RJD
JD(U)
IND
JSP
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NOTA
AKP
AAP
SUCI
HAM(U)
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मोरवा, बिहार के समस्तीपुर जिले का एक प्रखंड, हाल ही में गठित विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. इसे 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद विधानसभा क्षेत्र का दर्जा मिला. यह उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जिसकी स्थापना 2009 में हुई थी. मोरवा उजियारपुर संसदीय क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है.
मोरवा कस्बा समस्तीपुर जिला मुख्यालय से लगभग 11 किलोमीटर दूर स्थित है. इसके निकटवर्ती कस्बों में दलसिंहसराय (30 किमी), रोसड़ा (35 किमी) और दरभंगा (50 किमी) शामिल हैं. बिहार की राजधानी पटना यहां से लगभग 90 किलोमीटर दूर है. यह इलाका उपजाऊ गंगा के मैदान में आता है, जबकि बुढ़ी गंडक नदी लगभग 32 किलोमीटर दूर बहती है.
मोरवा की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है. यहां चावल, गेहूं, मक्का और दालों की खेती होती है. कुछ छोटे स्तर के उद्योग भी हैं, जो मुख्यतः कृषि उपकरणों के निर्माण और खाद्य प्रसंस्करण (जैसे बेकरी, खाद्य तेल और तंबाकू) से जुड़े हैं. बावजूद इसके, मोरवा की चिंताजनक स्थिति यह है कि यहां की केवल 29.7 प्रतिशत जनसंख्या ही कार्यरत है, यानी 70 प्रतिशत से अधिक लोगों को नियमित रोजगार नहीं मिल पाया है.
मोरवा विधानसभा क्षेत्र में मोरवा विकास खंड के अलावा ताजपुर प्रखंड के 12 ग्राम पंचायत और पटोरी प्रखंड के 8 ग्राम पंचायत शामिल हैं. यह क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण है, यहां कोई शहरी मतदाता नहीं है. 2020 के विधानसभा चुनावों में मोरवा में कुल 2,70,457 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें अनुसूचित जाति के मतदाता लगभग 18.97 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता 12.10 प्रतिशत थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 2,86,442 हो गई.
मोरवा ने अब तक तीन बार अपने विधायक चुने हैं. 2010 और 2015 में जनता दल (यूनाइटेड) ने जीत दर्ज की, जबकि 2020 में राष्ट्रीय जनता दल ने लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) की मदद से जीत हासिल की.
एलजेपी की उपस्थिति ने 2020 में मोरवा समेत 25 सीटों पर जेडीयू को हार का सामना करने पर मजबूर किया. एलजेपी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ नाराजगी के चलते एनडीए से अलग होकर 134 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे. भले ही एलजेपी सिर्फ एक सीट जीत पाई, लेकिन उसने जेडीयू को काफी नुकसान पहुंचाया. 2020 में आरजेडी ने जेडीयू को 10,671 वोटों से हराया, जबकि एलजेपी ने तीसरे स्थान पर रहते हुए 23,884 वोट बटोरे. यदि एलजेपी मैदान में न होती, तो जेडीयू लगातार तीसरी बार मोरवा से जीत दर्ज कर सकता था.
2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की एकजुटता का असर देखने को मिला जब उजियारपुर से बीजेपी के नित्यानंद सिंह ने मोरवा विधानसभा क्षेत्र में आरजेडी के आलोक कुमार मेहता पर 13,829 वोटों की बढ़त हासिल की.
मोरवा क्षेत्र में व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी और विकास की कमी चुनावी मुद्दों के रूप में उभर सकते हैं. लेकिन बिहार के अन्य हिस्सों की तरह यहां भी जातिगत समीकरण इन प्रमुख मुद्दों को पीछे छोड़ देते हैं.
2025 के विधानसभा चुनावों में जाति के अलावा एक अन्य महत्वपूर्ण कारक 'विचलित मतदाता' हो सकते हैं. 2020 में कुल 40.56 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान नहीं किया था. यदि 2025 में मतदान प्रतिशत में मामूली बदलाव भी होता है तो इसका सीधा असर नतीजों पर पड़ सकता है, क्योंकि यहां एनडीए और विपक्षी गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है.
एक और अहम संकेत यह है कि 2019 में जहां एनडीए को इस क्षेत्र में 52,211 वोट मिले थे, वह 2024 में घटकर मात्र 19,442 वोट रह गए. यह गिरती हुई जीत की बढ़त एनडीए के लिए चेतावनी है कि वह अपनी स्थिति को लेकर आश्वस्त न हो और 2025 में जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत लगाए.
(अजय झा)
Vidya Sagar Singh Nishad
JD(U)
Abhay Kumar Singh
LJP
Jay Krishn Ray
IND
Rashmani Kumar Ray
RJP(S)
Kumar Anant
RLSP
Rameshwar Ray
LJP(S)
Umashankar
PP
Suryanarayan Sahni
JAP(L)
Nota
NOTA
Pranav Kumar
IND
Manish Kumar Mishra
IND
Amar Kumar Jha
JNP
Ram Pravesh Sahni
RTMGP
Navin Sah
AAM
Gautam Kumar
RJJP
Dilip Kumar Ray
JD(S)
Manish Kumar
SHS
Fulendra Thakur
IND
Md. Irshad
BGMP
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
बिहार चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन पर पार्टी के भीतर निराशा है. शशि थरूर ने 'गंभीर आत्मनिरीक्षण' की मांग की, जबकि अन्य नेताओं ने हार का कारण संगठन की कमजोरी, गलत टिकट वितरण और जमीनी हकीकत से कटे कुछ नेताओं को बताया.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटों पर AIMIM ने अपनी मजबूत उपस्थिति को जारी रखा है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बहादुरगंज, कोचा धामन, अमौर और बाबसी जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर जनता ने AIMIM को दोबारा जीत दी है. अमौर सीट पर पार्टी के एकमात्र विधायक अख्तरुल इमान ने सफलता पाई जो जनता के भरोसे और पार्टी संगठन की कड़ी मेहनत का परिणाम है.
बिहार चुनाव में एनडीए की शानदार जीत पर चिराग पासवान ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने बताया कि बिहार के लोगों ने सही समय पर सही फैसला लिया, और डबल इंजन सरकार ने विकास की राह को मजबूत किया. उन्होंने चुनावी रणनीति, गठबंधन की भूमिका और राजनीतिक चुनौतियों पर भी खुलकर बात की.