बिहार के नवादा जिले में बसा गोविंदपुर गांव, प्रशासनिक दृष्टिकोण से एक प्रखंड मुख्यालय भी है. यह गांव सकरी नदी के किनारे स्थित है, और वर्षा ऋतु में अक्सर बाढ़ की चपेट में आ जाता है. हर साल आने वाली मौसमी बाढ़ें इसे नदी के पार बसे इसके मुख्य बाजार, डेलहुआ से पूरी तरह काट देती हैं. इससे स्थानीय निवासियों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है,
क्योंकि नदी पार करना असंभव हो जाता है. इसी वजह से बाढ़ के दौरान स्थानीय डाकघर और थाना भी गोविंदपुर से कट जाते हैं. इस अलगाव का लाभ उठाकर नक्सलवादी इस क्षेत्र में सक्रिय हो जाते हैं, क्योंकि पुलिस की पहुंच यहां तक नहीं हो पाती.
शैक्षणिक आंकड़े गोविंदपुर की स्थिति को और गंभीर बना देते हैं. यहां की साक्षरता दर मात्र 47.56% है, जिसमें पुरुषों की साक्षरता दर 57.10% और महिलाओं की मात्र 37.71% है. इस प्रखंड में कुल 72 गांव हैं, जिनमें जनसंख्या में काफी विविधता है. 3 गांवों में 200 से कम लोग रहते हैं, 28 गांवों की आबादी 200 से 999 के बीच है और 31 गांवों में 1,000 से 4,999 लोग निवास करते हैं. केवल दो गांवों की जनसंख्या 5,000 से अधिक है, जिनमें से एक की आबादी 10,000 से अधिक है.
गोविंदपुर का ऐतिहासिक विवरण सीमित है, लेकिन यहां मौर्य और गुप्तकालीन प्रभाव के प्रमाण मिलते हैं. कई पुरातात्विक स्थलों से इसके गौरवशाली अतीत की झलक मिलती है. 1967 में गोविंदपुर को नवादा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा बनाकर एक अलग विधानसभा क्षेत्र बनाया गया था, जिसके बाद यहां राजनीति में एक परिवार का प्रभुत्व कायम हो गया.
इस राजनीतिक वर्चस्व की शुरुआत हुई 1969 में जब युगल किशोर यादव ने लोकतांत्रिक कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की. उनके निधन के बाद उनकी पत्नी गायत्री देवी यादव ने उपचुनाव जीता और 1980, 1985, 1990 (कांग्रेस) और 2000 (राजद) में चार बार विधायक बनीं. इसके बाद उनके पुत्र कौशल यादव ने तीन बार जीत दर्ज की (दो बार निर्दलीय और 2010 में जेडीयू से). फिर उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव 2015 में कांग्रेस से जीतीं. लेकिन 2020 में यह सिलसिला टूटा जब राजद के मोहम्मद कमरान ने पूर्णिमा यादव को 33,074 वोटों से हराया.
1967 से लेकर अब तक गोविंदपुर विधानसभा क्षेत्र में कुल 15 चुनाव हुए हैं. इनमें कांग्रेस ने 6 बार जीत दर्ज की, निर्दलीयों ने 3 बार, राजद ने 2 बार और लोकतांत्रिक कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल तथा जेडीयू ने 1-1 बार जीत हासिल की.
गोविंदपुर विधानसभा क्षेत्र की एक विशेषता यह है कि यादव समुदाय के अलावा अन्य विजयी उम्मीदवार भी यादव समुदाय से ही रहे हैं, हालांकि वे भिन्न उपनामों का उपयोग करते हैं, जिसकी जनसंख्या 20% से अधिक है. लेकिन अनुसूचित जाति (SC) के मतदाता संख्या में उनसे भी अधिक हैं-25.19% हैं. हालांकि, वे यादवों की तरह संगठित नहीं हैं और अनेक जातियों में विभाजित हैं. मुस्लिम समुदाय के मतदाता भी यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनकी भागीदारी 13.6% है. यह एक पूर्णतः ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र है, जिसमें एक भी शहरी मतदाता पंजीकृत नहीं है. 2020 के विधानसभा चुनावों में इसके सभी 3,19,130 मतदाता ग्रामीण थे, लेकिन केवल 50.85% मतदान हुआ. 2024 के लोकसभा चुनावों में यह संख्या बढ़कर 3,23,059 हो गई.
2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को गोविंदपुर से कुछ उम्मीदें मिलीं, जब भाजपा के नवादा से विजयी उम्मीदवार विवेक ठाकुर ने राजद के श्रवण कुमार कुशवाहा को गोविंदपुर में केवल 1,617 वोटों से पीछे छोड़ा.
अब 2025 विधानसभा चुनाव की ओर नजरें टिकी हैं. क्या एनडीए यादव परिवार की राजनीतिक विरासत को पूरी तरह तोड़ पाएगा? और क्या मतदाता फिर किसी नए प्रयोग के लिए तैयार होंगे, या पुरानी नीतियों की ओर लौटेंगे?
(अजय झा)