बिहार के सीतामढ़ी जिले का रीगा ब्लॉक, जो कभी भारत का अंतिम ब्लॉक माना जाता था, अब "भारत का पहला गांव" के रूप में नई पहचान प्राप्त कर चुका है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सीमावर्ती गांवों को यह विशेष उपाधि दिए जाने के बाद, नेपाल के गौर-बैरगनिया कॉरिडोर से भारत में प्रवेश करते ही सबसे पहले रीगा ब्लॉक सामने आता है.
पहचान का जमीनी विकास में अभी स्पष्ट रूप से असर नहीं दिखा है. बुनियादी ढांचे की कमी और अस्थिर संपर्क व्यवस्था अब भी रीगा की बड़ी समस्याएं बनी हुई हैं. 2008 में परिसीमन के दौरान जब रीगा को विधानसभा क्षेत्र के रूप में गठित किया गया, तब भी स्थानीय लोगों में विकास की उम्मीद जगी थी, लेकिन वह अब तक पूरी नहीं हो सकी.
रीगा की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है. यहां धान, गेहूं और मक्का की खेती होती है. साथ ही गन्ना उत्पादन भी व्यापक स्तर पर होता है, जिसका केंद्र कभी रीगा शुगर मिल थी. यह मिल 2020–21 की पेराई सत्र में बंद हो गई थी, लेकिन दिसंबर 2024 में नए मालिकों द्वारा इसे पुनः चालू किया गया. इसका सीधा लाभ 30,000 से 35,000 किसानों को मिलने की संभावना है. अब इस मिल की पेराई क्षमता 5,000 टीसीडी से बढ़ाकर 10,000 टीसीडी की जा रही है. इसके साथ 400 प्रत्यक्ष और लगभग 2,000 अप्रत्यक्ष नौकरियां पहले ही सृजित हो चुकी हैं.
रीगा में कोई प्रमुख पुरातात्विक स्थल नहीं हैं, फिर भी यह मिथिला की सांस्कृतिक विरासत से गहराई से जुड़ा हुआ है. सीतामढ़ी जिला, जिसे माता सीता का जन्मस्थल माना जाता है, धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. निकटवर्ती जनक मंदिर और जानकी कुंड को भी जल्द ही पुनर्जीवित किया जा रहा है, जो क्षेत्र के धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देंगे.
रीगा विधानसभा क्षेत्र में रिगा, बैरगनिया और सुप्पी ब्लॉक आते हैं. यह 2010 से सामान्य वर्ग की सीट रही है. रीगा शहर सीतामढ़ी से लगभग 35 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में और बैरगनिया से 10 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है, जो नेपाल सीमा का प्रवेशद्वार है. इसके निकटवर्ती शहरों में दरभंगा (80 किमी), मुजफ़्फरपुर (85 किमी), मधुबनी (90 किमी), मोतिहारी (95 किमी), और समस्तीपुर (120 किमी) आते हैं, जबकि राजधानी पटना 150 किलोमीटर दूर है.
2020 विधानसभा चुनाव में रीगा में 3,12,648 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 में बढ़कर 3,25,122 हो गए. हालांकि, 2020 की मतदाता सूची में दर्ज 5,538 मतदाता लोकसभा चुनाव से पहले पलायन कर चुके थे. मतदान प्रतिशत लगभग 57% पर स्थिर बना हुआ है.
यहां मुस्लिम समुदाय की आबादी 15.3% (47,835 मतदाता) है जबकि अनुसूचित जाति के मतदाता 14.07% (43,990) हैं. शहरी मतदाता केवल 9.3% (29,076) हैं, जिससे यह क्षेत्र पूरी तरह ग्रामीण माना जाता है.
रीगा विधानसभा क्षेत्र ने जब-जब भाजपा और जदयू साथ मिलकर चुनाव लड़े, तब-तब इस गठबंधन को भारी समर्थन मिला. 2010 में भाजपा के मोतीलाल प्रसाद ने कांग्रेस के अमित कुमार को 22,327 वोटों से हराया था. लेकिन 2015 में जब जदयू ने भाजपा से गठबंधन तोड़ा, तो अमित कुमार ने प्रसाद को 22,856 वोटों से हराकर बदला चुकाया. 2020 में एनडीए के फिर से एकजुट होने पर मोतीलाल प्रसाद ने 32,495 वोटों की बड़ी बढ़त से जीत दर्ज की.
लोकसभा चुनाव में भी यही प्रवृत्ति देखने को मिली. 2014 में भाजपा की रमा देवी ने रीगा में 36,101 वोटों से बढ़त बनाई, जो 2019 में जदयू के एनडीए में लौटने के बाद 75,818 तक पहुंच गई. हालांकि 2024 में रमा देवी की जगह जदयू की लवली आनंद को उम्मीदवार बनाए जाने पर यह बढ़त घटकर 23,032 रह गई. यह फैसला जदयू और भाजपा के बीच राजनीतिक समझौते का हिस्सा माना गया, जिसमें पूर्व बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह की भूमिका रही, जो 1994 में डीएम जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में सजायाफ्ता रहे हैं. 2023 में रिहाई के बाद उन्होंने अपनी पत्नी की उम्मीदवारी के लिए दबाव बनाया था.
वर्तमान में मोतीलाल प्रसाद नीतीश कुमार सरकार में मंत्री हैं और उनके पुनः चुनाव लड़ने की संभावना प्रबल मानी जा रही है. यदि कोई बड़ा राजनीतिक उलटफेर नहीं होता, तो रीगा में विपक्ष के लिए जीत हासिल करना बेहद कठिन प्रतीत होता है. एनडीए की हार केवल मतदाता टर्नआउट में भारी उछाल या गठबंधन में टूट से ही संभव हो सकती है.
(अजय झा)