बिहार के मुंगेर जिले में स्थित उप-मंडल स्तर का शहर तारापुर दो दुखद घटनाओं के लिए प्रमुख रूप से याद किया जाता है. पहली घटना 15 फरवरी 1932 को हुई, जब फ्लैग सत्याग्रह के अंतर्गत लगभग 4,000 स्वतंत्रता सेनानियों ने स्थानीय थाना घेराव किया. इस दौरान ब्रिटिश पुलिस ने उन पर गोलीबारी की, जिसमें 34 स्वतंत्रता सेनानियों की जान चली गई. यह जलियांवाला बाग के
बाद ब्रिटिश हुकूमत द्वारा की गई दूसरी सबसे बड़ी हत्या थी, लेकिन यह घटना दशकों तक अनदेखी रह गई. वर्ष 2022 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 15 फरवरी को शहीद दिवस घोषित कर इसे सम्मान दिया, फिर भी यह बलिदान आज भी बिहार और भारत के अधिकांश लोगों से अनजान है.
दूसरी दुखद घटना वर्ष 1995 के विधानसभा चुनावों के दौरान हुई, जब कांग्रेस प्रत्याशी सच्चिदानंद सिंह और उनके समर्थकों पर ग्रेनेड से हमला हुआ. सिंह को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहीं पर दूसरे हमले में उनकी मौत हो गई. इन झड़पों में कुल 9 लोगों की जान गई. इस हमले में समता पार्टी के नेता शाकुनी चौधरी समेत 33 लोगों को आरोपी बनाया गया, लेकिन मामला धीरे-धीरे दबा दिया गया. बाद में शाकुनी चौधरी ने यही सीट जीत ली.
तारापुर के पास उलई और गड़खे नदियां बहती हैं, जबकि गंगा नदी 34 किलोमीटर दूर सुल्तानगंज में स्थित है. श्रावण मास में हजारों श्रद्धालु सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर बाबा बैद्यनाथ मंदिर, देवघर की ओर 100 किलोमीटर की नंगे पांव यात्रा करते हैं, जो तारापुर से होकर गुजरती है. इस दौरान शहर में पूरे महीने धार्मिक उल्लास और मेलों का माहौल रहता है.
तारापुर से जिला मुख्यालय मुंगेर 41 किमी, भागलपुर 50 किमी, जमुई 55 किमी, देवघर 80 किमी, और राजधानी पटना 177 किमी दूर है. यहां की प्रमुख जीविका कृषि है, लेकिन अब यह क्षेत्र व्यापार और शिक्षा का भी केंद्र बनता जा रहा है.
तारापुर विधानसभा क्षेत्र जमुई लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जिसमें असरगंज, तेतिया बंबर, संग्रामपुर ब्लॉक, और खड़गपुर ब्लॉक की आठ ग्राम पंचायतें आती हैं. 1951 में इसके गठन के बाद अब तक यहां 19 बार चुनाव हुए हैं, जिनमें दो उपचुनाव शामिल हैं.
अब तक कांग्रेस पार्टी ने यहां से पांच बार जीत दर्ज की है, जबकि जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू ने छह बार, जिसमें से दो बार समता पार्टी के रूप में यहां से सफलता पाई है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने भी तीन बार यहां से जीत हासिल की है.
इसके अलावा संयुक्त समाजवादी पार्टी, शोषित दल, जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भी एक-एक बार यह सीट जीती है.
इस क्षेत्र की राजनीति में शकुनी चौधरी का खासा प्रभाव रहा है. उन्होंने कुल छह बार यहां से जीत दर्ज की है, जबकि उनकी पत्नी पार्वती देवी ने एक बार यहां से जीत हासिल की. शकुनी चौधरी को राजनीतिक दल बदलने के लिए जाना जाता है. उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में, कांग्रेस, समता पार्टी और आरजेडी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. वे राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री भी रहे हैं.
बाद में वे जेडीयू में शामिल हुए, फिर हम पार्टी में गए, 2015 में हारने के बाद 2019 में राजनीति से संन्यास ले लिया. उनके बेटे सम्राट चौधरी, जो अब बिहार के उपमुख्यमंत्री हैं, ने कभी तारापुर से चुनाव नहीं लड़ा और हमेशा परबत्ता सीट को प्राथमिकता दी.
2015 से तारापुर सीट जेडीयू के पास है. 2021 के उपचुनाव में कोविड से दिवंगत विधायक मेवालाल चौधरी की मृत्यु के बाद जेडीयू के राजीव कुमार सिंह ने महज 3,852 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. 2020 में तारापुर में 3,17,340 मतदाता थे, जो 2024 में बढ़कर 3,38,869 हो गए, जिसमें अनुसूचित जाति 15.1%, मुस्लिम मतदाता 6.8% और शहरी मतदाता केवल 12.38% रहे.
बिहार की तरापुर विधानसभा सीट उन गिनी-चुनी क्षेत्रों में से एक है जहां हर चुनाव के साथ मतदान प्रतिशत में निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही है. वर्ष 2015 के विधानसभा चुनावों में जहां कुल मतदान प्रतिशत 52.66% था, वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में यह आंकड़ा बढ़कर 53.45% तक पहुंच गया. इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनावों में यह और बढ़ते हुए 55.08% तक पहुंच गया.
तारापुर की राजनीति में ओबीसी, विशेषकर कुशवाहा (कोइरी) समुदाय का दबदबा है. यहां अधिकांश विधायक इसी जाति से रहे हैं, चाहे वे किसी भी पार्टी से जुड़े हों। यह भी कहा जाता है कि भाजपा ने सम्राट चौधरी को बिहार में आगे बढ़ाया ताकि यादवों के बाद सबसे बड़े समूह कोइरी वोटरों को साधा जा सके.
भले ही जेडीयू ने 2021 का उपचुनाव मुश्किल से जीता हो, लेकिन एनडीए को अब भी तारापुर में अपनी मजबूत पकड़ पर भरोसा है. इसका मुख्य कारण है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में लोजपा (रामविलास) ने तारापुर खंड में 13,029 वोटों की बढ़त बनाई.
(अजय झा)