प्राचीन वैशाली बिहार की सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्थलों में से एक है. यह नगर कभी वज्जिक महासंघ की राजधानी हुआ करता था, जो 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित विश्व का पहला गणराज्य माना जाता है. यह ऐतिहासिक नगर आज के तिरहुत प्रमंडल के वैशाली जिले में स्थित है.
भगवान गौतम बुद्ध ने यहीं पर 483 ईसा पूर्व में अपना अंतिम उपदेश दिया था, और
इसके सौ वर्षों बाद 383 ईसा पूर्व में राजा कालाशोक ने यहां द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया था. सम्राट अशोक द्वारा स्थापित अशोक स्तंभ यहां का प्रमुख ऐतिहासिक चिन्ह है. यह स्तंभ न केवल बुद्ध के अंतिम प्रवचनों को श्रद्धांजलि देता है, बल्कि अशोक के इस पवित्र स्थल की तीर्थयात्रा को भी याद दिलाता है.
वैशाली का गौरवशाली इतिहास बुद्ध और जैन परंपराओं के आगमन से भी पहले का है. यह लिच्छवि गणराज्य की राजधानी रही थी और अपने समय में एक संपन्न नगर था जो वज्जि महासंघ के माध्यम से पूरे गंगा-हिमालयी क्षेत्र में प्रभावी था. शिशुनाग वंश के शासनकाल में तो राजधानी पाटलिपुत्र से वैशाली स्थानांतरित कर दी गई थी.
चीनी यात्रियों फा-ह्यान (4वीं शताब्दी) और ह्वेनसांग (7वीं शताब्दी) ने भी अपनी यात्रा वृतांतों में वैशाली की समृद्धि और सांस्कृतिक वैभव का उल्लेख किया है. इन्हीं विवरणों के आधार पर ब्रिटिश पुरातत्वविद् अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने 1861 में वर्तमान बसाढ़ गांव को प्राचीन वैशाली के रूप में पहचाना.
वैशाली की सांस्कृतिक धरोहर में आम्रपाली का नाम विशेष रूप से लिया जाता है. एक प्रसिद्ध नगरवधू जो बाद में भगवान बुद्ध की अनुयायी बनीं. यहीं पर बुद्ध ने भिक्षुणी संघ की स्थापना की, जो विश्व का पहला महिला बौद्ध संघ था, जिसकी संरचना वैशाली के लोकतांत्रिक सिद्धांतों से प्रेरित थी.
जैन धर्म में भी वैशाली का विशेष स्थान है, क्योंकि यहीं के क्षत्रियकुंड ग्राम में भगवान महावीर का जन्म हुआ था, जो जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर माने जाते हैं.
आज की वैशाली, उस ऐतिहासिक नगरी की छाया मात्र रह गई है. कभी गणराज्य की राजधानी रही यह भूमि अब केवल एक प्रशासनिक ब्लॉक है. 1967 में स्थापित वैशाली विधानसभा क्षेत्र, कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. यहां 16 चुनावों में कांग्रेस ने 5 बार जीत दर्ज की, लेकिन 2000 के बाद से क्षेत्रीय दलों ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है. खासकर जेडीयू ने पिछले दो दशकों में लगातार पांच बार जीत हासिल की.
2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू प्रत्याशी सिद्धार्थ पटेल ने कांग्रेस के संजीव सिंह को मात्र 7,413 वोटों से हराया. वहीं, बीजेपी ने पारंपरिक रूप से यह सीट अपने सहयोगी दलों को सौंपना जारी रखा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में एलजेपी (रामविलास) ने इस संसदीय सीट को बरकरार रखते हुए सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई.
वैशाली एक शुद्ध ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र है, जहां कोई शहरी मतदाता नहीं है. यहां की कुल जनसंख्या में लगभग 20.47% अनुसूचित जातियों और 12.8% मुस्लिम समुदाय के मतदाता शामिल हैं. 2020 में हुए चुनावों में मात्र 59.05% मतदाताओं ने मतदान किया, यानी लगभग 41% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया. यह उस भूमि के लिए एक विडंबना है जिसे दुनिया का पहला गणराज्य कहा जाता है. 2024 में यह संख्या बढ़कर 3,45,163 मतदाताओं तक पहुंची.
आज का वैशाली अपने अतीत की महिमा से कोसों दूर है. सदियों की उपेक्षा ने इसे एक सामान्य गांव में तब्दील कर दिया है. भले ही केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हों, लेकिन वैशाली अभी भी अपने ऐतिहासिक गौरव को पुनः प्राप्त करने से बहुत पीछे है.
(अजय झा)