बिहार के समस्तीपुर जिले में स्थित बिभूतिपुर एक प्रखंड है, जिसे आधिकारिक रूप से एक बड़ा गांव माना गया है. यह बुढ़ी गंडक नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है. इसकी भौगोलिक स्थिति गंगा के मैदानी क्षेत्र में आती है, जो इसे उपजाऊ बनाती है और कृषि के लिए आदर्श बनाती है. बुढ़ी गंडक नदी सिंचाई और स्थानीय आजीविका में अहम भूमिका निभाती है.
की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है, हालांकि लघु उद्योग और हस्तशिल्प भी स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं. यहां की उपजाऊ मिट्टी में धान, गेहूं, मक्का और दालों की भरपूर खेती होती है. यह इलाका पूरी तरह ग्रामीण है और शहरी मतदाता नहीं हैं.
यहां से 9 किलोमीटर दूर स्थित रोसड़ा उपखंड स्तर का कस्बा है, जो क्षेत्रीय व्यापार और वाणिज्य का केंद्र है. जिला मुख्यालय समस्तीपुर 27 किलोमीटर दूर है, जबकि मंडल मुख्यालय दरभंगा सड़क मार्ग से लगभग 125 किलोमीटर दूर स्थित है.
बिभूतिपुर 1967 से एक विधानसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में है और यह उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. अब तक यहां 14 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. इस सीट की राजनीति में कुशवाहा जाति का वर्चस्व रहा है, जो एकजुट होकर अपने जाति-आधारित उम्मीदवार को जिताने में अहम भूमिका निभाती है.
बिभूतिपुर को राज्य के उन चंद इलाकों में गिना जाता है, जहां आज भी वामपंथी दलों का मजबूत आधार है. यहां से अब तक कुल आठ बार वामपंथी उम्मीदवारों की जीत हुई है, जिसमें सात बार सीपीआई (मार्क्सवादी) और एक बार 1967 में सीपीआई की जीत शामिल है. 1990 से 2005 के बीच पांच लगातार चुनाव सीपीआई (एम) ने जीते. रामदेव वर्मा ने छह बार यह सीट सीपीएम के लिए जीती. 2020 में अजय कुमार (कुशवाहा) ने सीपीएम उम्मीदवार के रूप में जेडीयू के राम बालक सिंह को हराकर सीट पर वापसी की. बाकी छह मौकों में यह सीट तीन बार कांग्रेस, दो बार जेडीयू और एक बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के पास गई.
2020 के विधानसभा चुनाव में अजय कुमार ने 40,496 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की. उन्होंने जेडीयू के पूर्व विधायक राम बालक सिंह को हराया, जो 2010 और 2015 में यह सीट जीत चुके थे. यह जीत इतनी निर्णायक थी कि एलजेपी को जेडीयू का खेल बिगाड़ने का भी मौका नहीं मिला. उल्लेखनीय है कि भाजपा और राजद, जो बिहार विधानसभा की दो सबसे बड़ी पार्टियां हैं, बिभूतिपुर में सीमित जनाधार रखती हैं.
भले ही एनडीए की स्थिति अभी कमजोर दिखे, लेकिन उम्मीदें खत्म नहीं हुई हैं. एलजेपी के दोबारा एनडीए में लौटने के बाद, गठबंधन एकजुट होकर सीपीएम को चुनौती दे सकता है. 2020 में जेडीयू और एलजेपी को मिले कुल वोट 62,137 थे, जो सीपीएम से सिर्फ 11,685 वोट कम थे. अगर एनडीए एक मजबूत कुशवाहा उम्मीदवार उतारे, तो यह अंतर पाटना मुमकिन है. इसकी झलक 2024 के लोकसभा चुनाव में दिखी, जब बिभूतिपुर विधानसभा क्षेत्र में एनडीए और महागठबंधन के बीच अंतर घटकर सिर्फ 3,312 वोट रह गया.
2020 में बिभूतिपुर में कुल 2,69,431 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से 17.70 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 6.3 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता थे. मतदान प्रतिशत 60.93% रहा, जो बिहार के औसत से बेहतर है. 2024 लोकसभा चुनावों में मतदाता संख्या बढ़कर 2,75,861 हो गई है.
2025 के विधानसभा चुनाव में बिभूतिपुर सीट पर महागठबंधन, खासकर सीपीएम, को स्पष्ट बढ़त प्राप्त है. लेकिन अगर एनडीए एक मजबूत जातिगत समीकरण और रणनीतिक उम्मीदवार के साथ मैदान में उतरता है, तो राजनीतिक तस्वीर बदल सकती है. बिभूतिपुर की राजनीति में जाति, संगठन, और चुनावी रणनीति का संतुलन ही जीत का रास्ता तय करेगा.
(अझय झा)