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न रूस-चीन आए, न अपने आसमान पर कंट्रोल, न मिसाइलों का इफेक्ट... ईरान के लिए युद्ध के 5 बड़े सबक

12-दिवसीय इजरायल-ईरान युद्ध ने ईरान की सैन्य और रणनीतिक कमजोरियों को उजागर किया. रूस-चीन का समर्थन न मिलना, हवाई नियंत्रण की कमी, मिसाइलों की नाकामी, जासूसी नेटवर्क की कमजोरी, और क्षेत्रीय सहयोगियों का असफल होना इस युद्ध के प्रमुख सबक हैं. यह युद्ध ईरान के लिए एक चेतावनी है कि बिना आधुनिक रक्षा और मजबूत रणनीति के वह भविष्य के संघर्षों में टिक नहीं पाएगा.

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ईरान की मदद न रूस ने की, ना ही चीन ने. इस जंग में साथी ही मुंह मोड़ गए. (फाइल फोटोः AFP/AP/Getty)
ईरान की मदद न रूस ने की, ना ही चीन ने. इस जंग में साथी ही मुंह मोड़ गए. (फाइल फोटोः AFP/AP/Getty)

13 जून 2025 को शुरू हुआ 12-दिवसीय इजरायल-ईरान युद्ध ईरान के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ. इस युद्ध में इजरायल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन के तहत ईरान के परमाणु, सैन्य और मिसाइल ठिकानों पर हमले किए, जबकि अमेरिका ने ऑपरेशन मिडनाइट हैमर में शामिल होकर फोर्डो, नतांज और इस्फहान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया. 

इस युद्ध में ईरान को कई कमजोरियां उजागर हुईं, जैसे रूस और चीन का समर्थन न मिलना, हवाई नियंत्रण की कमी और मिसाइलों की प्रभावशीलता में कमी. आइए जानते हैं उन पांच प्रमुख सबकों को जो ईरान को इस युद्ध से सीखने चाहिए, ताकि वह भविष्य में अपनी रक्षा रणनीति को मजबूत कर सके. 

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1. रूस और चीन पर निर्भरता की गलती

ईरान ने हमेशा रूस और चीन को अपने रणनीतिक सहयोगी माना, लेकिन इस युद्ध में दोनों देशों ने ईरान को अकेला छोड़ दिया. रूस, जो यूक्रेन युद्ध में व्यस्त है ने केवल कूटनीतिक बयान दिए. रूस के विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी हमलों की निंदा की, लेकिन कोई सैन्य मदद नहीं दी. X पर @VikingEyes ने लिखा कि रूस कमजोर है और चीन मदद करने को तैयार नहीं. दो हफ्ते पहले ईरान, रूस और चीन ने संयुक्त नौसैनिक अभ्यास किया, लेकिन जब तेहरान पर मिसाइलें गिरीं, कोई सहयोगी आगे नहीं आया. 

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5 key lessons for Iran from this war

चीन, जो ईरान से तेल आयात करता है, ने भी केवल शांति की अपील की. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इजरायली हमलों की निंदा की, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया. ईरान को यह सबक मिला कि वह रूस और चीन जैसे बड़े सहयोगियों पर पूरी तरह निर्भर नहीं रह सकता. भविष्य में ईरान को आत्मनिर्भर रक्षा प्रणाली विकसित करनी होगी और क्षेत्रीय सहयोगियों, जैसे सऊदी अरब या तुर्की के साथ संबंध सुधारने होंगे.

2. हवाई नियंत्रण की कमी का खामियाजा

इजरायल ने युद्ध के पहले 24 घंटों में ईरान की 120 वायु रक्षा प्रणालियों को नष्ट कर दिया, जो तेहरान की कुल वायु रक्षा का एक-तिहाई था. इसके बाद इजरायली वायुसेना ने पश्चिमी और मध्य ईरान में हवाई श्रेष्ठता हासिल कर ली. फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल ने केवल एक ड्रोन खोया, जबकि उसके 200 से अधिक विमान 330 से ज्यादा हथियार गिराने में सफल रहे. ईरान की S-300, बावर-373 और अन्य रक्षा प्रणालियां इजरायली हमलों को रोकने में नाकाम रहीं.

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X पर @iam_mughal ने लिखा कि ईरान को एक मजबूत वायुसेना विकसित करनी होगी. वायु रक्षा प्रणालियों को उन्नत करना होगा. इस युद्ध ने दिखाया कि बिना हवाई नियंत्रण के कोई देश आधुनिक युद्ध में टिक नहीं सकता. ईरान को अपनी वायुसेना को मजबूत करना होगा. रूस या चीन से आयातित पुरानी प्रणालियों के बजाय स्वदेशी तकनीक पर ध्यान देना होगा.

