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Bihar Election Result 2025 Live: जाले विधानसभा सीट पर BJP को दोबारा मिली जीत
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जाले, बिहार के दरभंगा जिले का एक प्रखंड स्तरीय नगर है, जो मधुबनी संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. यह विधानसभा क्षेत्र जाले प्रखंड के सभी पंचायतों और सिंहवाड़ा प्रखंड के 25 ग्राम पंचायतों को मिलाकर बना है, जो उत्तर-मध्य मिथिला का पूर्णतः ग्रामीण क्षेत्र है. इसका नाम जलेश्वरि स्थान, एक स्थानीय धार्मिक स्थल, से जुड़ा है. बागमती नदी के उत्तर में स्थित जाले, जिला मुख्यालय दरभंगा से लगभग 32 किमी उत्तर-पश्चिम और राज्य की राजधानी पटना से करीब 145 किमी उत्तर-पूर्व में है. आसपास के प्रमुख शहरों में मधुबनी (25 किमी उत्तर-पूर्व), सीतामढ़ी (50 किमी उत्तर-पश्चिम), मुजफ्फरपुर (65 किमी दक्षिण-पश्चिम) और समस्तीपुर (70 किमी दक्षिण-पूर्व) शामिल हैं.
1951 में स्थापित इस विधानसभा क्षेत्र में अब तक 18 बार चुनाव हो चुके हैं, जिनमें 2014 का उपचुनाव भी शामिल है. यहां के मतदाताओं ने किसी एक विचारधारा का लगातार समर्थन नहीं किया है और समय-समय पर वाम, केंद्र और दक्षिणपंथी दलों के प्रत्याशियों को चुना है. कांग्रेस ने पहले तीन चुनाव जीते और फिर 1985 व 1990 में वापसी की. बीजेपी (पूर्व जनसंघ सहित) ने पांच बार जीत दर्ज की, भाकपा ने चार, राजद ने दो, जबकि जनता पार्टी और जदयू ने एक-एक बार सफलता पाई.
राजनीतिक परिवारों का प्रभाव भी यहां दिखाई देता है. पूर्व केंद्रीय मंत्री लालित नारायण मिश्र के पुत्र विजय कुमार मिश्र ने तीन बार जीत हासिल की. एक बार कांग्रेस से और दो बार बीजेपी से. 2014 में उन्होंने बीजेपी छोड़ जदयू का दामन थामा, जिससे उपचुनाव हुआ. इस चुनाव में उनके पुत्र ऋषि मिश्र ने जदयू उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की. 2015 से बीजेपी के जीवेश मिश्रा यहां विधायक हैं और 2020 में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मस्कूर अहमद उस्मानी को 21,796 मतों से हराया.
यह क्षेत्र पूर्णतः ग्रामीण है, जहां 2020 में 3,12,393 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें 36,987 (11.84%) अनुसूचित जाति और 90,593 (29%) मुस्लिम मतदाता शामिल थे. 2024 लोकसभा चुनाव तक मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,23,092 हो गई. रोजगार की तलाश में युवाओं का पलायन आम है. चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 की मतदाता सूची में दर्ज 3,376 मतदाता 2024 तक पलायन कर चुके थे. अब तक छह मुस्लिम उम्मीदवार यहां से विधायक रह चुके हैं. 2020 में मतदान प्रतिशत 54.14 रहा, जो हाल के चुनावों में सबसे अधिक है.
जाले की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है, जिसमें धान प्रमुख फसल है. बागमती नदी की बाढ़ बरसात में कई इलाकों को प्रभावित करती है. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं, जबकि बड़े बाजारों और सेवाओं के लिए लोगों को नजदीकी शहरों पर निर्भर रहना पड़ता है.
2024 लोकसभा चुनाव में जाले विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी ने 24,067 मतों की बढ़त हासिल की थी. 2025 विधानसभा चुनाव में पार्टी इस बढ़त के साथ मैदान में उतरेगी. विपक्षी गठबंधन के लिए इस रुझान को पलटना आसान नहीं होगा, जिसके लिए मजबूत उम्मीदवार चयन, प्रभावी जमीनी प्रचार और जातीय समीकरण का सावधानीपूर्वक प्रबंधन जरूरी होगा.
(अजय झा)
Maskoor Ahmad Usmani
INC
Nota
NOTA
Rangnath Thakur
IND
Aman Kumar Jha
JAP(L)
Mahesh Kumar Jha
IND
Nazir Ahmad Ansari
NCP
Bimlesh Kumar Thakur
IND
Saiyaed Mahtab Alam
IND
Mohammad Arshad Siddiqui
IND
Mohammad Mahbub Alam
SDPI
Priya Ranjan Thakur
SMP
Satish Kumar
RJVP
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
बिहार की दरभंगा जिले की जाले विधानसभा सीट पर राजनीतिक घमासान मच गया है, दरअसल, पीएम मोदी की मां पर अपमानजनक टिप्पणी जिस कार्यक्रम में की गई थी, उसका आयोजन कांग्रेस नेता मोहम्मद नौशाद ने किया था. बढ़ते राजनीतिक दबाव और ध्रुवीकरण के डर से कांग्रेस ने आखिरी समय में यू-टर्न लेते हुए जाले सीट से नौशाद का टिकट काट दिया. उनकी जगह पर आरजेडी के नेता ऋषि मिश्रा को कांग्रेस के सिंबल पर उम्मीदवार बनाया है.
बिहार की राजनीति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान से सियासी हलचल तेज हो गई है. शाह ने स्पष्ट किया कि चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, लेकिन मुख्यमंत्री का फैसला विधायक दल करेगा. इस बयान के बाद तेजस्वी यादव ने बीजेपी पर नीतीश कुमार को दरकिनार करने का आरोप लगाया है, जबकि एनडीए इसे एक सामान्य प्रक्रिया बता रहा है. बिहार में जातीय समीकरण और वोट बैंक की गणित महत्वपूर्ण बनी हुई है. इसी बीच, महागठबंधन के भीतर तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर खींचतान चरम पर है.
नीतीश सरकार में मंत्री और जाले सीट से बीजेपी उम्मीदवार जीवेश मिश्रा ने दरभंगा में अनोखे अंदाज में अपना नामांकन दाखिल किया. मंत्री जीवेश मिश्रा साइकिल चलाकर अपना नामांकन दाखिल करने के लिए दरभंगा के सैदनगर काली मंदिर से जिला मुख्यालय स्थित विकास भवन तक पहुंचे. इस दौरान उनके समर्थक भी साथ मौजूद रहे. बिहार सरकार में नगर विकास एवं आवास विभाग के मंत्री जीवेश मिश्रा के इस कदम को कुछ लोग सादगी बता रहे हैं तो कुछ इसे राजनीतिक स्टंट मान रहे हैं.