बिहार के समस्तीपुर जिले में स्थित वारिसनगर एक प्रखंड स्तरीय कस्बा है, जो समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण विधानसभा सीट भी है. गंगा के मैदानी क्षेत्र में बसे इस इलाके की भूमि को समीपवर्ती कमला और कोसी नदियों की उपस्थिति उपजाऊ बनाती है. यहां की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है, जहां धान, गेहूं, मक्का और दालें प्रमुख फसलें हैं. इसके
अलावा, आलू, प्याज, टमाटर, बैंगन और फूलगोभी जैसी सब्जियां भी बड़े पैमाने पर उगाई जाती हैं. वारिसनगर प्रखंड के रोहुआ गांव को तंबाकू की खेती के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. डेयरी उद्योग भी यहां की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है, जहां अनुमानित 60 से 70 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि गतिविधियों में संलग्न है.
समस्तीपुर जिला मुख्यालय वारिसनगर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. अन्य प्रमुख शहरों में दलसिंहसराय (25 किमी), रोसड़ा (35 किमी), बेगूसराय (55 किमी) और मंडलीय मुख्यालय दरभंगा (65 किमी) शामिल हैं. राज्य की राजधानी पटना वारिसनगर से लगभग 108 किलोमीटर दूर है.
वर्ष 1951 में स्थापित वारिसनगर विधानसभा क्षेत्र में वारिसनगर और खानपुर प्रखंडों के साथ-साथ शिवाजी नगर प्रखंड की छह ग्राम पंचायतें शामिल हैं. यह समस्तीपुर लोकसभा सीट के छह विधानसभा खंडों में से एक है.
2020 के विधानसभा चुनावों में वारिसनगर में कुल 3,22,259 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी 19.11 प्रतिशत और मुस्लिम आबादी 12.50 प्रतिशत थी. 2024 के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,34,383 हो गई. 2020 में 59.01 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो पिछले चुनावों की तुलना में थोड़ा कम था.
वारिसनगर में कुशवाहा (कोरी) और कुर्मी समुदाय के मतदाता चुनाव परिणामों पर गहरा प्रभाव डालते हैं. दिलचस्प बात यह है कि बिहार की प्रमुख दो पार्टियां, भाजपा और राजद इस क्षेत्र में वर्षों से सक्रिय नहीं हैं. राजद ने लगातार चार चुनावों में हार के बाद 2010 के बाद से यहां चुनाव लड़ना बंद कर दिया और सहयोगी दलों का समर्थन करने की रणनीति अपनाई. वहीं भाजपा ने अक्टूबर 2005 की दूसरी हार के बाद यहां से हटने का निर्णय लिया और जदयू व लोजपा जैसे सहयोगियों को समर्थन देना शुरू किया. कांग्रेस, जो केवल 1972 में एक बार जीत दर्ज कर पाई थी, लगातार हार और जमानत जब्त की घटनाओं के चलते चुनावी परिदृश्य से गायब हो गई. वाम दलों में सीपीआई ने भी लगातार असफलता के कारण यहां से हटने का फैसला किया. इन प्रमुख दलों की अनुपस्थिति में क्षेत्रीय दलों को अपनी पैठ जमाने का अवसर मिला.
वारिसनगर में अब तक कुल 17 विधानसभा चुनाव (दो उपचुनाव सहित) हो चुके हैं. जदयू ने यहां चार बार जीत हासिल की है, जबकि लोजपा और जनता दल ने तीन-तीन बार, जनता पार्टी और संयुक्त समाजवादी पार्टी ने दो-दो बार और सोशलिस्ट पार्टी, कांग्रेस तथा एक निर्दलीय प्रत्याशी ने एक-एक बार जीत दर्ज की है.
वर्ष 2000 से क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व शुरू हुआ, जब जदयू ने पहली बार जीत दर्ज की. इसके बाद लोजपा ने लगातार तीन चुनावों में सफलता पाई. 2010 से जदयू ने फिर वापसी की और लगातार तीन बार सीट अपने पास रखी. वर्तमान विधायक अशोक कुमार (जदयू) 2010 से सीट पर काबिज हैं. हालांकि, उनकी जीत का अंतर 2015 में 58,573 वोटों से घटकर 2020 में मात्र 13,801 वोट रह गया, जिसका एक कारण लोजपा की तीसरे दल के रूप में मौजूदगी थी, जिसे 12.60 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए.
अब जब जदयू और लोजपा (रामविलास) भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में एकजुट हो चुके हैं, तो 2025 के विधानसभा चुनावों में एनडीए की स्थिति यहां मजबूत मानी जा रही है. इसका संकेत 2024 के लोकसभा चुनावों में भी मिला, जब समस्तीपुर लोकसभा सीट के लिए लोजपा (रामविलास) के प्रत्याशी को वारिसनगर विधानसभा खंड में 33,342 मतों की बढ़त प्राप्त हुई.
(अजय झा)