सूर्यगढ़ा, बिहार के लखीसराय जिले का एक प्रखंड है. यह राज्य के मध्य भाग में स्थित है और यहां समतल मैदान और छोटे-छोटे पहाड़ हैं. सूर्यगढ़ा के उत्तर में गंगा नदी बहती है, और कई छोटी नदियां और उनकी सहायक नदियां भी इसके आसपास प्रवाहित होती हैं, जिससे यहां की भूमि अत्यंत उपजाऊ बन जाती है और खेती के लिए उपयुक्त है.
इस क्षेत्र का नाम 'सूर्यगढ़ा' दर्ज है, जबकि बिहार सरकार के दस्तावेज़ों में इसे 'सूरजगढ़' कहा गया है. यह चुनाव आयोग की लापरवाही का एक और उदाहरण है, जहां मतदाताओं और क्षेत्रों के नामों की वर्तनी में अक्सर गड़बड़ियां कर दी जाती हैं. चूंकि यह एक निर्वाचन क्षेत्र की प्रोफाइल है, अतः हम चुनाव आयोग की वर्तनी 'सूर्यगढ़ा' का ही प्रयोग करेंगे.
लखीसराय, जो कि जिले का मुख्यालय है, सूर्यगढ़ा से मात्र 8 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है. बेगूसराय 30 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में, मुंगेर 40 किलोमीटर पूर्व में, और राज्य की राजधानी पटना 125 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है.
सूर्यगढ़ा का इतिहास भी अत्यंत रोचक है. वर्ष 1534 में, यहां शेरशाह सूरी और मुगल सम्राट हुमायूं के बीच एक बड़ा युद्ध हुआ था. इस युद्ध में शेरशाह ने हुमायूं को हराकर दिल्ली सल्तनत पर कब्जा कर लिया था. यह युद्ध इतिहास में ‘सूरजगढ़ का युद्ध’ के नाम से प्रसिद्ध है.
शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद भी इस क्षेत्र में एक और संघर्ष हुआ, जिसमें बीजापुर (अब कर्नाटक के विजयपुरा) के शासक आदिल शाह की हत्या मियां सुलेमान नामक व्यक्ति ने कर दी थी. हालांकि मियां सुलेमान के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. इसके अतिरिक्त, यह क्षेत्र बौद्ध प्रभाव में भी रहा है, कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने यहां की एक पहाड़ी पर तीन वर्षों तक निवास किया था.
सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी और यह मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. वर्ष 2020 में इस क्षेत्र में कुल 3,38,795 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 3,62,004 हो गए. अनुसूचित जाति के मतदाता यहां 14.77 प्रतिशत हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता 3.5 प्रतिशत हैं. परंतु सबसे प्रभावशाली मतदाता समूह यहां यादव समुदाय (अहीर) का है, जिसकी आबादी 25 प्रतिशत से अधिक है और यह चुनाव परिणामों पर निर्णायक प्रभाव डालता है. सूर्यगढ़ा पूरी तरह से ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र है, जिसमें कोई शहरी मतदाता नहीं है.
चुनावों में मतदान प्रतिशत में लगातार वृद्धि देखी गई है. 2015 में यह 51.96%, 2019 में 55.14% और 2020 में 56.04% तक पहुंच गया.
अब तक यहां कुल 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें कांग्रेस, भाकपा (CPI) और राजद (RJD) ने चार-चार बार जीत हासिल की है. निर्दलीय और भाजपा ने दो-दो बार विजय प्राप्त की है, जबकि प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने एक बार जीत दर्ज की है.
वर्तमान विधायक प्रहलाद यादव हैं, जो पांच बार इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं. उन्होंने 1995 में निर्दलीय, 2000 और फरवरी 2005 में राजद उम्मीदवार के रूप में, और 2015 और 2020 में भी राजद से जीत दर्ज की. भाजपा ने अक्टूबर 2005 और 2010 के चुनावों में यह सीट जीती थी.
2020 के विधानसभा चुनाव में प्रहलाद यादव और राजद की जीत में एलजेपी के चिराग पासवान की भूमिका भी अहम रही. चिराग ने 2020 में नीतीश कुमार के नेतृत्व से असहमति जताते हुए एनडीए से नाता तोड़ लिया, जिससे जदयू को 25 विधानसभा क्षेत्रों में नुकसान हुआ, जिनमें सूर्यगढ़ा भी शामिल था. उस चुनाव में प्रहलाद यादव ने 9,589 मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी, जबकि एलजेपी को 44,797 वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर रही. जदयू के उम्मीदवार रमणंद मंडल को 52,717 मत प्राप्त हुए.
2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए की एकता का असर देखने को मिला. जदयू के उम्मीदवार और मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से विजेता राजीव रंजन सिंह (ललन सिंह) को सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र में 7,895 वोटों की बढ़त मिली. इससे यह स्पष्ट है कि 2025 का विधानसभा चुनाव सूर्यगढ़ा में काफी रोमांचक और नजदीकी हो सकता है. अब राजद के लिए इस सीट पर फिर से जीत हासिल करना आसान नहीं होगा, क्योंकि एनडीए पहले से कहीं अधिक संगठित और चुनाव के लिए तैयार है.
(अजय झा)