मनेर या मानेर शरीफ, बिहार की राजधानी पटना के दानापुर अनुमंडल में स्थित एक प्रखंड स्तरीय नगर है, जिसकी ऐतिहासिक जड़ें प्राचीन पाटलिपुत्र जितनी ही पुरानी मानी जाती हैं. आज यह स्थान सूफी संतों मखदूम याह्या मनेरी (13वीं सदी) और मखदूम शाह दौलत (16वीं सदी) की दरगाहों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन मुगलों द्वारा इसे इस्लामी शिक्षा का केंद्र बनाए जाने से
पहले भी मानेर संस्कृति और शिक्षा का समृद्ध केंद्र था.
प्राचीन काल में मानेर को "मनियार मठान" के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ है- "संगीतमय नगरी". यह स्थान इतना प्रसिद्ध था कि संस्कृत के महान व्याकरणाचार्य पाणिनि ने यहां अध्ययन किया था, इससे पहले कि वे अपनी प्रसिद्ध रचना "अष्टाध्यायी" की रचना करें. माना जाता है कि यह स्थान बौद्ध शिक्षा का भी केंद्र था, और यहां एक प्राचीन जैन मंदिर भी स्थित है. एक जर्जर किला आज भी मानेर के गौरवशाली अतीत का मूक साक्षी है, हालांकि इसके निर्माणकर्ता और काल के बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है. यह अवश्य ज्ञात है कि यह किला इस्लामी प्रभाव से पूर्व का है, जो बाद में मुगल सूबेदार इब्राहीम खान कक्कड़ द्वारा दो दरगाहों और एक मस्जिद के निर्माण के साथ आया.
आज मानेर एक ऐसा स्थान है जहां ग्रामीण और शहरी भारत का मेल दिखाई देता है. पटना मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र का हिस्सा होने के कारण, यह इलाका शहरीकरण की तेज प्रक्रिया से गुजर रहा है. कभी कृषि और तीर्थ पर्यटन पर आधारित यह कस्बा अब तेजी से विकसित हो रहा है. राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित मानेर पटना (24 किमी पूर्व) और आरा (24 किमी पश्चिम) के बीच स्थित है और यह भारत के एकमात्र जीवित त्रिवेणी संगम का घर है, जहां सोन और घाघरा नदियां गंगा से मिलती हैं.
इतिहास से आगे बढ़ें तो मानेर अपनी घी से भरी मिठाइयों के लिए भी जाना जाता है, खासकर यहां के प्रसिद्ध 'मानेर के लड्डू'. राजमार्ग के किनारे लगी मिठाई की दुकानों पर यह लड्डू खूब बिकते हैं. स्थानीय लोग दावा करते हैं कि इन लड्डुओं का विशिष्ट स्वाद सोन नदी के मीठे जल से आता है.
मानेर की राजनीति भी इसके इतिहास जितनी ही रोचक है. यहां यादव मतदाता लगभग 26 प्रतिशत हैं, और इस समुदाय ने 1951 में सीट के गठन के बाद से लगातार प्रभाव बनाए रखा है. यह क्षेत्र पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है, और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लिए यह एक प्रमुख चुनावी रणक्षेत्र बन चुका है. लालू प्रसाद यादव 2009 में इस सीट से हार गए थे, जबकि उनकी बेटी मीसा भारती 2014 और 2019 में पराजित होने के बाद 2024 में आखिरकार विजयी हुईं.
मानेर विधानसभा क्षेत्र में मानेर प्रखंड और बिहटा प्रखंड के 21 ग्राम पंचायत शामिल हैं. 2020 विधानसभा चुनाव में यहां मतदाताओं की संख्या 3,25,625 थी, जो 2024 लोकसभा चुनाव में बढ़कर 3,43,468 हो गई. अनुसूचित जाति के मतदाता 13.48 प्रतिशत, मुस्लिम 5.1 प्रतिशत और शहरी मतदाता 20.27 प्रतिशत हैं. 2020 में मतदान प्रतिशत 61.07 रहा.
मानेर में अब तक 18 चुनाव हो चुके हैं, जिनमें दो उपचुनाव शामिल हैं. कांग्रेस ने सात बार जीत हासिल की, जबकि राजद लगातार पांच बार विजयी रही है. दो बार निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं, जबकि सीपीआई, जनता पार्टी, जनता दल और समता पार्टी (अब जदयू) ने एक-एक बार जीत दर्ज की है.
यहां दल-बदल का चलन भी खूब रहा है. श्रीकांत निराला (यादव) ने चार बार जीत दर्ज की, पहले 1990 में कांग्रेस से, फिर 1995 में जनता दल से और फिर दो बार राजद से. 2010 में वे जदयू से हारे, और 2015 में भाजपा व 2020 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव हार गए, जहां उन्हें सिर्फ 7.41 प्रतिशत वोट मिले. उनके माता-पिता, राम नगिना यादव और रजमति देवी भी दो-दो बार विजयी हुए, पिता निर्दलीय और मां कांग्रेस से. इस परिवार ने मिलकर मानेर से कुल आठ बार जीत हासिल की है, और लगभग सभी प्रमुख दलों का प्रतिनिधित्व किया है.
इतिहास को देखते हुए, मानेर में टिकट के लिए एक और राजनीतिक दल-बदल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. फिर भी, लगातार पाच जीतों और 2024 के लोकसभा चुनाव में 34,459 वोटों की बढ़त के बाद, राजद फिलहाल मानेर में मजबूत स्थिति में है.
(अजय झा)