राजनगर विधानसभा क्षेत्र मधुबनी जिले में स्थित है और यह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. यह झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. इस क्षेत्र में राजनगर और अंधराठाढ़ी प्रखंड शामिल हैं. राजनगर सीट पहली बार 1967 में अस्तित्व में आई थी और 1977 तक यहां तीन चुनाव हुए। इसके बाद यह सीट समाप्त कर दी गई, लेकिन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद इसे
फिर से बहाल किया गया. इसके बाद से अब तक यहां चार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें 2014 का उपचुनाव भी शामिल है.
राजनगर, मधुबनी से लगभग 12 किलोमीटर उत्तर और पटना से 175 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है. यह दरभंगा से 35 किमी पूर्व और जयनगर से 55 किमी दक्षिण में पड़ता है. आसपास के अन्य प्रमुख कस्बों में झंझारपुर (22 किमी दक्षिण-पूर्व), बेनीपट्टी (30 किमी पश्चिम) और खजौली (18 किमी उत्तर-पश्चिम) शामिल हैं. नेपाल की सीमा से लगे जनकपुर राजनगर से करीब 44 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है, जो मिथिला क्षेत्र का महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है.
राजनगर का महत्व केवल राजनीतिक पहचान तक सीमित नहीं है. बीसवीं सदी की शुरुआत में दरभंगा राज के महाराजा रमेश्वर सिंह ने इसे अपनी राजधानी बनाने की योजना बनाई थी. यहां भव्य महल, मंदिर और प्रशासनिक भवन बनाए गए, जिनमें सबसे प्रसिद्ध नवलखा पैलेस था. इतालवी वास्तुकार एम.ए. कोरोन द्वारा डिजाइन किया गया यह महल भारत में सीमेंट से निर्मित शुरुआती भवनों में से एक था. 1898 में इसे टाउनशिप घोषित किया गया और 1905 तक यह एक योजनाबद्ध नगर के रूप में विकसित हो गया. लेकिन 1934 के भीषण भूकंप ने इस क्षेत्र को तहस-नहस कर दिया और महल खंडहर में बदल गया, जो आज भी इसके वैभवशाली अतीत की गवाही देता है.
राजनगर का भूभाग समतल और उपजाऊ है. धान, गेहूं, मक्का और दालें यहां की मुख्य फसलें हैं. औद्योगिक गतिविधियां नगण्य हैं और बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए पलायन करते हैं.
2008 में पुनर्स्थापना के बाद से राजनगर में कड़ा चुनावी मुकाबला देखने को मिला है. 2010 में राजद के रामलखन राम रमण ने भाजपा के रामप्रीत पासवान को 2,459 वोटों से हराया. उनकी मृत्यु के बाद हुए 2014 के उपचुनाव में राजद के राम अवतार पासवान ने फिर से रामप्रीत पासवान को 3,448 वोटों से हराया. 2015 में रामप्रीत पासवान (भाजपा) ने जीत हासिल की और 6,242 वोटों से राजद प्रत्याशी को हराया. 2020 में उन्होंने अपनी बढ़त और मजबूत कर 19,121 वोटों से जीत दर्ज की.
दिलचस्प तथ्य यह है कि इस क्षेत्र के अधिकांश विधायक के नाम "राम" से शुरू हुए हैं. 1967 से अब तक यहां पांच विधायक बने हैं, जिनमें से चार का नाम "राम" से शुरू होता है. केवल बिलट पासवान विहंगम (1969, 1972) इस पैटर्न से अलग रहे. स्थानीय लोग इसे मिथिला की धार्मिक परंपरा और भगवान श्रीराम से जोड़ते हैं.
2020 के चुनाव में यहां 3,31,220 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें 14.85% अनुसूचित जाति, 14% मुस्लिम और लगभग 12.40% झा (मैथिल ब्राह्मण) मतदाता थे.ृ 2024 तक यह संख्या बढ़कर 3,39,401 हो गई। हाल के चुनावों में औसत मतदान प्रतिशत करीब 52% रहा है.
बीते तीन लोकसभा चुनावों में भाजपा या उसके सहयोगी जेडीयू ने इस क्षेत्र में लगातार बढ़त बनाए रखी है. 2025 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा मजबूत स्थिति में नजर आ रही है. हालांकि, लगभग आधे मतदाता मतदान से दूर रहते हैं, ऐसे में राजद और विपक्षी दलों को इस "मौन मतदाता वर्ग" को साधने और एनडीए के खिलाफ मजबूत रणनीति बनाने की जरूरत होगी.
(अजय झा)