महुआ, उत्तर-मध्य बिहार के वैशाली जिले का एक उपखंड है. यह जिला मुख्यालय हाजीपुर से लगभग 25 किलोमीटर, राज्य की राजधानी पटना से 50 किलोमीटर और तिरहुत प्रमंडल मुख्यालय मुजफ्फरपुर से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गंगा के मैदानी क्षेत्र में स्थित होने के कारण महुआ की भूमि अत्यंत उपजाऊ है और कृषि यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. यहां मुख्य रूप से
धान, गेहूं, मक्का और दालों की खेती होती है. इसके अलावा कृषि आधारित लघु उद्योगों, हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों का भी स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है.
महुआ क्षेत्र का नाम यहां प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले महुआ वृक्षों के कारण पड़ा. वर्ष 2016 में बिहार के पूर्ण शराबबंदी लागू होने से पहले यह क्षेत्र महुआ से बने देशी शराब के उत्पादन का प्रमुख केंद्र था. अब इन फूलों का उपयोग बीज संग्रह के लिए किया जाता है, जिससे स्थानीय उद्योग महुआ बटर (तेल) निकालते हैं, जिसका औषधीय और सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयोग होता है.
महुआ में कोई नदी नहीं बहती, जबकि गंडक नदी पास के हाजीपुर क्षेत्र से होकर बहती है. उपखंड की जल आपूर्ति और सिंचाई की जरूरतें मुख्य रूप से नहरों और भूजल पर निर्भर करती हैं.
सन् 1972 में जब मुजफ्फरपुर जिले को विभाजित कर वैशाली जिला बनाया गया, तब महुआ को ब्लॉक से उपखंड का दर्जा मिला. प्राचीन वैशाली नगरी के पास स्थित होने के अलावा महुआ का कोई ज्ञात ऐतिहासिक संदर्भ नहीं मिलता.
महुआ का राजनीतिक इतिहास भी उतना ही धुंधला रहा है जितना इसका प्राचीन इतिहास. महुआ विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी. 1952, 1957 और 1962 के पहले तीन चुनावों के बाद यह निर्वाचन क्षेत्र Electoral Map से ही गायब हो गया. आश्चर्य की बात यह है कि इस एक दशक में यह किस क्षेत्र में विलीन हुआ, इसका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. 1977 में यह क्षेत्र दोबारा अस्तित्व में आया.
महुआ विधानसभा क्षेत्र में महुआ और चेहरा कला प्रखंड शामिल हैं और यह हाजीपुर लोकसभा सीट (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित) के अंतर्गत आता है.
जब कांग्रेस राज्य और केंद्र दोनों जगह सत्ता में थी, तब महुआ सीट को भंग करने का निर्णय लिया गया था. कांग्रेस ने पहले तीन चुनावों में यहां जीत हासिल की थी. लेकिन 1977 में इसके पुनः अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस को कभी जीत नसीब नहीं हुई. इसके बाद हुए 11 चुनावों में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने पांच बार, जनता पार्टी और जनता दल ने दो-दो बार तथा लोक दल और जद(यू) ने एक-एक बार जीत हासिल की.
जद(यू) को आज भी 2015 में महागठबंधन के तहत यह सीट राजद को सौंपने का पछतावा हो सकता है, क्योंकि उसने 2010 में यह सीट जीत ली थी. यादव मतदाताओं की भारी उपस्थिति के कारण राजद ने अपने संस्थापक लालू प्रसाद यादव के बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव को 2015 में यहीं से राजनीति में उतारा. जद(यू) के समर्थन से तेज प्रताप ने 28,155 वोटों के अंतर से जीत हासिल की, जो जद(यू) की 2010 की 21,925 वोटों की जीत से अधिक थी.
हालांकि तेज प्रताप ने अपने क्षेत्र में वापसी नहीं की और 2020 में समस्तीपुर जिले के हसनपुर से चुनाव लड़ा. इसके बावजूद राजद ने यह सीट बरकरार रखी. 2020 की जीत में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की भूमिका अहम मानी जाती है, जिसने एनडीए छोड़ने के बाद जद(यू) को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से महुआ से चुनाव लड़ा और 25,146 वोट हासिल किए, जो राजद की जीत के 13,687 वोटों के अंतर से कहीं अधिक थे.
एनडीए को 2025 के चुनाव में उम्मीद है. 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने चिराग पासवान (लोजपा-रामविलास के प्रमुख) को हाजीपुर सीट से प्रत्याशी बनाया. उन्होंने महुआ विधानसभा क्षेत्र में 27,604 वोटों की बढ़त बनाई. अब लोजपा (रामविलास) एनडीए में लौट चुकी है और चिराग पासवान की जद(यू) प्रमुख नीतीश कुमार से सुलह हो चुकी है, जिससे अब आपसी टकराव की संभावना नहीं है.
पूरी तरह ग्रामीण महुआ विधानसभा क्षेत्र में 2020 में कुल 2,86,501 मतदाता थे, जिनमें 21.17% अनुसूचित जाति और 15.10% मुस्लिम मतदाता थे. उस वर्ष 60.06% मतदान हुआ, जो पिछले तीन चुनावों में सर्वाधिक था. 2024 के लोकसभा चुनावों में मतदाता संख्या बढ़कर 2,97,532 हो गई.
महुआ अपनी समृद्ध कृषि भूमि, महुआ वृक्षों और राजनीतिक उठापटक के लिए जाना जाता है. यह क्षेत्र अब 2025 के विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रहा है, जहां एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए काफी कुछ दांव पर होगा.
(अजय झा)