बिहारशरीफ बिहार राज्य के पटना प्रमंडल के अंतर्गत नालंदा जिले का मुख्यालय है. यह प्राचीन काल से ही ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध रहा है. यह स्थान पाल वंश के शासनकाल में एक प्रमुख केंद्र था और यहीं पर ओदंतपुरी महाविहार स्थित था, जो एक प्रमुख बौद्ध शिक्षण संस्थान है. ओदंतपुरी, जिसे ओदंतपुर या उद्दंडपुरा भी कहा जाता है, नालंदा
महाविहार के बाद दूसरा सबसे प्राचीन महाविहार था. इसकी स्थापना आठवीं शताब्दी ईस्वी में पाल वंश के पहले शासक गोपाल प्रथम ने की थी.
अपने चरम पर, ओदंतपुरी में लगभग 12,000 छात्र भारत और आसपास के क्षेत्रों से अध्ययन करने आते थे. दुर्भाग्यवश, इसे भी नालंदा महाविहार की तरह ही 12वीं शताब्दी के अंत में तुर्क आक्रमणकारी मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने नष्ट कर दिया. इसके बाद बिहारशरीफ कई मुस्लिम शासकों के अधीन रहा. यह बस्ती बुद्ध के समय से भी पहले की है और पाल साम्राज्य के दौरान मगध की राजधानी रही थी.
'बिहारशरीफ' नाम की उत्पत्ति 'विहार' (मठ या मठवासी स्थल) शब्द से हुई है, जिससे राज्य का नाम 'बिहार' भी पड़ा. ‘शरीफ’ (अर्थात् ‘श्रेष्ठ’ या ‘महान’) शब्द 13वीं शताब्दी के सूफी संत शेख मखदूम शर्फुद्दीन अहमद यहिया मनेरी के सम्मान में जोड़ा गया, जिनकी दरगाह यहीं स्थित है. उनकी आध्यात्मिक प्रतिष्ठा और प्रभाव के कारण नगर को ‘शरीफ’ उपनाम मिला. आज का बिहारशरीफ बौद्ध, हिंदू और इस्लामी परंपराओं का संगम है.
यह नगर बड़ी पहाड़ी की तलहटी में पंचाने नदी के किनारे स्थित है. भू-आकृति समतल है, जिसमें कुछ पहाड़ी क्षेत्र भी हैं. नालंदा यहां से 12 किमी, राजगीर 20 किमी, बख्तियारपुर 31 किमी, नवादा 33 किमी, और पटना 61 किमी की दूरी पर स्थित हैं. बिहारशरीफ सड़क और रेल मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. नालंदा और राजगीर के निकट होने के कारण यहां पर्यटकों की आवाजाही बनी रहती है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख आधार है.
इतिहास की ही तरह, बिहारशरीफ विधानसभा क्षेत्र भी किसी एक राजनीतिक विचारधारा से बंधा नहीं रहा है. वामपंथी, दक्षिणपंथी और समाजवादी विचारधाराओं वाली पार्टियों ने यहां से जीत दर्ज की है. इस क्षेत्र की राजनीतिक यात्रा भी दिलचस्प रही है. इसकी स्थापना 1951 में दक्षिण बिहार क्षेत्र के रूप में हुई थी, जिसे 1962 में उत्तर बिहार कहा गया और अंततः 1967 में इसे बिहारशरीफ नाम दिया गया. यह विधानसभा क्षेत्र राहुई और बिहार दो विकास खंडों में फैला हुआ है और नालंदा लोकसभा क्षेत्र के सात खंडों में से एक है.
अब तक यहां 18 चुनाव हो चुके हैं, जिनमें कांग्रेस ने पांच बार जीत हासिल की है, जिसमें शुरुआती चार चुनाव भी शामिल हैं. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जिसमें जनसंघ शामिल है, ने चार-चार बार जीत दर्ज की है. जनता दल (यूनाइटेड) ने तीन बार, जबकि जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने एक-एक बार जीत हासिल की है.
नालंदा जिले से संबंध रखने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बिहारशरीफ में राजनीतिक पकड़ मजबूत नहीं रही है, जिसका एक प्रमुख कारण जातिगत समीकरण है. जहां नालंदा जिले के अन्य अधिकांश क्षेत्रों में कुर्मी जाति का वर्चस्व है, वहीं बिहारशरीफ कोइरी बहुल क्षेत्र है. डॉ. सुनील कुमार, जो कोइरी जाति से हैं, इस क्षेत्र से लगातार पांच बार विधायक चुने गए हैं. उन्होंने पहले तीन चुनाव जदयू के टिकट पर जीते, लेकिन जब 2013 में नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़ा, तो उन्होंने विद्रोह कर भाजपा का दामन थाम लिया. 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव उन्होंने भाजपा के टिकट पर जीते.
2020 में इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 3,78,887 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 लोकसभा चुनाव में बढ़कर 3,88,088 हो गए. इनमें अनुसूचित जातियों का प्रतिशत 14.47% और मुस्लिम मतदाता 22.2% हैं. यह क्षेत्र मुख्य रूप से शहरी है, हालांकि ग्रामीण मतदाताओं की संख्या भी लगभग 33.06% है. लेकिन यहां मतदाता उत्साह की कमी देखी गई है, 2020 में केवल 48.56% मतदान हुआ, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 47.12% और 2015 विधानसभा चुनाव में 51.19% रहा.
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा-जदयू गठबंधन को बिहारशरीफ में 24,387 मतों की बढ़त मिली, जिससे उन्हें आगामी 2025 के विधानसभा चुनावों में आत्मविश्वास मिला है. चूंकि विपक्ष ने आखिरी बार यह सीट वर्ष 2000 में जीती थी, ऐसे में भाजपा को इस सीट को बरकरार रखने में बड़ी चुनौती नजर नहीं आ रही है.
(अजय झा)