मधुबनी आर्ट कह लीजिए या मिथिला पेंटिंग, यह प्राचीन काल से मिथिला क्षेत्र की संस्कृति और विरासत का हिस्सा रही है. भारत और उसके बाहर भी लोग इसे इसकी अनोखी और प्रसिद्ध चित्रकला के लिए जानते हैं.
मूल रूप से, महिलाएं इन जीवंत कलाकृतियों को चमकीले प्राकृतिक रंगों से अपने मिट्टी के घरों की दीवारों पर विशेष अवसरों, जैसे कि शादियों, के दौरान
बनाती थीं. समय के साथ इस कला का विस्तार हुआ. व्यावसायिक मांग बढ़ने के कारण यह कला दीवारों से अन्य माध्यमों, जैसे कागज, कैनवास, और यहां तक कि कपड़ों पर उतर आई. पाठकों को शायद याद हो केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2025 के केंद्रीय बजट को लोकसभा में पेश करते समय मधुबनी चित्रित रेशमी साड़ी पहनी थी. कई लोगों ने इसे बिहार चुनाव से पहले मिथिला क्षेत्र में भाजपा को बढ़ावा देने की एक रणनीतिक चाल के रूप में देखा.
मधुबनी की पहचान सिर्फ चित्रकला तक सीमित नहीं है. यह सौराठ के अनोखे दूल्हा मेले के लिए भी प्रसिद्ध है, जो शहर से लगभग छह किलोमीटर दूर 22 एकड़ के आम के बाग में आयोजित होता है. इस बाग में हजारों मैथिल ब्राह्मण एकत्र होते हैं, जहां परिवार आपस में बातचीत कर तय विवाह करते हैं. दुल्हन पक्ष घर लौटता है, और दूल्हा अपनी बारात के साथ जाता है. यह अनूठी परंपरा पिछले सात सौ वर्षों से चली आ रही है.
हालांकि, मधुबनी का राजनीतिक परिदृश्य उसकी चित्रकला, विवाह परंपराओं, आमों या मखानों जितना प्रसिद्ध नहीं है.
1951 में स्थापित, मधुबनी विधानसभा क्षेत्र मधुबनी लोकसभा सीट के छह खंडों में से एक है. अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा ने चार-चार बार जीत दर्ज की है. कांग्रेस ने आखिरी बार 1985 में यह सीट जीती थी, यानी चार दशक पहले. जनता पार्टी, राजद और निर्दलीय प्रत्याशियों ने दो-दो बार जीत हासिल की है, जबकि प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और जनता दल ने एक-एक बार यह सीट अपने नाम की है.
भाजपा ने 2000 से 2010 तक लगातार चार चुनाव रामदेव महतो को उम्मीदवार बनाकर जीते. बाद में, राजद के समीर कुमार महासेठ ने 2015 और 2020 में जीत दर्ज की. उनके पिता, राज कुमार महासेठ, इससे पहले 1980 (जनता पार्टी), 1990 (निर्दलीय) और 1995 (जनता दल) में तीन बार विजयी रहे थे.
हालांकि, 2020 के बाद से राजनीतिक समीकरण काफी बदल गए हैं. उस वर्ष, यह सीट एनडीए के हिस्से के रूप में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को दी गई थी. वीआईपी के सुमन कुमार महासेठ दूसरे स्थान पर रहे और 6,814 वोटों से हार गए. एलजेपी, जो एनडीए से अलग हो गई थी, ने एक उम्मीदवार उतारा, जो तीसरे स्थान पर आया, जबकि पूर्व भाजपा विधायक रामदेव महतो ने बागी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. अब, वीआईपी राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हो चुकी है, जबकि एलजेपी एनडीए में लौट आई है.
2024 के लोकसभा चुनावों ने इन बदलावों को दर्शाया, क्योंकि भाजपा मधुबनी के सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में आगे रही. यदि यह रुझान अक्टूबर-नवंबर 2025 के बिहार चुनावों में भी जारी रहता है, तो भाजपा और उसके सहयोगी 2020 की तुलना में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर सकते हैं.
दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने मधुबनी विधानसभा सीट लगातार दो बार गंवाई, लेकिन 2009 से अब तक हर बार मधुबनी लोकसभा सीट जीती है. पूर्व केंद्रीय मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव ने 2009 और 2014 में जीत दर्ज की, जबकि उनके बेटे अशोक कुमार यादव ने 2019 और 2024 में सीट बरकरार रखी.
राजद की लगातार विधानसभा जीत का एक कारण जनसांख्यिकी हो सकता है. यहां मुस्लिम मतदाता 22.6% हैं, अनुसूचित जाति के मतदाता 13.16% हैं, और ग्रामीण मतदाता भारी संख्या (91.9%) में हैं, जबकि शहरी मतदाता केवल 18.1% हैं.
2020 के विधानसभा चुनावों में मधुबनी में कुल 3,46,962 मतदाता थे, जबकि 2024 के लोकसभा चुनावों में यह संख्या बढ़कर 3,54,315 हो गई. 2025 की मतदाता सूची प्रकाशित होने पर यह संख्या और बढ़ सकती है.
एक लगातार चिंता मधुबनी की कम मतदान दर है, जो 2020 में केवल 54.13% थी. यह प्रवृत्ति यहां की कम साक्षरता दर से जुड़ी हो सकती है, जो मात्र 58.62% है, जो राष्ट्रीय औसत 62.39% से भी कम है. पुरुष साक्षरता दर 70.14% है, जबकि महिला साक्षरता बेहद कम, केवल 46.16% है.
(अजय झा)