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Bihar Election Result 2025 Live: परिहार विधानसभा सीट पर BJP को दोबारा मिली जीत
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Parihar Election Results 2025 Live: परिहार सीट पर उलटफेर! IND भारी अंतर से पीछे
बिहार के सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला परिहार विधानसभा क्षेत्र सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है और यह शेखपुरा जिले में स्थित है. यह क्षेत्र 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद अस्तित्व में आया था. परिहार विधानसभा क्षेत्र में परिहार प्रखंड और सोनबरसा प्रखंड के कुछ ग्राम पंचायत शामिल हैं, जिनमें सोनबरसा, पुरंदाहा राजवाड़ा पूर्वी और पश्चिमी, इंदरवा, पिपरा परसैन, जयनगर, मधिया, सिंहवाहिनी, भलुआहा, विष्णुपुर आधार और दोस्तिया शामिल हैं.
2020 में परिहार क्षेत्र में कुल 3,17,508 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से 71,856 अनुसूचित जाति (22.63%), 2,894 अनुसूचित जनजाति (0.91%) और 79,694 मुस्लिम मतदाता (25.10%) थे. 2024 लोकसभा चुनावों तक यह संख्या बढ़कर 3,31,669 हो गई. यह पूरी तरह से ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र है, जहां कोई शहरी मतदाता नहीं है.
इस क्षेत्र में अब तक तीन विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, और तीनों बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है. 2010 में राम नरेश प्रसाद यादव, 2015 और 2020 में गायत्री देवी विजयी रही थीं. 2020 के विधानसभा चुनाव में गायत्री देवी ने आरजेडी की रितु जायसवाल को महज 1,569 वोटों से हराया था. बीजेपी को 42.52% और आरजेडी को 41.61% मत प्राप्त हुए थे, जिससे यह मुकाबला बेहद कड़ा रहा.
2024 लोकसभा चुनाव में परिहार क्षेत्र ने राजनीतिक संकेतों में बदलाव का संकेत दिया. आरजेडी के अर्जुन राय ने परिहार विधानसभा खंड में जेडीयू के देवेश चंद्र ठाकुर पर 5,534 वोटों की बढ़त बनाई, हालांकि ठाकुर ने अंततः सीतामढ़ी सीट जीती. यह बढ़त आरजेडी के लिए उत्साहजनक रही और गठबंधन के लिए यह क्षेत्र अब संभावित जीत के रूप में देखा जा रहा है.
परिहार बिहार के उत्तरी हिस्से में नेपाल की सीमा के नजदीक स्थित है. यह सीतामढ़ी मुख्यालय से लगभग 35 किमी और पटना से 160 किमी दूर है. यह क्षेत्र समतल और बाढ़-प्रवण है, जहां बागमती और लखनदेई नदियों का बहाव इसे प्रभावित करता है. आस-पास के प्रमुख कस्बों में सोनबरसा (12 किमी), बैरगनिया (28 किमी) और नेपाल का जनकपुर (45 किमी) शामिल हैं. भिठ्ठामोड़ बॉर्डर के जरिए नेपाल से व्यापार और सांस्कृतिक संबंध यहां के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
परिहार की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है. धान, गेहूं, मक्का और दालें प्रमुख फसलें हैं. सब्जियों की खेती और डेयरी व्यवसाय से भी ग्रामीणों की आमदनी होती है. पंजाब और दिल्ली जैसे राज्यों में मौसमी प्रवास रोजगार का एक सामान्य जरिया है. क्षेत्र में औद्योगिक विकास सीमित है, हालांकि हाल के वर्षों में सड़क संपर्क में सुधार हुआ है.
परिहार नाम का संबंध "प्रतिहार" वंश से माना जाता है, जो एक राजपूत वंश था और जिसकी उत्पत्ति भगवान राम के भाई लक्ष्मण से जुड़ी मानी जाती है. "प्रतिहार" का अर्थ होता है “रक्षक” या “द्वारपाल”, और यह वंश मध्यकालीन भारत में उत्तर-पश्चिम सीमाओं की रक्षा में अहम भूमिका निभाता था. हालांकि परिहार विधानसभा क्षेत्र का खुद का कोई विशेष ऐतिहासिक महत्व नहीं है, फिर भी इसका नाम मिथिला क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक और योद्धा परंपरा से जुड़ा है.
जैसे-जैसे बिहार 2025 के विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है, परिहार अब भाजपा के लिए सुरक्षित सीट नहीं रह गया है. 2024 के लोकसभा आंकड़े दर्शाते हैं कि मतदाता झुकाव बदल रहा है. हालांकि एनडीए का संगठनात्मक ढांचा अब भी मजबूत है, लेकिन आरजेडी के लिए यह अवसर है कि वह इस बढ़त को ज़मीनी स्तर पर जोड़ने में सफल हो. अगर विपक्ष कोई जमीनी पकड़ वाला प्रत्याशी उतारता है और जनसमर्थन को ठोस वोटों में बदलता है, तो परिहार में इस बार मुकाबला बेहद रोचक और कांटे का हो सकता है.
(अजय झा)
Ritu Kumar
RJD
Amjad Hussain Anwar
RLSP
Sarita Yadav
JAP(L)
Nota
NOTA
Jay Kumar
IND
Bhushan Prasad
IND
Abdul Shalik
JNC
Surendra Panjiyar
RJSBP
Chandra Bhushan Kumar
IND
Ganesh Sah
IND
Mohammad
JDR
Chandan Kumar
BSLP
Nitish Kumar
INL
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
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बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
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