दीघा विधानसभा क्षेत्र बिहार की राजधानी पटना में स्थित है और पटना साहिब लोकसभा सीट के छह खंडों में से एक है. यह क्षेत्र 2008 में बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया, जिसका उद्देश्य मतदाताओं का संतुलित वितरण सुनिश्चित करना था.
दीघा विधानसभा क्षेत्र, मतदाता संख्या के लिहाज से, बिहार का सबसे बड़ा निर्वाचन
क्षेत्र बन चुका है. 2020 के विधानसभा चुनावों में यहां 4,60,868 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 4,73,108 हो गए.
यह क्षेत्र पटना नगर निगम के 14 वार्डों और छह पंचायतों में फैला हुआ है, जो मुख्य रूप से गंगा नदी के किनारे बसे हुए हैं. दीघा में पटना के कुछ सबसे समृद्ध आवासीय जैसे पाटलिपुत्र हाउसिंग कॉलोनी इलाके शामिल हैं.
पूर्व में, दीघा और पहलेजा घाट के बीच एक जल परिवहन सेवा चलती थी, जो दक्षिण और उत्तर बिहार को जोड़ती थी. आज इसकी जगह जेपी सेतु ने ले ली है. एक रेल-सह-सड़क पुल जो दीघा को सारण जिले के सोनपुर से जोड़ता है. 4,556 मीटर लंबा यह पुल, असम के बोगीबील पुल के बाद भारत का दूसरा सबसे लंबा रेल-सह-सड़क पुल है. यह महात्मा गांधी सेतु के बाद पटना को उत्तर बिहार से जोड़ने वाला दूसरा पुल भी है, जो 1982 में खोला गया एक सड़क पुल है जो पटना को हाजीपुर से जोड़ता है. उल्लेखनीय है कि जेपी सेतु 1959 में बने राजेंद्र सेतु के बाद बिहार में गंगा पर बना दूसरा रेल-सह-सड़क पुल है.
जेपी सेतु का निर्माण वर्षों तक विवादों में घिरा रहा. रामविलास पासवान, जब रेल मंत्री थे, तब वे पुल को अपने निर्वाचन क्षेत्र हाजीपुर से जोड़ना चाहते थे, वहीं लालू प्रसाद यादव इसे अपने गृह जिले सारण के सोनपुर से जोड़ना चाहते थे. यह विवाद तब सुलझा जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हस्तक्षेप किया और सोनपुर को पुल का उतर बिहार की ओर का अंतिम बिंदु घोषित किया.
इस पुल के बन जाने के बाद पाटलिपुत्र जंक्शन रेलवे स्टेशन की स्थापना हुई और उत्तर बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश (जैसे गोरखपुर) के लिए नई रेल सेवाएं शुरू हुईं. हालांकि, राजधानी से संपर्क बेहतर होने के बावजूद उत्तर बिहार के लोगों को अपेक्षित आर्थिक लाभ अभी तक नहीं मिल सके हैं.
दीघा विधानसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास काफी छोटा है, अब तक केवल तीन विधानसभा चुनाव हुए हैं. पहले चुनाव (2010) में जेडीयू ने 60,462 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की. लेकिन 2015 में जब जेडीयू ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया, तब मुकाबला पूर्व सहयोगियों के बीच सीधा हो गया और बीजेपी ने 24,779 वोटों से जीत हासिल की. 2020 में जब दोनों पार्टियां फिर से गठबंधन में आईं, तो बीजेपी के संजीव चौरसिया ने सीपीआई(एमएल)(एल) की शशि यादव को 46,234 वोटों से हराया.
लोकसभा चुनावों में भी दीघा क्षेत्र में बीजेपी की बढ़त लगातार रही. 2009 में 41,389 वोट, 2014 में 61,163 वोट, 2019 में 58,342 वोट और 2024 में 40,730 वोटों से आगे रही.
बीजेपी की मजबूत स्थिति के पीछे दो अहम वजहें हैं- यह क्षेत्र पूरी तरह शहरी है. यहां केवल 1.76 प्रतिशत ग्रामीण मतदाता हैं और यहां कायस्थ समुदाय की बड़ी संख्या है, जो पारंपरिक रूप से बीजेपी समर्थक माने जाते हैं. हालांकि, जाति आधारित जनसंख्या का कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है. 2020 में अनुसूचित जाति के मतदाता 10.68 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता 9.4 प्रतिशत थे.
दीघा की सबसे बड़ी समस्या यहां की बेहद कम मतदाता भागीदारी है, जो शहरी बिहार की आम प्रवृत्ति बन चुकी है. 2015 के विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत 42.17% था, जो 2019 में घटकर 38.76% और 2020 में और गिरकर मात्र 37% रह गया. यह बेहद कम भागीदारी राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करती है और चुनाव आयोग और विपक्षी महागठबंधन (राजद नेतृत्व वाला) के लिए चिंता का विषय है.
यदि मतदाताओं की भागीदारी बढ़े, तो दीघा विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल सकता है.
(अजय झा)