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Bihar Election Result 2025 Live: फतुहा विधानसभा सीट पर RJD को दोबारा मिली जीत
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फतुहा, बिहार के पटना जिले का एक प्रखंड है. इसे पटना महानगरीय क्षेत्र में शामिल किया गया है, जिसके कारण इसे पटना का सैटेलाइट टाउन (उपग्रह शहर) कहा जाता है. यानी ऐसा शहर जो बड़े शहर के आसपास बसा हो. गंगा और पुनपुन नदियों के संगम पर स्थित फतुहा को ऐतिहासिक रूप से त्रिवेणी माना जाता है, क्योंकि प्राचीन काल में यह माना जाता था कि यहां गंडक नदी भी मिलती थी, जो बाद में मार्ग बदल गई.
फतुहा को फतुहां या फतुवा भी कहा जाता है और यह एक औद्योगिक नगर होने के साथ-साथ विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के लिए तीर्थस्थल भी है. हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख और मुस्लिम धर्मों के अनुयायी यहां आस्था से जुड़ते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम और भगवान कृष्ण दोनों ने इस क्षेत्र का भ्रमण किया था. कहा जाता है कि राम अपने भाइयों के साथ मिथिला और जनकपुर की यात्रा के दौरान यहीं से गंगा पार कर गए थे. वहीं, भगवान कृष्ण भीम के साथ राजगीर (65 किमी दक्षिण) जाते समय फतुहा से गुजरे थे, जहां भीम ने राक्षस राजा जरासंध का वध किया था. भगवान बुद्ध और भगवान महावीर का भी यहां आगमन हुआ था.
फतुहा में संत कबीर की स्मृति में एक प्रमुख मठ स्थापित है. मध्यकालीन भारत में यह क्षेत्र सूफी संतों का बड़ा केंद्र था, जहां अनेक मुस्लिम शासक और आक्रांता भी पहुंचे थे. यहां की कच्ची दरगाह एक प्रसिद्ध सूफी दरगाह है, जो सभी धर्मों के श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है.
फतुहा पटना से 24 किमी पूर्व, नालंदा से 55 किमी दक्षिण, और हाजीपुर (वैशाली जिला मुख्यालय) से 35 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है. यह नगर ऐतिहासिक रूप से वस्त्र-आधारित कुटीर उद्योगों के लिए प्रसिद्ध रहा है. फतुहा नाम ‘पटवा’ जाति से आया है, जो पारंपरिक रूप से वस्त्र निर्माण में निपुण रही है. हाल के वर्षों में यहां ट्रैक्टर निर्माण इकाई और एलपीजी बॉटलिंग प्लांट की स्थापना ने बिहार के औद्योगिक पुनरुद्धार की आशा को नया बल दिया है.
राजनीतिक दृष्टि से फतुहा एक महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र है, जो पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र के छह खंडों में से एक है. 1957 में स्थापित इस क्षेत्र में फतुहा और संपतचक प्रखंडों के साथ पटना ग्रामीण प्रखंड की छह ग्राम पंचायतें शामिल हैं. इसकी चुनावी यात्रा उतनी ही विविधतापूर्ण रही है जितनी इसकी सांस्कृतिक विरासत. 1957 से अब तक यहां 18 बार चुनाव हो चुके हैं, जिनमें 2003 और 2009 के उपचुनाव शामिल हैं. इनमें से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने पांच बार, जनता दल (यूनाइटेड) ने तीन बार, कांग्रेस, भारतीय जनसंघ (अब भाजपा), जनता पार्टी और जनता दल ने दो-दो बार, तथा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और लोक दल ने एक-एक बार जीत दर्ज की है.
हालांकि यह सामान्य सीट है, फिर भी अनुसूचित जाति के 18.59 प्रतिशत मतदाताओं की भागीदारी ने कई बार एससी समुदाय के उम्मीदवारों को जीत दिलाई है. वहीं, प्रसिद्ध सूफी दरगाह की उपस्थिति के बावजूद मुस्लिम मतदाता 2020 में कुल 2,71,238 पंजीकृत मतदाताओं में मात्र 1.4 प्रतिशत थे. शहरी मतदाता 2020 में 13.4 प्रतिशत थे, जो हालिया नगरीकरण के चलते बढ़े होंगे. उस वर्ष मतदान प्रतिशत 62.18 रहा, जो स्वस्थ लोकतांत्रिक भागीदारी को दर्शाता है.
2005 के बाद से जदयू और राजद ने फतुहा में बारी-बारी से तीन-तीन बार लगातार जीत दर्ज की है. राजद नेता डॉ. रामानंद यादव ने पिछले तीनों विधानसभा चुनावों में आरामदायक जीत हासिल की है. 2010 के बाद से जदयू की जीत का सिलसिला थमने के बाद उसके सहयोगी दल लोजपा और भाजपा इस सीट को फिर से नहीं जीत पाए हैं. सत्येन्द्र कुमार सिंह ने 2015 में लोजपा और 2020 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन वे क्रमशः 30,402 और 19,370 मतों से हार गए. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को फतुहा में झटका लगा, जब पटना साहिब से रविशंकर प्रसाद की जीत के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी ने फतुहा खंड में 16,565 वोटों की बढ़त बना ली.
2025 के विधानसभा चुनाव में राजद के प्रभाव को चुनौती देने के लिए भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए को एक मजबूत उम्मीदवार की जरूरत होगी, जो संभवतः एससी या ओबीसी वर्ग से हो.
(अजय झा)
Satyender Singh
BJP
Rakesh Sharma
IND
Shakti Paswan
IND
Dhirendra Kumar
IND
Sudhir Kumar Yadav
IND
Sunil Kumar
BSP
Sanjeet Kumar
IND
Sachidanand Singh
JAP
Nota
NOTA
Gajendra Kumar Father- Ganesh Ray
IND
Ajit Kumar Singh
PP
Shyam Karn Mistri
SWMP
Ajit Kumar
IND
Raj Kishor Prasad
BMP
Vinay Singh
SKVP
Dinanath Paswan
PPI(D)
Vinay Kumar
BPCP
Gajendra Kumar Father- Suryakant Prasad Sinha
SKBP
Dharmendra Singh
BMF
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
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बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
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