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Dehri Chunav Results Live: डेहरी निर्वाचन क्षेत्र का रिजल्ट घोषित, Rajeev Ranjan Singh ने 35968 वोटों के अंतर से दर्ज की जीत
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डेहरी, जिसे आमतौर पर "डेहरी-ऑन-सोन" कहा जाता है, बिहार के रोहतास जिले का एक ब्लॉक है. सोन नदी के किनारे बसा यह शहर अपने प्रमुख रेलवे जंक्शन और दिल्ली-कोलकाता राजमार्ग पर स्थित होने के कारण रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. डेहरी के पड़ोस में स्थित डालमियानगर का इतिहास इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि कानून-व्यवस्था की विफलता किस प्रकार औद्योगिक विकास को विनाश की ओर ले जा सकती है.
1930 के दशक में उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया द्वारा स्थापित डालमियानगर एक समय पर औद्योगिक केंद्र के रूप में फला-फूला. रोहतास इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अंतर्गत यहां कई फैक्ट्रियां संचालित हुई लेकिन 1970 के दशक के मध्य से हालात बिगड़ने लगे. अपराध, डकैती, अपहरण और श्रमिक आंदोलनों में वृद्धि हुई. इसके चलते प्रबंधन कमजोर हुआ और 1980 के दशक में फैक्ट्रियां बंद होने लगीं. 1990 तक यह चमकता औद्योगिक क्षेत्र एक वीरान शहर में तब्दील हो गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक विफलता स्थानीय अर्थव्यवस्था को किस हद तक प्रभावित कर सकती है.
आज डेहरी में कुछ छोटे उद्योग जैसे आरा मिल, घी प्रोसेसिंग इकाइयां, प्लास्टिक पाइप, बल्ब और फुटवियर निर्माण इकाइयां संचालित हैं, लेकिन ये डालमियानगर की पूर्व प्रतिष्ठा के सामने फीके पड़ते हैं. डेहरी, गया- दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन सेक्शन पर स्थित अपने रेलवे स्टेशन और इंद्रपुरी बैराज के लिए जाना जाता है, जो दुनिया के सबसे लंबे नदी बैराजों में से एक है.
2011 की जनगणना के अनुसार डेहरी की औसत साक्षरता दर 81.2 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत 74 प्रतिशत से कहीं अधिक है.
डेहरी विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी, जो 2008 में परिसीमन के बाद बनाए गए करकट लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. इस क्षेत्र की राजनीतिक यात्रा काफी रोचक रही है. जहां एक ओर बिहार में कांग्रेस का बोलबाला था, वहीं डेहरी ने शुरुआती दो चुनावों में समाजवादी उम्मीदवारों को चुना. बसावन सिंह ने 1952 में सोशलिस्ट पार्टी से और 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जीत दर्ज की. इसके बाद कांग्रेस ने चार चुनाव लगातार जीते.
बसावन सिंह ने 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर फिर से यह सीट जीती. कांग्रेस ने 1985 में आखिरी बार यह सीट जीती थी. उसके बाद जनता दल और निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो-दो बार जीत हासिल की, जबकि अब विलुप्त हो चुकी दो समाजवादी पार्टियों को एक-एक बार सफलता मिली.
2019 के उपचुनाव में भाजपा ने इस सीट पर पहली और एकमात्र जीत दर्ज की, जब राजद विधायक मोहम्मद इलियास हुसैन को अयोग्य ठहराया गया. हालांकि, 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने महज 464 वोटों के अंतर से यह सीट वापस जीत ली. 2024 के लोकसभा चुनाव में सीपीआई(एमएल)(लिबरेशन) ने करकट संसदीय क्षेत्र में जीत दर्ज की और डेहरी सहित सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की. इसके बावजूद भाजपा को 2019 की जीत और 2020 की मामूली हार के आधार पर उम्मीद की किरण नजर आती है.
डेहरी विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जातियों की आबादी 16.91 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिम मतदाता 10.6 प्रतिशत हैं. ग्रामीण मतदाता कुल मतदाताओं का 65.27 प्रतिशत हैं, जबकि शहरी मतदाता 34.73 प्रतिशत हैं.
