टिकारी, जिसे टेकारी भी कहा जाता है, बिहार के गया जिले का एक अनुमंडल स्तरीय नगर है. कभी यह क्षेत्र टेकारी राज का प्रमुख केंद्र हुआ करता था, जो मुगल और ब्रिटिश शासन के दौरान अपने चरम पर था. गया, बोधगया और नवादा के नजदीक स्थित यह ऐतिहासिक नगर आज भले ही अपनी पूर्व गरिमा से दूर हो, लेकिन इसका इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है.
250 वर्षों (1709–1958) तक अस्तित्व में रहा. यह कोई स्वतंत्र राज्य नहीं था, बल्कि एक जमींदारी रियासत थी, जो 7,500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले 2,046 गांवों पर शासन करती थी. वर्तमान गया से लगभग 15 किलोमीटर पश्चिम में स्थित यह क्षेत्र मोरहर और जमुना दो नदियों के बीच बसा हुआ था.
टेकारी राजवंश के वंशज आज बहुत कम बचे हैं, लेकिन इस परिवार की उत्पत्ति गौरवपूर्ण नहीं थी. जब मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था, तब टेकारी के जमींदार धीर सिंह ने इस क्षेत्र में विद्रोहों को दबाने में अहम भूमिका निभाई. इसके बदले में 13वें मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने उन्हें 'राजा' की उपाधि प्रदान की. इस परिवार ने पहले मराठों के खिलाफ मुगलों का साथ दिया और फिर अवसरवादी नीति अपनाते हुए अपने जमींदारी हितों की रक्षा के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी का समर्थन किया. इसके पुरस्कारस्वरूप उन्हें 'महाराजा' की उपाधि मिली. इस परिवार की संपत्ति अपार थी. वे कंपनी को वार्षिक ₹3 लाख चुकाते थे, जबकि अपनी जमींदारी से ₹6 लाख की वसूली करते थे. स्वतंत्रता के बाद जमींदारी प्रथा के समाप्त होने से इस परिवार में हिंसक विवाद शुरू हो गए, जो रक्तपात और राजवंश के पतन में बदल गए.
वर्तमान में टिकारी का स्वरूप उसके ऐतिहासिक वैभव से बिल्कुल भिन्न है. 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की साक्षरता दर मात्र 56.66 प्रतिशत है और जनसंख्या घनत्व 1,099 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है. 147 गांवों में फैले इस क्षेत्र में 239,187 लोग 36,949 घरों में निवास करते हैं, यानी औसतन प्रति परिवार लगभग 6.5 सदस्य.
टिकारी, औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली छह विधानसभा सीटों में से एक है. लेकिन जैसे टिकारी राज की विरासत धीरे-धीरे फीकी पड़ी, वैसे ही 2010 से पहले के चुनावी रिकॉर्ड भी लगभग अनुपलब्ध हैं. 2010 से अनिल कुमार इस क्षेत्र में एक प्रमुख राजनीतिक चेहरा बनकर उभरे हैं. उन्होंने पहली बार 2010 में जदयू के टिकट पर जीत दर्ज की. 2015 में टिकट न मिलने पर उन्होंने पार्टी बदलकर हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) का दामन थामा, लेकिन चुनाव हार गए. 2020 में हम ने एनडीए के साथ मिलकर टिकरी से चुनाव लड़ा, जिसमें जदयू और बीजेपी के समर्थन से अनिल कुमार ने 2,630 वोटों के मामूली अंतर से जीत दर्ज की. यह मुकाबला इसलिए भी कड़ा हो गया था क्योंकि एनडीए से अलग होकर लोजपा ने 16,000 से अधिक वोट ले लिए थे. 2025 में सीट को बनाए रखना एनडीए के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर तब जब 2024 के लोकसभा चुनावों में आरजेडी ने औरंगाबाद सीट जीतकर टीकरी विधानसभा क्षेत्र में 9,242 वोटों की बढ़त हासिल की.
हालांकि टिकारी एक सामान्य सीट है, यहां अनुसूचित जातियों की आबादी 23.88 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता 5.9 प्रतिशत हैं. केवल 4.62 प्रतिशत मतदाता शहरी क्षेत्र से आते हैं, जिससे यह क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण प्रकृति का है.
2020 के विधानसभा चुनावों में टीकरी में 3,10,262 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से 60.25 प्रतिशत ने मतदान किया. 2024 के लोकसभा चुनावों तक यह संख्या बढ़कर 3,18,059 हो गई.
(अजय झा)