पारू, बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की एक विधानसभा सीट है, जो वैशाली लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है. यह एक सामान्य श्रेणी की सीट है, जिसमें सरैया प्रखंड और पारू प्रखंड के कई ग्राम पंचायत शामिल हैं, जैसे मणिकपुर भगवानपुर सिमरा, चिंतामनपुर, जगदीशपुर बाया, कमलपुरा, कोरिया निजामत, लालू छपरा, पारू उत्तर, पारू दक्षिण, रघुनाथपुर, रामपुर केशो उर्फ मलाही,
बजितपुर और मंगुरहिया. यह पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र है, जहां शहरी मतदाता नहीं हैं.
पारू कस्बा जिला मुख्यालय मुजफ्फरपुर से लगभग 40 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है, जबकि वैशाली 45 किमी, हाजीपुर 55 किमी और राज्य की राजधानी पटना 70 किमी दक्षिण-पूर्व में है. यह क्षेत्र राज्य राजमार्गों से जुड़ा हुआ है, और सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन मुजफ्फरपुर जंक्शन है.
1957 में स्थापित यह विधानसभा क्षेत्र अब तक 16 विधानसभा चुनाव देख चुका है. शुरुआत में यह कांग्रेस का गढ़ था, जिसने पहले पांच में से चार चुनाव जीते, आखिरी बार 1972 में. लेकिन पिछले दो दशकों में यह बीजेपी की मजबूत पकड़ बन चुका है, जिसने लगातार चार बार जीत दर्ज की है. इन दो राष्ट्रीय दलों के बीच जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने दो-दो बार जीत हासिल की है. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, लोक दल, जनता दल और एक निर्दलीय प्रत्याशी ने भी एक-एक बार जीत दर्ज की है. 2005 से भाजपा के अशोक कुमार सिंह यहां के विधायक हैं, जिन्होंने 2010, 2015 और 2020 में भी जीत दोहराई.
2020 के विधानसभा चुनाव में अशोक कुमार सिंह ने 77,392 वोट (40.9%) हासिल कर निर्दलीय प्रत्याशी शंकर प्रसाद (62,694 वोट, 33.2%) को हराया. कांग्रेस को मात्र 13,812 वोट (7.3%) मिले. वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में पारू में लोजपा (रामविलास) को 4,620 वोटों की बढ़त मिली, जहां उसने 45.66% वोट हासिल किए, जबकि राजद को 43.32% वोट मिले. बीजेपी ने इस सीट पर गठबंधन समझौते के तहत लंबे समय से प्रत्याशी नहीं उतारा है.
2020 में पारू में कुल 3,13,920 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से 60.27% ने मतदान किया. अनुसूचित जातियों के मतदाता 52,142 (16.61%) थे, जबकि मुस्लिम मतदाता 37,670 (12%). प्रमुख जातीय समूहों में राय (35,159 - 11.2%), सिंह (32,961 - 10.5%), शाह (23,544 - 7.5%), महतो (21,974 - 7%), पासवान (20,718 - 6.6%) और ठाकुर (15,382 - 4.9%) प्रमुख हैं. इनके अतिरिक्त कुमार, भगत, पंडित और मिश्रा जैसे छोटे समुदाय भी यहां निवास करते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव तक पंजीकृत मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,18,378 हो गई.
पारू एक स्थिर ग्रामीण सीट है, जहां की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है. धान, गेहूं, मक्का और दलहन यहां की प्रमुख फसलें हैं, जबकि कुछ क्षेत्रों में गन्ना और सब्जियों की खेती भी होती है. यहां कोई बड़ा उद्योग नहीं है. रोजगार के लिए छोटे चावल मिल, ईंट भट्ठे और कृषि व्यापार केंद्र ही प्रमुख साधन हैं. साप्ताहिक हाट पारू कस्बे में व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र हैं.
हालांकि, कृषि क्षेत्र की मजबूती के बावजूद, पारू में बुनियादी ढांचे की समस्याएं बनी हुई हैं- जैसे खराब सड़कें, सीमित स्वास्थ्य सुविधाएं और अधूरी सिंचाई व्यवस्था. बिजली और स्कूल नामांकन में सुधार हुआ है, लेकिन प्रवासन की दर अभी भी ऊंची है. कई युवा नौकरी की तलाश में पटना या बिहार के बाहर जाते हैं. निर्वाचन आयोग के अनुसार, 2020 से 2024 के बीच 3,203 पंजीकृत मतदाता पारू से बाहर स्थानांतरित हो चुके हैं.
2025 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, पारू में मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद है. ग्रामीण विकास, जातीय समीकरण और सत्ता विरोधी भावना इस बार निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. जहां भाजपा अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश करेगी, वहीं विपक्षी दल स्थानीय प्रशासन से जुड़ी असंतोष की भावना को भुनाने की कोशिश कर सकते हैं. हालांकि, पारू का अब तक का चुनावी इतिहास निरंतरता को प्राथमिकता देने का संकेत देता है, जिसमें भाजपा का दबदबा बना रहा है और लोकसभा चुनावों में उसकी सहयोगी पार्टी लोजपा ने बढ़त हासिल की है.
(अजय झा)