2020 के विधानसभा चुनाव में 2,94,837 मतदाता पंजीकृत थे, जिनमें से 52.73 प्रतिशत ने मतदान किया. 2024 के लोकसभा चुनाव में यह संख्या थोड़ा बढ़कर 2,96,005 हो गई.
(अजय झा)
Satyanarayan SinghÂÂ
BJP
Pardeep Kumar Joshi
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BSP
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JAP(L)
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बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
इंडिया टुडे ने चुनाव आयोग के डेटा की गहराई से जांच की और पाया कि SIR और चुनाव नतीजों के बीच कोई सीधा या समझ में आने वाला पैटर्न दिखता ही नहीं. हर बार जब एक ट्रेंड बनता लगता है, तुरंत ही एक दूसरा आंकड़ा उसे तोड़ देता है. बिहार चुनाव में NDA ने 83% सीटें जीतीं, पर SIR से जुड़े नतीजे अलग कहानी कहते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया है. जहां सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीती गई पांचों सीटें NDA के खाते में गईं, वहीं बेहद कम मार्जिन वाली सीटों पर अलग-अलग दलों की जीत दर्ज हुई. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भारी अंतर वाली सीटों पर NDA का दबदबा स्पष्ट दिखा जबकि कम अंतर वाली सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी रहा.
jamui result shreyasi singh: जमुई विधानसभा सीट से दूसरी बार श्रेयसी ने राजद के मोहम्मद शमसाद आलम को 54 हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की हैं.
बिहार चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन बुरी तरह फ्लॉप रहा और RJD-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. इसकी बड़ी वजहें थीं- साथी दलों के बीच लगातार झगड़ा और भरोसे की कमी, तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने का विवादास्पद फैसला, राहुल-तेजस्वी की कमजोर ट्यूनिंग और गांधी परिवार का फीका कैंपेन.
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद महागठबंधन बुरी तरह पिछड़ गया और आरजेडी अपने इतिहास की बड़ी हारों में से एक झेल रही है. इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व, रणनीति और संगठन पर गंभीर सवाल उठे हैं.
बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं छोड़ पाई. जिस-जिस रूट से यह यात्रा गुज़री, वहां महागठबंधन लगभग साफ हो गया और एनडीए ने भारी जीत दर्ज की. कांग्रेस का दावा था कि यात्रा वोट चोरी के खिलाफ थी, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह महागठबंधन की चुनावी जमीन मजबूत करने की कोशिश थी, जो पूरी तरह असफल रही.
पटना से 40 किलोमीटर दूर डेहरी गांव आज भी मूलभूत चीजों के लिए जूझ रहा है. 2007 में नीतीश कुमार ने महादलितों को सशक्त करने का वादा किया था, पर 18 साल बाद गांव में पानी, नाली, मनरेगा भुगतान और राशन सब अधूरा है. लोग भ्रष्टाचार, बदइंतज़ामी और टूटे भरोसे से जूझ रहे हैं.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बिहार के डेहरी में एक रैली को संबोधित किया. उन्होंने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' पर निशाना साधा और इसे 'घुसपैठिया बचाओ यात्रा' बताया. अमित शाह ने कहा कि बिहार में विकास केवल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ही कर सकती है. उन्होंने लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव पर बिहार को समृद्ध न कर पाने का आरोप लगाया.
बिहार में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. तेजस्वी वोट यात्रा पर हैं और लोगों की परेशानियों को समझने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी बिहार के दो दिवसीय दौरे पर हैं, जिसमें देहरी और बेगूसराय में उनकी बैठकें होंगी. दोनों तरफ से प्रचार दमदार है और एक-दूसरे पर जमकर प्रहार किया जा रहा है. एक तरफ मौजूदा सरकार पर भ्रष्टाचार और अपराध को बढ़ावा देने का आरोप है, जिससे लोग बदलाव चाहते हैं. दूसरी ओर, उप मुख्यमंत्री संजय सिन्हा तेजस्वी के पिछले कार्यकाल पर सवाल उठा रहे हैं.