नवादा बिहार के दक्षिणी हिस्से में स्थित है. यह खुरी नदी के दोनों किनारों पर बसा हुआ है, जो झारखंड की सीमा से लगता है. इसका नाम फारसी शब्द 'नौ-आबाद' से आया है, जिसका अर्थ है नया नगर. एक उपयुक्त नाम, क्योंकि यह शहर हमेशा अपने अतीत से अछूता सा लगता है, मानो इतिहास ने कभी यहां ठहरने की कोशिश ही न की हो.
नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों के पास स्थित होने के बावजूद, नवादा का अतीत धुंधला सा है. ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन से पहले, यह छोटे-छोटे राज्यों का एक ऐसा इलाका था जो हमेशा अस्थिरता में डूबा रहता था. 1857 में लूटपाट करने वाले गिरोहों ने इस कस्बे को तहस-नहस कर दिया, जिसके बाद यहां अराजकता का विद्रोह भड़क उठा. सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया गया, लेकिन कुछ समझदार स्थानीय अधिकारियों ने सरकारी दस्तावेजों को एक पहाड़ी गुफा में छिपा दिया. ये वही दस्तावेज हैं जो 1857 से पहले के नवादा की आखिरी निशानी हैं, लेकिन इनमें भी इस बात का कोई उल्लेख नहीं है कि नवादा को नौ-आबाद बनने से पहले क्या कहा जाता था.
यहां कोई भव्य स्मारक नहीं हैं, कोई पुरानी महानता की कहानी भी नहीं. इसके बजाय, यह शहर भ्रष्टाचार, कानूनहीनता और कुख्यात अराजकता जैसी अव्यवस्था को गर्व की तरह धारण किए हुए है. इसी कारण, बिहार के अन्य हिस्सों में दिखने वाला विकास नवादा को छू तक नहीं पाया है. यह अब भी धूल से भरा एक पिछड़ा इलाका ही है.
1951 में स्थापित नवादा विधानसभा क्षेत्र अब तक 19 चुनाव देख चुका है, और हर बार अस्थिरता और अनिश्चितता कहानी दोहराई गई. मतदाता लगातार पार्टियों के बीच झूलते रहे हैं, कभी नकद लालच से, तो कभी अल्पकालिक निष्ठाओं से प्रभावित होकर. कांग्रेस ने छह बार जीत दर्ज की, लेकिन आखिरी बार 1985 में, जो अब बीते युग की बात लगती है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसकी पूर्ववर्ती जनसंघ ने तीन बार जीत दर्ज की. निर्दलीयों और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने भी तीन-तीन बार जीत हासिल की. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) और जनता दल (यूनाइटेड) JD(U) ने दो-दो बार जीत दर्ज की.
पिछले चार चुनावों में यह सीट एक राजनीतिक झूले में बदल गई- पहले JD(U), फिर RJD, फिर JD(U), और फिर RJD की जीत हुई. अगर यह पैटर्न जारी रहा, तो 2025 का चुनाव JD(U) के पक्ष में होना चाहिए.
लेकिन नवादा में पैटर्न से ज्यादा अराजकता का बोलबाला है. 2020 में, राजद की विभा देवी यादव ने 37,000 वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की, जबकि JD(U) तीसरे स्थान पर खिसक गई, एक निर्दलीय उम्मीदवार से भी पीछे. यह गिरावट भाजपा को उकसा सकती है कि वह अपने सहयोगी JD(U) से यह सीट छीनने की कोशिश करे- खासकर तब, जब उसने 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां शानदार जीत दर्ज की थी. भाजपा ने न केवल नवादा की संसदीय सीट जीती, बल्कि इसके अंतर्गत आने वाले सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में भी बढ़त बनाई.
नवादा में अनुसूचित जाति के मतदाता 21.38% हैं, जबकि मुस्लिम 14.8%. यहां ग्रामीण मतदाता हावी हैं, जो 73.38% हैं, जबकि शहरी मतदाता महज 26.62% हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में, नवादा के कुल 3,52,867 मतदाताओं में से केवल 51.25% ने मतदान किया. 2024 तक, मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,59,244 हो गई, लेकिन बड़ा सवाल यह है- क्या इस बार वे मतदान करेंगे, या फिर उदासीनता एक बार फिर अराजकता को बढ़ावा देगी?
यह चुनाव किसी भी दिशा में जा सकता है- एकतरफा जीत, कांटे की टक्कर, या कोई अप्रत्याशित मोड़. लेकिन एक बात तय है, नवादा में हमेशा अव्यवस्था ही अंतिम फैसला लेती है.
(अजय झा)