बिहार का समस्तीपुर जिला भौगोलिक रूप से उत्तर में बागमती नदी, पश्चिम में वैशाली और मुजफ्फरपुर, दक्षिण में गंगा और पूर्व में बेगूसराय व खगड़िया से घिरा है. यह पूर्व मध्य रेलवे का मंडल मुख्यालय है और पटना, कोलकाता, दिल्ली तथा धनबाद और जमशेदपुर जैसे औद्योगिक शहरों से सीधा जुड़ा हुआ है. यहां की मुख्य भाषाएं हिंदी और मैथिली हैं.
घनी आबादी वाला यह जिला ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व नहीं रखता. यह जिला प्रसिद्ध निवासियों के लिए नहीं, बल्कि दो प्रमुख व्यक्तित्वों की मृत्यु के लिए जाना जाता है, जिनकी मृत्यु यहां 527 वर्षों के अंतराल पर हुई थी.
महान कवि विद्यापति, जिनके कार्यों ने नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ ठाकुर जैसे लोगों को प्रेरित किया, उन्होंने अपने जीवन का अंतिम समय उस स्थान पर बिताया जिसे अब विद्यापतिनगर या विद्यापतिधाम कहा जाता है. 1352 में पड़ोसी मधुबनी जिले के बिसाफी गांव में जन्मे विद्यापति एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वे कवि-संत, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक और राजपुरोहित थे, जो संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और मैथिली भाषाओं में पारंगत थे. शिवभक्ति में रमे होने के बावजूद उन्होंने अद्वितीय प्रेम गीत भी रचे और उनका प्रभाव मिथिला से आगे बंगाल और ओडिशा तक फैला.
किंवदंती है कि भगवान शिव, विद्यापति की भक्ति से प्रसन्न होकर, वे खुद "उगना" नामक सेवक के रूप में उनकी सेवा करने लगे. जब विद्यापति को उगना की असली पहचान का पता चला, तो शिव ने उन्हें वचन दिलवाया कि वह इसे कभी प्रकट नहीं करेंगे. लेकिन एक दिन, जब विद्यापति की क्रोधित पत्नी उगना को झाड़ू से मारने वाली थी, तो उन्होंने सच्चाई उगल दी और उगना तुरंत अंतर्धान हो गए. दुखी विद्यापति 94 वर्ष की आयु तक जीवित रहे. अंत समय में उन्होंने अपने पुत्रों से उन्हें गंगा ले चलने को कहा. रातभर पालकी में चलकर वे मऊ-बाजिदपुर पहुंचे, जो गंगा से लगभग 5.5 किलोमीटर दूर है. उन्होंने कहा, "अगर मैं यहां तक आ गया हूं, तो गंगा खुद मेरे पास आएगी." ध्यानमग्न होते ही गंगा की जलधारा चमत्कारी रूप से वहां प्रकट हो गई. उन्होंने गंगा पर अपना अंतिम गीत रचा और प्राण त्याग दिए. यह स्थान विद्यापतिनगर कहलाने लगा और वहां आज भी एक शिव मंदिर स्थित है.
सदियों बाद, 2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर में एक और महत्वपूर्ण व्यक्ति की मृत्यु हुई. रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या स्थानीय रेलवे स्टेशन पर कर दी गई. 39 साल लंबे मुकदमे के बाद चार लोगों को दोषी ठहराया गया, लेकिन कई लोगों का मानना है कि असली साजिशकर्ता अब भी न्याय से बचे हुए हैं, जिससे यह भारत की सबसे रहस्यमयी राजनीतिक हत्याओं में से एक बन गई है.
राजनीतिक रूप से समस्तीपुर विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1957 में हुई और तब से 16 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. कांग्रेस ने तीन बार जीत हासिल की (अंतिम बार 1972 में), लेकिन समाजवादी पार्टियों ने विभिन्न रूपों में इस क्षेत्र में दबदबा बनाए रखा. जेडीयू और आरजेडी ने तीन-तीन बार, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और जनता दल ने दो-दो बार तथा लोक दल ने एक बार जीत दर्ज की.
2010 से यह सीट आरजेडी के पास है, लेकिन उसकी बढ़त लगातार घट रही है. 2015 में 31,000 वोटों से लेकर 2020 में मात्र 4,700 वोटों मिलने तक. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सहयोगी लोजपा ने सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल कर सबको चौंका दिया, जिससे 2025 में संभावित बदलाव के संकेत मिलते हैं.
जनसांख्यिकीय रूप से अनुसूचित जातियों की भागीदारी 18.63 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिम मतदाता 16.2 प्रतिशत हैं, और लगभग 80 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं. 2020 में मतदाताओं की संख्या 2,79,144 थी, जो 2024 में घटकर 2,76,876 हो गई. संभवतः यह आंकड़ा प्रवास या मतदाता सूची की सफाई के कारण घटा हो. अब सबकी निगाहें 2025 की मतदाता सूची पर टिकी हैं कि यह रुझान जारी रहता है या नहीं. तीन बार आरजेडी को हराने में असफल जेडीयू की जगह अब बीजेपी या लोजपा समस्तीपुर विधानसभा सीट पर अपना दावा ठोक सकती है.
(अजय झा)