बिहार के 38 जिलों में से एक अरवल प्रशासनिक मुख्यालय भी है. यह पहले जहानाबाद जिले का हिस्सा था, लेकिन अगस्त 2001 में इसे एक अलग जिले के रूप में स्थापित किया गया. जनसंख्या की दृष्टि से अरवल बिहार का तीसरा सबसे कम आबादी वाला जिला है.
अरवल कभी ‘रेड कॉरिडोर’ का हिस्सा रहा है, जहां नक्सल गतिविधियां थी. इस क्षेत्र में भूमि विवादों के चलते
दलितों और सवर्णों के बीच हिंसक टकराव हुए. 1992 में 40 भूमिहारों की हत्या वाला 'बारा नरसंहार' और 1999 का 'सेनारी नरसंहार', जिसमें 34 भूमिहार मारे गए. ये उन कई घटनाओं में से एक थी जब इस क्षेत्र में नक्सलियों का बोलबाला था. इन हमलों के जवाब में भूमिहार समुदाय ने रणवीर सेना नामक निजी मिलिशिया का गठन किया, जिसने 1997 में लक्ष्मणपुर 'बाथे नरसंहार' को अंजाम दिया, जिसमें 58 दलितों की जान गई.
इस क्षेत्र में उद्योग की कमी के कारण कृषि ही लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत है. सोन नदी के पास होने और उच्च जलस्तर की वजह से यहां की जमीन अत्यंत उपजाऊ है. इसलिए अरवल की अर्थव्यवस्था पूर्णतः कृषि पर निर्भर है.
मैगध क्षेत्र का हिस्सा होने के नाते अरवल की जनसंख्या विविध है. यहां प्रति 1000 पुरुषों पर 927 महिलाएं हैं और साक्षरता दर 69.54 प्रतिशत है. जिले में कुल 335 गांव हैं और केवल 7.40 प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में निवास करती है. अनुसूचित जातियां 20.16 प्रतिशत आबादी का हिस्सा हैं.
धार्मिक दृष्टिकोण से 90.48 प्रतिशत लोग हिंदू हैं, जबकि 9.17 प्रतिशत मुस्लिम हैं. भाषा के मामले में 86.53 प्रतिशत लोग मगही बोलते हैं, इसके बाद हिंदी (8.11 प्रतिशत) और उर्दू (4.96 प्रतिशत) का स्थान है.
1951 में स्थापित अरवल विधानसभा सीट, जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. यहां की राजनीति हमेशा अस्थिर रही है. पिछले चार विधानसभा चुनावों में चार अलग-अलग दलों ने जीत दर्ज की है. कुल मिलाकर अरवल से अब तक 17 बार विधायक चुने जा चुके हैं, जिनमें से सबसे उल्लेखनीय हैं निर्दलीय उम्मीदवार कृष्णानंदन प्रसाद सिंह, जिन्होंने 1980 से 1990 तक लगातार तीन बार जीत हासिल की.
कांग्रेस यहां कभी प्रभावशाली नहीं रही. उसकी आखिरी जीत 1962 में हुई थी. भाकपा, लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने दो-दो बार जीत दर्ज की है, जबकि समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल, भाजपा और भाकपा (माले) (लिबरेशन) को एक-एक बार सफलता मिली है.
2020 के विधानसभा चुनाव में भाकपा (माले) (लिबरेशन), जो राजद-नीत महागठबंधन का हिस्सा थी, ने अरवल सीट पर भाजपा को 19,950 मतों से हराया. 2024 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा और उसके सहयोगियों को चुनौती का सामना करना पड़ा, जहां राजद ने जहानाबाद लोकसभा सीट जीत ली और अरवल विधानसभा क्षेत्र में जद (यू) पर 15,730 वोटों की बढ़त बनाई.
अनुसूचित जातियों के मतदाता अरवल की कुल मतदाता संख्या का लगभग 21.23 प्रतिशत हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता लगभग 9.4 प्रतिशत हैं. 2020 में कुल 2,58,687 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से 56.11 प्रतिशत ने मतदान किया. 2024 तक यह संख्या बढ़कर 2,69,506 हो गई.
(अजय झा)