कुटुंबा बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित एक प्रखंड है जो राज्य के दक्षिणी हिस्से में और मगध क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यह एक ऐसा प्रखंड जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है. यह औरंगाबाद शहर से लगभग 24 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है और इसके आसपास के प्रमुख कस्बों में नविनगर, देव, हरिहरगंज, हुसैनाबाद और डेहरी-ऑन-सोन
शामिल हैं.
कुटुंबा का इतिहास मगध साम्राज्य से भी पहले का है. शेरशाह सूरी (1486–1545 ई.) के शासनकाल में यह क्षेत्र रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बन गया था. अपने प्रशासनिक सुधारों और ग्रैंड ट्रंक रोड के लिए प्रसिद्ध शेरशाह ने इस क्षेत्र को अपने साम्राज्य के अधीन कर लिया. उनकी मृत्यु के बाद कुटुंबा मुगल साम्राज्य के रोहतास सरकार (जनपद) का हिस्सा बना. आज भी यहां अफगानी वास्तुकला के अवशेष देखे जा सकते हैं.
मुगल साम्राज्य के पतन के बेद कुटुंबा स्थानीय जमींदारों के नियंत्रण में आ गया. इन जमींदारों ने ब्रिटिश शासन का विद्रोह किया. कुटुंबा से जुड़े देव राज परिवार ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. देव के फतेह नारायण सिंह ने 1857 की क्रांति में कुंवर सिंह का समर्थन किया. ब्रिटिश काल में यह क्षेत्र बिहार जनपद के अंतर्गत था और यहां के जमींदार अंग्रेजी नीतियों के विरोध में सक्रिय थे.
जनगणना 2011 के अनुसार, कुटुंबा की जनसंख्या लगभग 2,26,599 थी, और जनघनत्व 890 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था. कुल क्षेत्रफल 255 वर्ग किलोमीटर में फैले इस प्रखंड में 216 गांव हैं, जिनमें से अधिकांश छोटे हैं. 12 गांवों की जनसंख्या 200 से कम थी, जबकि 127 गांवों में 1,000 से कम लोग रहते थे. यहां कुल 34,623 घर हैं.
कुटुंबा की साक्षरता दर 58.35% है, जिसमें पुरुषों की दर 66.56% और महिलाओं की 49.61% है. लिंगानुपात 938 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष है. यहां की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है, जिसमें धान, गेहूं और दालें प्रमुख फसलें हैं.
हालांकि कुटुंबा का ऐतिहासिक महत्व प्राचीन है, पर इसकी राजनीतिक पहचान अपेक्षाकृत नई है. 2008 में इसे औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत एक अलग विधानसभा क्षेत्र घोषित किया गया और 2010 में पहली बार चुनाव हुआ. पहला चुनाव जनता दल (यूनाइटेड) ने जीता, जबकि कांग्रेस ने 2015 और 2020 में जीत दर्ज की.
2025 में यह सीट फिर सुर्खियों में आई जब इसके दो बार के विधायक राजेश कुमार को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
राजेश कुमार ने 2010 में करारी हार का सामना किया था और तीसरे स्थान पर रहे थे. लेकिन जब कुटुंबा सीट 2015 में राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के तहत कांग्रेस को सौंपी गई, तो उन्होंने जोरदार वापसी की. 2015 में उन्होंने 10,098 मतों के अंतर से जीत दर्ज की, जिसे 2020 में बढ़ाकर 16,653 कर दिया. इन दोनों चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के लिए हम (HAM) ने चुनाव लड़ा था.
एनडीए अब राजेश कुमार के प्रभाव को कम करने के लिए नई रणनीति बना रहा है. संभावना है कि वह इस बार किसी अन्य घटक दल को मौका दे. 2024 लोकसभा चुनावों में औरंगाबाद की कुटुंबा सहित छह में से सभी विधानसभा सीटों पर राजद की मजबूती ने एनडीए के लिए राह कठिन कर दी है.
कुटुंबा विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, जो यहां के 29.2% मतदाता हैं. मुस्लिम आबादी लगभग 7.8% है. यह पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र है, जहां 2020 में कुल 2,66,974 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 में बढ़कर 2,77,837 हो गए. 2020 में मतदान प्रतिशत मात्र 52.06% रहा.
एनडीए के लिए सबसे बड़ा कार्य है उन लगभग 48% मतदाताओं को सक्रिय करना, जिन्होंने 2020 में मतदान नहीं किया. यही वर्ग महागठबंधन की पकड़ को कमजोर करने और राजेश कुमार की संभावित हैट्रिक को रोकने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है.
(अजय झा)