बांका, बिहार के भागलपुर प्रमंडल में स्थित एक जिला है, जिसे फरवरी 1991 में भागलपुर से अलग कर एक स्वतंत्र जिला बनाया गया था. यह बिहार के दक्षिण-पूर्वी सिरे पर स्थित है और झारखंड से सटी सीमा साझा करता है. इस क्षेत्र की भौगोलिक संरचना भी झारखंड से मिलती-जुलती है. दक्षिण में पहाड़ी और ऊबड़-खाबड़ इलाका है, जबकि उत्तर में समतल भूमि फैली हुई है. झारखंड
की पहाड़ियों से निकलने वाली चानन नदी इस जिले से होकर बहती है और आगे चलकर गंगा में मिल जाती है.
बांका के आसपास के प्रमुख नगरों में भागलपुर (50 किमी उत्तर), जमुई (60 किमी पश्चिम), मुंगेर (80 किमी उत्तर-पूर्व), और झारखंड का गोड्डा (30 किमी दक्षिण-पूर्व) शामिल हैं. राज्य की राजधानी पटना यहां से 247 किमी की दूरी पर स्थित है.
परंपरागत रूप से बांका एक व्यावसायिक केंद्र रहा है और बिहार का 10वां सबसे बड़ा शहर माना जाता है. हालांकि इसकी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार अब भी कृषि ही है. यहां कुछ लघु उद्योग जरूर हैं, लेकिन झारखंड के खनिज संपन्न क्षेत्रों के निकट होने के कारण यहां भारी उद्योगों के विकास की अपार संभावनाएं हैं. इसके बावजूद, बांका को भारत के 250 सबसे पिछड़े जिलों में गिना गया है और यह ‘Backward Regions Grant Fund Programme’ के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त करता है.
हाल तक तक बांका 'रेड कॉरिडोर' का हिस्सा था, जहां नक्सली गतिविधियां और हिंसा खासकर झारखंड से सटे पहाड़ी और वन क्षेत्रों में फैली हुई थीं. लेकिन 2024 में गृह मंत्रालय ने इसे नक्सल-मुक्त घोषित किया, जिसके बाद सीआरपीएफ और एसएसबी की टुकड़ियों को हटा लिया गया और उनकी जगह बिहार स्पेशल आर्म्ड पुलिस की तैनाती की गई. अप्रैल 2025 में शीर्ष नक्सली कमांडर रमेश टुड्डू एक मुठभेड़ में मारा गया.
नक्सल हिंसा के दौर में भी बांका पर्यटन के लिहाज से लोगों को आकर्षित करता रहा है. ऐसा माना जाता है कि पौराणिक 'समुद्र मंथन', जिसमें देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्ति के लिए महासागर का मंथन हुआ था, यहीं स्थित मंदार पर्वत पर हुआ था. यह स्थान आज भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आस्था और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
बांका विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी और यह बांका लोकसभा सीट के छह विधानसभा खंडों में से एक है. 2020 में यहां 2,54,480 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 2,70,818 हो गए. 2020 में अनुसूचित जातियों की भागीदारी 11.26%, अनुसूचित जनजातियों की 2.01% और मुस्लिम मतदाताओं की 13.5% थी. यादव (अहीर) समुदाय इस क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाता है और 22.3% से अधिक मतदाता इसी समुदाय से हैं. केवल 12.55% मतदाता शहरी हैं, जिससे यह एक प्रमुख ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र बना हुआ है.
जहां बिहार में आमतौर पर कम मतदान प्रतिशत देखा जाता है, वहीं नक्सल हिंसा के चरम समय में भी, बांका में हमेशा से अधिक मतदान होता रहा है. 2020 के विधानसभा चुनावों में यहां 62.62% मतदान हुआ था.
बांका ने अब तक 20 बार विधानसभा चुनावों में विधायक चुने हैं, जिनमें चार उपचुनाव शामिल हैं. भाजपा (जिसमें भारतीय जनसंघ की एक जीत भी शामिल है) ने अब तक आठ बार यह सीट जीती है, जबकि कांग्रेस ने सात बार, राजद ने दो बार, स्वतंत्र पार्टी और जनता पार्टी ने एक-एक बार जीत दर्ज की है.
वर्तमान विधायक रामनारायण मंडल (भाजपा) इस सीट से छह बार विजयी रहे हैं, जिनमें 2014 के उपचुनाव से अब तक लगातार तीन जीत शामिल हैं. उन्होंने 2020 में 16,828 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. वहीं जदयू के गिरधारी यादव ने लगातार तीन बार बांका लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की है. 2024 लोकसभा चुनावों में उन्होंने बांका विधानसभा क्षेत्र से 18,031 वोटों की बढ़त हासिल की, जो भाजपा-नीत एनडीए की मजबूत पकड़ को दर्शाता है.
पिछले डेढ़ दशक में विधानसभा और लोकसभा दोनों स्तरों पर राजद को लगातार हार का सामना करना पड़ा है. ऐसे में राजद-नीत महागठबंधन को पारंपरिक मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण से आगे सोचते हुए नई रणनीति बनानी होगी, ताकि 2025 के विधानसभा चुनावों में बांका सीट पर वापसी की जा सके. फिलहाल के राजनीतिक हालातों को देखते हुए भाजपा इस सीट पर मजबूती से जमी हुई है.
(अजय झा)