धोरैया, बिहार के बांका जिले का एक ग्रामीण प्रखंड है, जो कई कस्बों और शहरों से घिरा हुआ है. यह जिला मुख्यालय बांका से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो भागलपुर डिवीजन का हिस्सा है. इसके आसपास के अन्य प्रमुख शहरों में अमरपुर (20 किमी), झारखंड का गोड्डा (25 किमी), भागलपुर (70 किमी) और राज्य की राजधानी पटना (297 किमी) शामिल हैं. इस क्षेत्र के
आस-पास आधा दर्जन नदियां बहती हैं, जिनकी दूरी 8 से 16.8 किलोमीटर तक है. इन नदियों की वजह से धोरैया की समतल भूमि अत्यंत उपजाऊ है, जिससे यह क्षेत्र कृषि के लिए उपयुक्त बनता है और यही इसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है.
धोरैया विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और इसमें राजौन तथा धोरैया के सामुदायिक विकास प्रखंड शामिल हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, धोरैया की जनसंख्या 2,39,762 थी, जबकि राजौन की जनसंख्या 1,97,601 थी. यहां लिंगानुपात क्रमशः 909 और 907 महिलाएं प्रति 1,000 पुरुष था. साक्षरता दर के मामले में राजौन धोरैया से आगे था. राजौन में यह 50.72 प्रतिशत थी, जबकि धोरैया में 46.94 प्रतिशत थी. दोनों प्रखंडों में कुल मिलाकर 392 गांव हैं.
1951 में स्थापित यह विधानसभा क्षेत्र बांका लोकसभा सीट के छह हिस्सों में से एक है. 2020 के विधानसभा चुनावों में यहां कुल 2,96,749 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी 13.56 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाताओं की 18 प्रतिशत थी. इस क्षेत्र में कोई भी शहरी मतदाता नहीं था.
अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में धोरैया ने किसी एक दल को प्राथमिकता नहीं दी है. कांग्रेस, सीपीआई और जेडीयू (समता पार्टी सहित) ने इस सीट को पांच-पांच बार जीता है. 1969 में एक निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुआ था, जबकि राजद ने 2020 में पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज की, जो एनडीए में अंदरूनी कलह का परिणाम था.
धोरैया उन 25 सीटों में से एक थी जहां लोजपा ने एनडीए से अलग होकर जेडीयू का खेल बिगाड़ा. जेडीयू यहां लगातार पांच बार जीत दर्ज कर चुका था और छठी बार भी जीत की संभावना थी. राजद की जीत का अंतर केवल 2,687 वोटों का था, जबकि लोजपा को 4,081 वोट मिले, जो जेडीयू की जीत में बाधा बने.
हालांकि धोरैया में यादव समुदाय की आबादी 15.8 प्रतिशत है, फिर भी राजद को उनकी पहली पसंद नहीं माना जाता. राजद को यह सीट जेडीयू के तीन बार के विधायक भूदेव चौधरी के सहयोग से मिली, जो 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राजद में शामिल हो गए थे. भूदेव चौधरी 2009 में जेडीयू के टिकट पर जमुई से सांसद बने थे, लेकिन 2014 में पार्टी ने उन्हें दोबारा टिकट नहीं दिया. इसके बाद उन्होंने राजद का दामन थाम लिया, जिसने उन्हें 2015 में धोरैया से टिकट दिया. हालांकि वे उस चुनाव में 24,154 वोटों से हार गए, लेकिन 2020 में लोजपा और नीतीश कुमार के बीच टकराव के चलते उन्हें जीत मिल गई.
2024 के लोकसभा चुनाव में लोजपा के एनडीए में वापसी के साथ गठबंधन की एकजुटता का असर साफ दिखा. जेडीयू ने धोरैया विधानसभा क्षेत्र में बढ़त हासिल की.
धोरैया की निम्न साक्षरता दर कभी भी चुनावी भागीदारी में बाधा नहीं बनी. हर चुनाव में यहां मतदान प्रतिशत बढ़ता गया. 2015 में 57.6 प्रतिशत, 2019 में 60.06 प्रतिशत और 2020 में 61 प्रतिशत रहा.
आज भी विकास की बाट जोह रहा यह साधारण सा इलाका आगामी विधानसभा चुनावों में एक बार फिर राजनीतिक मुकाबले का केंद्र बन सकता है. जहां राजद अपनी जीत दोहराने की कोशिश करेगा, वहीं एनडीए को भरोसा है कि धोरैया एक बार फिर उसकी झोली में जा सकता है.
(अजय झा)