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3. मिसाइलों की प्रभावशीलता में कमी

ईरान को मध्य पूर्व में सबसे बड़ा मिसाइल भंडार माना जाता है, जिसमें 2000 बैलिस्टिक मिसाइलें थीं. युद्ध में ईरान ने इजरायल पर 450 से अधिक मिसाइलें और 1000 ड्रोन दागे, लेकिन इनका असर सीमित रहा. इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर के अनुसार, ईरान ने शुरुआत में 200 मिसाइलें दागीं, लेकिन बाद में यह संख्या घटकर 15-20 मिसाइलें प्रति हमला रह गई. इजरायल की आयरन डोम, एरो-2 और एरो-3 प्रणालियों ने 90% मिसाइलों को रोक लिया.

हालांकि, हाज कासेम मिसाइल ने इजरायल की रक्षा प्रणाली को चकमा दिया और सोरोका मेडिकल सेंटर (बीर शेवा) को नुकसान पहुंचाया, जिसमें 76 लोग घायल हुए. फिर भी ईरान की मिसाइलें ज्यादातर सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने में नाकाम रहीं. रॉयटर्स के अनुसार हाइफा की तेल रिफाइनरी को छोड़कर कोई बड़ा सैन्य नुकसान नहीं हुआ. ईरान को यह सबक मिला कि उसे हाइपरसोनिक मिसाइलों और मैन्यूवरेबल वारहेड जैसी उन्नत तकनीकों पर निवेश करना होगा.

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4. जासूसी नेटवर्क और आंतरिक सुरक्षा की कमजोरी

इजरायल की मोसाद ने ईरान में गहरी पैठ बनाई थी. अटलांटिक काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार, मोसाद ने हमलों से पहले ईरान में ड्रोन और हथियार तैनात किए. IRGC कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की सटीक जानकारी हासिल की. इजरायल ने 21 सैन्य कमांडरों और 10 परमाणु वैज्ञानिकों को मार गिराया. इजरायल ने ईरान की वायु रक्षा और नेतृत्व को नष्ट किया, जबकि ईरान की मिसाइलों का असर कम रहा. 

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ईरान की आंतरिक सुरक्षा में खामियां थीं, जिससे मोसाद को जासूसी का मौका मिला. ईरान को इजरायल के जासूसी नेटवर्क को खत्म करना होगा. भविष्य में ईरान को अपनी खुफिया एजेंसियों को मजबूत करना होगा. साइबर सुरक्षा पर ध्यान देना होगा, ताकि दुश्मन की घुसपैठ रोकी जा सके.

5. क्षेत्रीय सहयोगियों की कमजोरी

ईरान की रणनीति एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस (हमास, हिजबुल्लाह, हूती और सीरिया) पर निर्भर थी, लेकिन युद्ध के समय ये सहयोगी नाकाम रहे. हिजबुल्लाह और हमास को इजरायल पहले ही कमजोर कर चुका था. सीरिया में असद शासन का पतन हो चुका था. हूती विद्रोहियों ने इजरायल पर मिसाइलें दागीं, लेकिन कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा. रैंड कॉर्पोरेशन के विशेषज्ञों ने कहा कि ईरान की प्रॉक्सी रणनीति अब कमजोर हो चुकी है.

ईरान को यह समझना होगा कि प्रॉक्सी युद्ध की रणनीति अब पुरानी पड़ चुकी है. उसे क्षेत्रीय सहयोगियों को मजबूत करने के बजाय अपनी पारंपरिक सैन्य शक्ति बढ़ानी होगी. साथ ही, सऊदी अरब और तुर्की जैसे देशों के साथ कूटनीतिक संबंध सुधारने होंगे, ताकि क्षेत्रीय अलगाव कम हो.

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युद्ध का प्रभाव और भविष्य की रणनीति

इस युद्ध में ईरान को भारी नुकसान हुआ. 657-800 लोग मारे गए, जिनमें 263 नागरिक थे और 1800-3056 घायल हुए. नतांज में 15000 सेंट्रीफ्यूज नष्ट हुए, लेकिन फोर्डो को कम नुकसान हुआ. तेहरान, इस्फहान और कोम में नागरिक और औद्योगिक ढांचे क्षतिग्रस्त हुए, जिससे 150-200 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ.

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ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूट के अनुसार, इजरायल ने ईरान की सैन्य और आर्थिक क्षमता को कमजोर किया, लेकिन ईरान का शासन अभी भी टिका हुआ है. ईरान को अब अपनी रक्षा रणनीति में बदलाव करना होगा. आत्मनिर्भर हथियार उत्पादन, उन्नत वायु रक्षा और साइबर युद्ध क्षमता पर ध्यान देना जरूरी है. साथ ही, उसे परमाणु कार्यक्रम को लेकर कूटनीतिक रास्ता अपनाना होगा, ताकि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचा जा सके.

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