राजगीर, जो नालंदा जिले का एक अनुमंडल है, बोधगया के साथ बिहार के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है. पांच पहाड़ियों के बीच बसा यह प्राचीन नगर लगभग 4000 वर्षों के इतिहास को समेटे हुए है. प्राचीन काल में इसे राजगृह कहा जाता था, जिसका अर्थ है "राजाओं का निवास स्थान". यह नगर हर्यंक, प्रद्योत, बृहद्रथ और मगध साम्राज्य जैसी अनेक राजवंशों
की राजधानी रहा है. राजगीर हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों में अत्यंत पवित्र माना जाता है.
महाभारत में राजगीर को जरासंध का साम्राज्य बताया गया है- एक शक्तिशाली और भयावह राजा जो अपनी सैन्य ताकत के लिए प्रसिद्ध था. भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के साथ राजगीर आए थे ताकि इस अत्याचारी राजा से मुक्ति दिलाई जा सके. भीम ने जरासंध को कुश्ती में पराजित किया और उसके शरीर को दो हिस्सों में चीरकर अलग-अलग दिशाओं में फेंक दिया ताकि वे फिर से जुड़ न सकें. इस ऐतिहासिक युद्धस्थल को आज जरासंध अखाड़ा के नाम से जाना जाता है. हिंदू शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि भगवान राम अपने भाइयों के साथ जनकपुर (वर्तमान नेपाल) की यात्रा के दौरान राजगीर आए थे.
हर्यंक वंश के राजा बिम्बिसार और उनके पुत्र अजातशत्रु ने मगध साम्राज्य की राजधानी के रूप में राजगीर से शासन किया था. बाद में अजातशत्रु के पुत्र उदायिन ने राजधानी को पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) स्थानांतरित कर दिया.
गौतम बुद्ध और जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने राजगीर में लंबा समय बिताया और महत्वपूर्ण उपदेश दिए. यह भी माना जाता है कि 12वें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ का जन्म यहीं हुआ था. उनके नाम पर बना प्राचीन मंदिर आज भी यहां स्थित है, साथ ही कई अन्य जैन मंदिर भी। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए राजगीर को एक आधार के रूप में प्रयोग किया था. एक अद्भुत 2500 वर्ष पुरानी साइक्लोपियन दीवार आज भी विद्यमान है, जिसे रक्षा और बाढ़ नियंत्रण के लिए बनाया गया था.
राजगीर में स्थित ब्रह्मकुंड एक पवित्र गर्म जलस्रोत है, जहां सात अलग-अलग झरनों का जल एकत्र होता है. माना जाता है कि इस जल में स्नान करने से अनेक रोगों से मुक्ति मिलती है.
राजगीर से मात्र 12 किमी दूर नालंदा महाविहार स्थित है, जबकि जिला मुख्यालय बिहारशरीफ 25 किमी और राज्य की राजधानी पटना 110 किमी दूर है. गया यहां से 75 किमी की दूरी पर है.
राजगीर 1957 में विधानसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में आया, और इसे अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित किया गया. यह नालंदा लोकसभा क्षेत्र के सात विधानसभा क्षेत्रों में से एक है.
अब तक राजगीर में 16 बार चुनाव हो चुके हैं, और यह सीट भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बारे में यह धारणा तोड़ती है कि यह केवल सवर्णों की पार्टी है. भाजपा ने यहां नौ बार जीत दर्ज की है, जिसमें दो बार भारतीय जनसंघ के रूप में भी शामिल है. कांग्रेस, सीपीआई और जेडीयू ने दो-दो बार और जनता पार्टी ने एक बार जीत दर्ज की है.
2020 में इस सीट पर 2,94,082 मतदाता पंजीकृत थे, जो 2024 लोकसभा चुनाव में बढ़कर 3,10,086 हो गए. अनुसूचित जाति के मतदाता यहां 25.12% हैं, जिससे सीट की आरक्षण स्थिति न्यायसंगत बनी रहती है. मुस्लिम मतदाता 6.5% और शहरी मतदाता केवल 16.3% हैं, जिससे यह क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण बना हुआ है.
भाजपा के सत्यदेव नारायण आर्य, जो आगे चलकर त्रिपुरा और हरियाणा के राज्यपाल बने, ने यहां से आठ बार जीत दर्ज की, जिसमें 1977 का जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव भी शामिल है. 2015 में उनकी हार हुई जब जेडीयू के रवि ज्योति कुमार ने उन्हें 5,390 वोटों से हराया. बाद में जब भाजपा और जेडीयू ने पुनः गठबंधन किया, तब 2020 में जेडीयू के कौशल किशोर ने कांग्रेस में जा चुके रवि ज्योति कुमार को 16,048 वोटों से पराजित किया. 2024 लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने इस विधानसभा क्षेत्र में 33,108 वोटों की बढ़त दर्ज कर अपनी स्थिति और मजबूत कर ली.
हालांकि भाजपा की इस सीट पर दावेदारी बनी हुई है, लेकिन जेडीयू फिलहाल इसे छोड़ने को तैयार नहीं दिखती. यदि कोई अप्रत्याशित राजनीतिक परिवर्तन न हुआ, तो यह तय माना जा सकता है कि राजगीर सीट एनडीए के पाले में ही रहेगी, चाहे उम्मीदवार भाजपा से हो या जेडीयू से.
(अजय झा)