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Matihani Vidhan Sabha Election Results Live: मटिहानी विधानसभा सीट के नतीजे सामने आए, RJD ने JD(U) को दी शिकस्त
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बिहार के बेगूसराय जिले के एक छोटे से प्रखंड मटिहानी का नाम सुनते ही बहुत से लोगों के मन में कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आती होगी. लेकिन भारत की आजादी के बाद के इतिहास में मटिहानी का एक विशेष स्थान है. यह वही जगह है जहां देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की घटना दर्ज की गई थी. साल 1957 के चुनाव में मटिहानी प्रखंड के रचियाही गांव में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की खबर सामने आई थी. यहीं से शुरू हुआ यह कुप्रथा देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कलंक बन गया.
नई पीढ़ी के लिए बता दें कि बूथ कैप्चरिंग का अर्थ होता था, किसी मतदान केंद्र पर बलपूर्वक कब्जा जमाकर फर्जी वोट डालना. यह चलन धीरे-धीरे कई राज्यों में फैल गया, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के आने के बाद इस पर काफी हद तक रोक लग गई.
उत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र में स्थित मटिहानी का इतिहास गौरवशाली रहा है. गुप्त वंश के शासनकाल में यह क्षेत्र आर्थिक और प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण केंद्र था. पाल वंश और मुगल काल के दौरान भी इसके महत्व के प्रमाण मिले हैं. हालांकि समय के साथ इसका प्रभाव कम होता गया और जिला मुख्यालय बेगूसराय आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बन गया, जबकि मटिहानी में अब केवल सीमित वाणिज्यिक गतिविधियां होती हैं.
गंगा नदी के समीप स्थित मटिहानी की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है. वर्ष 2022 में स्वीकृत एक नए नदी पुल परियोजना के पूर्ण होने के बाद इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में सुधार की संभावना है.
मटिहानी से बेगूसराय 35 किमी, रोसड़ा 13 किमी, बरौनी औद्योगिक नगर 12 किमी, मोकामा 25 किमी, समस्तीपुर 34 किमी, दरभंगा (प्रमंडलीय मुख्यालय) 107 किमी उत्तर और पटना 107 किमी पश्चिम में हैं.
मटिहानी विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1977 में हुई थी. यह बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र के सात विधानसभा खंडों में से एक है. 2008 के परिसीमन के बाद यह क्षेत्र मटिहानी और शंभो-अखाकुरहा विकास खंडों के साथ-साथ बेगूसराय प्रखंड की 19 ग्राम पंचायतों, बरौनी औद्योगिक नगर और बरौनी प्रखंड के चार अन्य ब्लॉकों को भी सम्मिलित करता है.
राजनीतिक रूप से शुरुआत में मटिहानी में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) का दबदबा रहा, जिसने पहले सात में से पांच चुनाव जीते. कांग्रेस ने दो बार जीत हासिल की. इसके बाद नरेंद्र कुमार सिंह ने चार बार लगातार इस सीट पर विजय प्राप्त की. वे दो बार निर्दलीय और दो बार जनता दल (यूनाइटेड) [JDU] के उम्मीदवार के रूप में चुने गए.
वर्तमान में यह सीट JDU के खाते में है, हालांकि 2020 में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के राजकुमार सिंह ने इसे 333 वोटों के मामूली अंतर से जीत लिया था. दिलचस्प बात यह है कि राजकुमार सिंह अब JDU में शामिल हो चुके हैं. 2020 में JDU के मौलिक उम्मीदवार नरेंद्र कुमार सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे. इससे आगामी चुनाव में LJP और JDU दोनों इस सीट पर दावेदारी कर सकते हैं, विशेषकर अब जब LJP फिर से NDA में शामिल हो गई है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को इस विवाद को सुलझाना पड़ सकता है.
2020 के चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [CPM], जिसे RJD और कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था, भी नजदीकी टक्कर में थी और LJP से मात्र 765 वोटों से पीछे रह गई थी.
2020 के कांटे के मुकाबले में शीर्ष तीन पार्टियों के बीच बहुत कम अंतर था, लेकिन फिर भी NDA (चाहे JDU हो या LJP) को थोड़ी बढ़त प्राप्त थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में BJP के गिरिराज सिंह ने बेगूसराय सीट जीतते हुए मटिहानी विधानसभा क्षेत्र में अपने CPI प्रतिद्वंद्वी को 20,383 वोटों से हराया.
2020 में मटिहानी में कुल 3,38,858 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें अनुसूचित जाति (SC) के मतदाता 12.37% और मुस्लिम मतदाता 12.30% थे. शहरी मतदाता 27.60% थे जबकि ग्रामीण मतदाता 72.40% थे. उस वर्ष मतदान प्रतिशत 61.15% रहा. हालांकि, यदि 2025 के चुनाव में यह प्रतिशत घटा-बढ़ा, तो यह चुनावी गणना को उलट-पलट सकता है. 2024 के संसदीय चुनाव में मटिहानी में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,64,329 हो गई है.
मटिहानी भले ही आज एक छोटा और अपेक्षाकृत कम प्रसिद्ध क्षेत्र हो, लेकिन इसका इतिहास, राजनीति और सामाजिक संरचना बिहार की राजनीति में एक अहम भूमिका निभाते हैं. 2025 के विधानसभा चुनाव में यह सीट फिर से राजनीतिक हलचल का केंद्र बन सकती है.
(अजय झा)
Narendra Kumar Singh Alias Bogo Singh
JD(U)
Rajendra Prasad Singh
CPI(M)
Nota
NOTA
Amresh Ray
IND
Hemant Kumar
IND
Saurab
IND
Avinash Kumar
BMP
Vimalesh Kumar
IND
Bindu Kumari
PP
Dileep Kumar Singh
JAP(L)
Prakash Kumar
RSSD
Amish Kumar
IND
Umesh Patel
SSD
बिहार विधानसभा चुनाव की गूंज यूपी की सियासी जमीन पर भी सुनाई पड़ रही है. इसकी वजह यह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ बिहार में एनडीए को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार का यूपी कनेक्शन क्या है?
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