़' का मंचन किया जाएगा. इसका निर्देशन किया है जाने-माने रंग निर्देशक के. माडवाणे ने. ‘तुग़लक़’ मुहम्मद बिन तुग़लक़ की राजनीतिक और मानसिक द्वंद्व को बेहद सशक्त ढंग से प्रस्तुत करता है.
श्रीराम भारतीय कला केंद्र की ओर से आयोजित केंद्र डांस फेस्टिवल-2025 का गुरुवार को आखिरी दिन रहा. इस आखिरी दिन कमानी ऑडिटोरियम में 'नृत्य नाटिका कर्ण' की प्रस्तुति दी गई. मयूरभंज छऊ पर आधारित इस नृत्य नाटिका का सबसे प्रधान आकर्षण था कि इसमें जरूरी भाव गढ़ने के लिए सिर्फ पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ ही संगीत दिया गया था.
गीत के दौरान, महिलाएं बांस की टोकरी में धान भरकर उसमें तोते की मूर्ति रखती हैं और उसके चारों ओर गोलाकार नृत्य करती हैं, मूर्ति को अपने गीत से संबोधित करती हैं. सुआ नृत्य आमतौर पर शाम को शुरू होता है.महिलाएं गांव के एक निश्चित स्थान पर इकट्ठा होती हैं, जहां इस टोकरी को लाल कपड़े से ढक दिया जाता है.
पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के साथ जुड़ी धरोहर संस्था इस पूरे आयोजन की कर्ता-धर्ता है और आज से 25 साल पहले जिसके मन में इस संस्कृति के सुंदर प्रदर्शन का विचार कौंधा उनका नाम है दीपद दीक्षित. प्रसिद्ध रंगमंच कलाकार और कला पारखी दीपक दीक्षित ने राजस्थानी लोक नृत्यों और कलाओं को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
एक तरफ शाका, तो दूसरी ओर जौहर की तैयारी. रानी पद्मावती के साथ राजपूत योद्धाओं की पत्नियां पूर्ण शृंगार करके, लाल जोड़े में सजी-धजी ऐसा नृत्य कर रही हैं, जैसे महाकाली ने खप्पर भर-भर रक्त पीने के बाद किया था. इस नृत्य में वह कभी जोश से भर उठती हैं, कभी बेहाल हो जाती हैं, कभी विरह की मारी से लगती है तो कभी फिर से उन्मादी हो जाती हैं.
कालीघाट चित्रों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उनकी सरल रेखाएं, गहरे रंग और स्पष्ट भाव होते हैं. ये चित्र खासतौर पर हैंडमेड कागज पर बनाए जाते थे, जिन पर प्राकृतिक रंगों से चित्रकारी की जाती थी. इस शैली में चित्रों को फ्रेम जैसा रूप दिया जाता था और पृष्ठभूमि प्रायः खाली या हल्के रंगों की होती थी ताकि चित्र का मुख्य पात्र या विषय उभरकर सामने आए.
तारकेश्वर स्कैंडल पर कई चित्रकारों ने चित्र बनाए हैं, जिन्हें 'एलोकेशी पेंटिंग' के नाम से जाना जाता है. कालीघाट, बंगाल पेंटिंग और पट्टचित्र विधा में भी ये चित्र बनाए गए हैं. एलोकेशी एक विवाहित नवयुवती थी. अवैध संबंधों के चलते उसके पति ने उसकी हत्या कर दी थी.
मोहिनी की मौजूदगी संसार की हर सभ्यता और कहानी में मिलती है, हालांकि उसका स्वरूप या पहचान का तरीका भिन्न है. कई जगहों पर उसे छल की देवी भी कहा गया है को कई स्थानों पर भ्रम पैदा करने वाली स्त्री की पहचान मिली है.