बाढ़, बिहार के पटना जिले का एक अनुमंडल है, जो मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यह न केवल एक विधानसभा क्षेत्र है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान भी बेहद खास है. गंगा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित बारह, बख्तियारपुर (20 किमी), मोकामा (25 किमी), बिहार शरीफ (50 किमी), पटना (60 किमी) और मुंगेर (90 किमी) जैसे प्रमुख शहरों से घिरा हुआ है.
बारह को भारत के सबसे पुराने अनुमंडलों में से एक माना जाता है. इसकी स्थापना की सटीक तिथि दस्तावेजों में दर्ज नहीं है, लेकिन ऐतिहासिक प्रमाण बताते हैं कि यह ब्रिटिश शासन से पहले ही एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक इकाई रहा है. गंगा के किनारे होने के कारण यह व्यापार और परिवहन का अहम केंद्र रहा है.
बाढ़ का इतिहास मुगलकाल से पहले के दौर में भी उल्लेखनीय है. 1495 में यहां सिकंदर लोदी और बंगाल के शासकों के बीच "बाढ़ की शांति संधि" हुई थी, जिसमें यह तय हुआ कि बारह के पूर्व का इलाका बंगाल के अधीन और पश्चिम का इलाका दिल्ली के अधीन रहेगा. 16वीं सदी की शुरुआत में शेरशाह सूरी ने यहां व्यापारियों और यात्रियों के लिए 200 कमरों वाली भव्य सराय बनवाई थी. 1877 में बाढ़ उन पहले शहरों में शामिल हुआ जहां रेलवे स्टेशन स्थापित किया गया. लेकिन 1898 से 1901 के बीच बारह प्लेग महामारी की चपेट में आ गया, जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई और जनसंख्या में भारी गिरावट आई.
बारह को 1928 में एक दुखद सती कांड के कारण भी जाना जाता है, जब एक युवा विधवा संपति कुवेर ने अपने पति की चिता पर आत्मदाह कर लिया. यह उस समय की एक चौंकाने वाली घटना थी क्योंकि सती प्रथा पहले ही गैरकानूनी घोषित हो चुकी थी. ब्रिटिश प्रशासन ने इस मामले में उसके भाई सहित 10 लोगों को गिरफ्तार किया था.
बाढ़ नाम की उत्पत्ति को लेकर कई मत प्रचलित हैं. एक मत के अनुसार इसका नाम "बाढ़" (फ्लड) शब्द से आया है, क्योंकि यह इलाका गंगा के किनारे नीचला और बाढ़-प्रवण है. दूसरा मत कहता है कि यह "बारह" (12) शब्द से आया, क्योंकि यह कोलकाता से आने वाले जहाजों का 12वां ठिकाना हुआ करता था. तीसरा मत 1934 में आयोजित पहले "बार" अधिवेशन से जुड़ा है, जिसमें भारतीय और ब्रिटिश वकीलों और न्यायविदों ने भाग लिया था.
एक समय पूरी तरह कृषि पर निर्भर रहने वाली बाढ़ की अर्थव्यवस्था को अब NTPC बाढ़ सुपर थर्मल पावर स्टेशन से नई ताकत मिली है. यह संयंत्र 3300 मेगावाट की क्षमता में से वर्तमान में 2640 मेगावाट बिजली उत्पादन कर रहा है, जो बिहार, झारखंड, सिक्किम, तेलंगाना और ओडिशा जैसे राज्यों को आपूर्ति की जाती है.
1951 में विधानसभा क्षेत्र के रूप में स्थापित बाढ़ ने अब तक 17 चुनाव देखे हैं. एक समय कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाला यह क्षेत्र अब भाजपा का मजबूत क्षेत्र बन चुका है. कांग्रेस ने यहां आखिरी बार 1985 में जीत दर्ज की थी और कुल छह बार विजयी रही है. जेडीयू ने यहां चार बार जीत दर्ज की है, जिनमें से एक समता पार्टी के टिकट पर थी. जनता दल और भाजपा ने दो-दो बार, जबकि जनक्रांति दल, जनता पार्टी और एक निर्दलीय प्रत्याशी ने एक-एक बार सीट जीती है.
वर्तमान विधायक ज्ञानेंद्र कुमार सिंह ने 2005 और 2010 में जेडीयू से, और 2015 तथा 2020 में भाजपा के टिकट पर लगातार चार बार जीत हासिल की है. 2014 में उन्होंने जेडीयू की राजद से गठबंधन के खिलाफ जाकर पार्टी छोड़ दी थी, जिससे भाजपा को यहां मजबूती मिली. हालांकि, हाल ही में उन्होंने भाजपा नेतृत्व की आलोचना कर नीतीश कुमार के प्रति नरम रुख अपनाया है, जिससे उनका राजनीतिक भविष्य असमंजस में दिखता है.
बाढ़ विधानसभा क्षेत्र में अथमलगोला, बेलछी और बारह प्रखंड के अलावा पंडारक प्रखंड की चार ग्राम पंचायतें शामिल हैं. 2020 के चुनाव में यहां कुल 2,80,165 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें अनुसूचित जातियां 19.07% और मुस्लिम मतदाता 3.3% थे. क्षेत्र अभी भी मुख्यतः ग्रामीण है, केवल 14.85% मतदाता शहरी हैं. मतदान प्रतिशत में लगातार गिरावट देखी गई है- 2015 में 55.31%, 2019 लोकसभा चुनाव में 54.02%, और 2020 में 53.66% फीसदी रहा था. ज्ञानेंद्र सिंह की जीत का अंतर भी घटा है. 2010 में 19,395 से घटकर 2020 में केवल 10,240 मत मिला.
(अजय झा)