फारबिसगंज बिहार के अररिया जिले में स्थित एक सामान्य वर्ग की विधानसभा सीट है. इस सीट की स्थापना 1951 में हुई थी और तब से अब तक यहां 17 बार चुनाव हो चुके हैं. यह विधानसभा क्षेत्र अररिया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. फारबिसगंज ब्लॉक और इसके आसपास के ग्रामीण एवं शहरी इलाकों को मिलाकर बना यह क्षेत्र 2020 में 3,40,760 पंजीकृत मतदाताओं का घर था, जिनमें से 1,15,176 (करीब 33.80%) मुस्लिम मतदाता थे. 2024 के लोकसभा चुनावों में यह संख्या बढ़कर 3,56,438 हो गई. यह क्षेत्र आमतौर पर अच्छा मतदान प्रतिशत दर्ज करता है; 2020 में 60.56% मतदान हुआ, जो पिछले तीन चुनावों में सबसे कम रहा.
फारबिसगंज अररिया जिले के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित है, जो नेपाल की सीमा से मात्र आठ किलोमीटर और पटना से लगभग 300 किलोमीटर दूर है. यह कस्बा सड़क और रेल दोनों से अच्छी तरह जुड़ा है. यहां का रेलवे स्टेशन बरौनी-कटिहार-राधिकापुर रेल लाइन पर स्थित है. इसके पास के प्रमुख कस्बों में अररिया (28 किमी), जोगबनी (13 किमी), और पूर्णिया (75 किमी) शामिल हैं. नेपाल की तरफ, बिराटनगर मात्र 18 किमी दूर है और भारत-नेपाल व्यापार का प्रमुख केंद्र है. नेपाल के अन्य प्रमुख कस्बे जैसे धरान (80 किमी) और इतहरी (72 किमी) भी जोगबनी और बिराटनगर के रास्ते से पहुँचे जा सकते हैं.
फारबिसगंज का इलाका समतल और गंगा-कोसी के जलोढ़ मैदानों से बना है. कोसी और परमान नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में होने के कारण यहां मानसून के दौरान बाढ़ की समस्या आम है, जो बुनियादी ढांचे और कृषि दोनों को प्रभावित करती है. जलभराव की समस्या के बावजूद मिट्टी उपजाऊ है और कृषि इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है.
धान, गेहूं, मक्का और दालें यहां की प्रमुख फसलें हैं, जबकि कुछ इलाकों में जूट की खेती भी होती है. इसके अलावा, सब्जी और तिलहन की खेती भी होती है. औद्योगिक विकास सीमित है, लेकिन नेपाल के साथ सीमावर्ती व्यापार में उपभोक्ता वस्तुएं और कृषि उत्पादों का आदान-प्रदान होता है. रोजगार की तलाश में बाहर पलायन आम है, और प्रवासियों द्वारा भेजी गई रकम कई परिवारों की आय का प्रमुख स्रोत है.
फारबिसगंज का नाम ब्रिटिश काल के एक अधिकारी अलेक्जेंडर फोर्ब्स के नाम पर पड़ा. अपनी सीमा पार की स्थिति और रेलवे कनेक्टिविटी के कारण यह स्थान एक व्यापारिक केंद्र के रूप में उभरा. समय के साथ यह प्रशासनिक और शैक्षणिक गतिविधियों का केंद्र बन गया है.
फारबिसगंज की राजनीतिक यात्रा कांग्रेस से शुरू हुई और अब यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ बन चुका है. 1952 से 1985 के बीच कांग्रेस ने यहां नौ में से आठ बार जीत दर्ज की. सरयू मिश्रा, जो 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जीतकर आए थे, बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए और लगातार छह बार चुनाव जीते. उनके कुल सात जीत आज भी एक रिकॉर्ड है.
भाजपा ने 1990 में मयानंद ठाकुर की जीत के साथ यहां अपनी शुरुआत की, जिन्होंने कांग्रेस के शीतल प्रसाद गुप्ता को हराया. ठाकुर ने 1995 में भी जीत दर्ज की. 2000 में बहुजन समाज पार्टी के जाकिर हुसैन खान ने निर्दलीय उम्मीदवार लक्ष्मी नारायण मेहता को हराकर एक अलग रुझान दिखाया. 2005 से सीट पर भाजपा का कब्जा लगातार बना हुआ है.
लक्ष्मी नारायण मेहता भाजपा में शामिल हुए और 2005 के दोनों चुनावों में जीत दर्ज की. 2010 में पद्म पराग रॉय ने जीत हासिल की. 2015 से विद्यासागर केशरी विधायक हैं और लगातार दो बार सीट बचाए हुए हैं.
2015 में केशरी ने राजद के कृत्यानंद बिस्वास को 25,238 वोटों से हराया था. 2020 में उनका मार्जिन घटकर 19,702 हो गया, जब कांग्रेस के जाकिर हुसैन खान उनके खिलाफ थे. इसी तरह लोकसभा चुनावों में भी भाजपा के प्रत्याशियों ने बढ़त बनाए रखी है. 2024 में भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह ने फारबिसगंज क्षेत्र में राजद के मोहम्मद शहनवाज आलम को 39,203 वोटों से हराया, जबकि 2019 में यही अंतर 51,692 था.
हालांकि भाजपा की जीत का अंतर कुछ हद तक कम हुआ है, फिर भी पार्टी की स्थिति मजबूत बनी हुई है. सभी समुदायों में पार्टी को स्थिर समर्थन मिलता दिख रहा है. जब तक कोई बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम या जनसंख्या में बड़ा बदलाव नहीं होता, फारबिसगंज सीट 2025 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के लिए सुरक्षित मानी जा रही है.
(अजय झा)
BJP
INC
JSP
RJSBP
IND
IND
IND
IND
IND
IND
IND
IND
IND
Nota
NOTA
Zakir Hussain Khan
INC
Pradeep Kumar Deo
IND
Raja Raman Bhaskar
BSP
Nota
NOTA
Akhlaqur Rahman
JAP(L)
Md.arif
IND
Rupesh Raj
PP
Chandan Kumar Mandal
RJSBP
Ram Kumar Bhagat
RPI(A)
Ashok Mishra
SJDD
Madan Kumar
AADP
Devesh Kumar Thakur
VSP
Nasir
BP(L)
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