मुंगेर बिहार के पूर्वी भाग में गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है. यह राज्य के प्रमुख शहरों में से एक है. मुगल और ब्रिटिश काल में यह अविभाजित बंगाल का एक महत्वपूर्ण शहरी केंद्र था, क्योंकि इसकी भौगोलिक स्थिति इसे पूर्वी द्वार बनाती थी. आज भी यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और व्यावसायिक केंद्र है. मुंगेर की अहमियत इस तथ्य से भी बढ़
जाती है कि यह बिहार में प्रति व्यक्ति आय के मामले में लगातार शीर्ष स्थान पर रहता है.
इस शहर का इतिहास प्राचीन काल तक फैला हुआ है. चौथी शताब्दी में गुप्त काल के दौरान यह सत्ता का केंद्र रहा था. बाद में, 1763 में, बंगाल के नवाब मीर कासिम ने इसे अपनी राजधानी बनाया. उन्होंने यहां एक शस्त्रागार और भव्य महल बनवाए, जो आज भी इसकी ऐतिहासिक विरासत के प्रतीक हैं.
अपने जुड़वां शहर जमालपुर के साथ मिलकर, मुंगेर बिहार का औद्योगिक केंद्र भी है. यहां ब्रिटिश काल के ITC फैक्ट्री, आयुध गन फैक्ट्री (Ordnance Gun Factory), ITC मिल्क डेयरी और कई अन्य उद्योग स्थित हैं. हालांकि, आधिकारिक आंकड़ों से इतर, मुंगेर अपनी समानांतर अर्थव्यवस्था के लिए भी जाना जाता है. एक अवैध कुटीर उद्योग के तहच देसी बंदूकें, रिवॉल्वर और पिस्तौल बनाया जाता है. यह शिल्प मीर कासिम के शासनकाल से चला आ रहा है और आज भी फल-फूल रहा है. आज, मुंगेर की अवैध आग्नेयास्त्र उद्योग देशभर में प्रसिद्ध है और बिहार से बाहर तक हथियारों की आपूर्ति करता है.
मुंगेर विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1957 में हुई थी. यह एक सामान्य श्रेणी की सीट है. इस क्षेत्र ने अक्सर समाजवादी विचारधारा वाले नेताओं को तरजीह दी है, लेकिन किसी एक पार्टी का दबदबा कभी नहीं रहा. अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) ने तीन-तीन बार यह सीट जीती है, जबकि जनता दल ने दो बार जीत हासिल की है. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और जनता पार्टी (सेक्युलर) ने एक-एक बार इस सीट पर जीत दर्ज की है.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी मुंगेर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, पहले 1969 में भारतीय जनसंघ के रूप में और फिर 2020 में जब भाजपा प्रत्याशी प्रणव कुमार ने राजद प्रतिद्वंद्वी को केवल 1,244 वोटों से हराया. इस बार जदयू और लोजपा के साथ गठबंधन में होने के कारण, भाजपा अपनी स्थिति और मजबूत करने की उम्मीद कर रही है. वहीं, जदयू के वरिष्ठ नेता राजीव रंजन सिंह, जिन्हें ललन सिंह के नाम से जाना जाता है, ने पिछले चार लोकसभा चुनावों में से तीन में मुंगेर सीट जीती है. 2014 में एकमात्र अपवाद था, जब लोजपा की वीणा सिंह विजयी रहीं.
जनसांख्यिकी के लिहाज से, अनुसूचित जाति के मतदाता कुल मतदाताओं का लगभग 9.63 प्रतिशत हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता लगभग 13 प्रतिशत हैं. मुंगेर की एक खास बात यह भी है कि यहां ग्रामीण और शहरी मतदाताओं के बीच संतुलन लगभग बराबर है- ग्रामीण मतदाता 52.22 प्रतिशत और शहरी मतदाता 47.78 प्रतिशत हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 3,39,048 पंजीकृत मतदाता थे, जिसमें 49.03 प्रतिशत मतदान हुआ. 2024 के लोकसभा चुनावों तक यह संख्या बढ़कर 3,47,368 हो गई.
दिलचस्प बात यह है कि मुंगेर का मशहूर हिंदी मुहावरे "मुंगेरीलाल के हसीन सपने" से कोई लेना-देना नहीं है, जिसका इस्तेमाल कभी कांग्रेस नेता सोनिया गांधी भाजपा की आलोचना के लिए करती थीं. आज कांग्रेस इस क्षेत्र से लगभग गायब हो गई है, जबकि भाजपा का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है.
(अजय झा)