मोकामा, बिहार के पटना जिले के बाढ़ अनुमंडल के अंतर्गत एक प्रखंड है, जिसे पारंपरिक रूप से उत्तर बिहार का प्रवेश द्वार माना जाता रहा है. इसका कारण है "राजेंद्र सेतु", एक रेल सह सड़क पुल, जो मोकामा को उत्तर बिहार से जोड़ता है. 1959 से लेकर 1982 तक यह एकमात्र पुल था, जब तक कि पटना को हाजीपुर से जोड़ने वाला "गांधी सेतु" नहीं बना. हाल ही में निर्मित
जेपी सेतु (दिघा, पटना को सारण जिले के सोनपुर से जोड़ता है) ने राजेंद्र सेतु का भार कम किया है, जिससे मोकामा की भौगोलिक महत्ता में कुछ कमी आई है.
गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित यह शहर पटना से लगभग 85 किमी दूर है. इसके समीपवर्ती शहरों में बाढ़ (25 किमी), बरौनी (19 किमी) और बेगूसराय (30 किमी) शामिल हैं. मोकामा विधानसभा क्षेत्र मुंगेर लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है, जो यहां से लगभग 55 किमी दूर है.
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में मोकामा का एक विशेष स्थान है. प्रसिद्ध क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी, जो खुदीराम बोस के सहयोगी थे, 1908 में ब्रिटिश मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड की हत्या के असफल प्रयास के बाद मोकामा घाट रेलवे स्टेशन पर आत्महत्या कर शहीद हो गए थे. उनकी स्मृति में शहर में "शहीद गेट" निर्मित है. महात्मा गांधी की 1942 की यात्रा ने भी स्थानीय स्वतंत्रता संग्राम को नई प्रेरणा दी.
कभी बिहार के शुरुआती औद्योगिक केंद्रों में गिना जाने वाला मोकामा आज भी भारत का दूसरा सबसे बड़ा मसूर उत्पादक क्षेत्र है. यहां की कई लघु उद्योग इकाइयां स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करती हैं.
1951 में गठित मोकामा विधानसभा क्षेत्र में घोसवरी और मोकामा ब्लॉक के साथ-साथ पंडारक ब्लॉक के 11 ग्राम पंचायत शामिल हैं. इस क्षेत्र की राजनीति 1990 के दशक से बाहुबलियों के प्रभाव में रही है. इसकी शुरुआत हुई कुख्यात अपराधी दिलीप कुमार सिंह उर्फ 'बड़े सरकार' से, जो 1990 और 1995 में जनता दल से विधायक बने और 1995 से 2020 तक मंत्री भी रहे, जब लालू प्रसाद यादव और बाद में उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं. उन्हें 2000 में निर्दलीय प्रत्याशी सूरजभान सिंह ने हराया. 2005 से अनंत कुमार सिंह उर्फ 'छोटे सरकार' का वर्चस्व रहा, जिन्होंने लगातार पांच बार जीत हासिल की, तीन बार जदयू, एक बार निर्दलीय और एक बार राजद उम्मीदवार के रूप में. उन्होंने 2020 का चुनाव जेल में रहते हुए भी जीता, हालांकि अवैध AK-47 रखने के मामले में अयोग्य घोषित होने पर 2022 का उपचुनाव उनकी पत्नी नीलम देवी (राजद) ने जीता.
हाल ही में AK-47 मामले में बरी होने के बाद अनंत सिंह फिर से जदयू के करीब आ गए हैं. 2025 में उनके फिर से चुनाव लड़ने की संभावना मजबूत दिख रही है. यहां तक कि भाजपा भी उनके प्रभाव को देखते हुए खुलकर उनके खिलाफ जाने से बच सकती है.
मोकामा के मतदाता 2020 में 2,75,028 से बढ़कर 2024 में 2,90,513 हो गए. 2020 में अनुसूचित जातियों की संख्या 16.7% और मुस्लिम समुदाय 2.3% था. अनंत सिंह का मुख्य वोट आधार राजपूत समुदाय (लगभग 14.3%) है, जबकि यादव मतदाता लगभग 24% हैं. 2020 में मतदान प्रतिशत 54.07% रहा. अनंत सिंह ने उस वर्ष 35,757 मतों से जीत दर्ज की थी, जबकि 2022 में उनकी पत्नी की जीत का अंतर घटकर 16,741 रह गया. 2024 के लोकसभा चुनावों में जदयू की जीत के बावजूद मोकामा में राजद ने 1,079 वोटों की बढ़त हासिल की.
अब जबकि 2025 के विधानसभा चुनाव करीब हैं, मोकामा के सामने एक बार फिर वही पुराना सवाल खड़ा है, क्या मतदाता पिछले 35 वर्षों की तरह इस बार भी भय की छाया में मतदान करेंगे, या कोई नई शुरुआत करेंगे?
(अजय झा)