दक्षिणी बिहार में स्थित औरंगाबाद एक समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को संजोए हुए है. यह प्राचीन मगध साम्राज्य का हिस्सा था और यहां बिंबिसार, अजातशत्रु, चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक जैसे महान शासकों का शासन रहा. शेरशाह सूरी के शासनकाल में यह क्षेत्र रोहतास सरकार का महत्वपूर्ण भाग बना. मुगलों के शासन के दौरान, टोडरमल ने यहां अफगान विद्रोहों को कुचलां
इस शहर का नाम आमतौर पर मुगल शासक औरंगजेब से जोड़ा जाता है, हालांकि कुछ इतिहासकार इसे गोहद या गोहदपुर जैसे पुराने नामों से भी संबोधित करते हैं.
औरंगाबाद से होकर अदरी नदी बहती है, जबकि सोन नदी इसकी पश्चिमी सीमा बनाती है. बार-बार आने वाले सूखे के बावजूद, कृषि यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी हुई है. चावल, गेहूं, दालें और सरसों प्रमुख फसलें हैं. औद्योगिक विकास ने भी गति पकड़ी है, खासतौर पर नवीनगर सुपर थर्मल पावर प्लांट, जो भारत के सबसे बड़े संयंत्रों में से एक है, रोजगार के नए अवसर प्रदान कर रहा है. पारंपरिक हस्तशिल्प जैसे कालीन बुनाई, कंबल निर्माण और पीतल शिल्प आज भी महत्वपूर्ण हैं, जबकि स्ट्रॉबेरी की खेती अप्रत्याशित रूप से सफल हुई है, जिससे आय और रोजगार के अवसर बढ़े हैं.
1951 में अपनी स्थापना के बाद से, औरंगाबाद की विधानसभा सीट प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच मुकाबले का केंद्र रही है. शुरुआती चुनावों में कांग्रेस का दबदबा रहा, जिसने आठ बार जीत दर्ज की, लेकिन भाजपा ने चार बार जीत हासिल कर अपनी पकड़ मजबूत की. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, स्वतंत्र पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जैसे क्षेत्रीय दलों ने भी कभी-कभार जीत हासिल की. 2000 में राजद की जीत इस प्रवृत्ति को तोड़ने वाली रही- यह पहली बार था जब किसी गैर-राजपूत उम्मीदवार ने यहां जीत दर्ज की. 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के आनंद शंकर सिंह ने भाजपा के चार बार के विधायक रामाधार सिंह को 2,243 वोटों के अंतर से हराया.
राजपूत मतदाता, जो कुल मतदाताओं का 22 प्रतिशत से अधिक हैं, इस सीट की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं. यह समुदाय आमतौर पर राजपूत उम्मीदवारों का समर्थन करता रहा है, चाहे वे किसी भी पार्टी से हों. समय के साथ, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उभरते राजनीतिक रुझानों ने भी यहाँ की राजनीति को प्रभावित किया है.
औरंगाबाद लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिनमें तीन औरंगाबाद जिले में और तीन गया जिले में स्थित हैं. राजद के अभय कुशवाहा, जो 2024 में सांसद बने, इस सीट से जीतने वाले पहले गैर-राजपूत और पहले राजद नेता बने.
पिछले कुछ दशकों में औरंगाबाद नक्सली गतिविधियों के कारण अशांत रहा है. रंगदारी और हिंसा ने इस क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव डाला. 2024 के साउथ एशियन टेररिस्ट पोर्टल (SATP) के आंकड़ों के अनुसार, माओवादी गतिविधियों के मामले में बिहार के जिन तीन जिलों पर मामूली प्रभाव पड़ा, उनमें औरंगाबाद, गया और लखीसराय शामिल हैं. बीते पांच वर्षों में बिहार में माओवादी घटनाओं में 72 प्रतिशत की गिरावट आई है. राज्य सरकार ने 2025 के अंत तक इस उग्रवाद को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है.
औरंगाबाद विधानसभा क्षेत्र की जनसांख्यिकी विविध है. अनुसूचित जातियां 21.64 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता 19 प्रतिशत हैं. ग्रामीण मतदाता 75 प्रतिशत से अधिक हैं, जो इस क्षेत्र की कृषि प्रधानता को दर्शाता है. 2020 के विधानसभा चुनावों में 3,17,947 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से 53.49 प्रतिशत ने मतदान किया. 2024 के लोकसभा चुनाव में यह संख्या बढ़कर 3,24,885 हो गई. औरंगाबाद विधानसभा क्षेत्र में राजद ने भाजपा पर बढ़त बनाई, जिससे 2025 के चुनावों में भाजपा को यह सीट पुनः हासिल करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़ेंगे.
(अजय झा)