गोचर (Gochar) का अर्थ ज्योतिष में ग्रहों का एक राशि से दूसरी राशि में निरंतर भ्रमण करना होता है, जिससे वर्तमान समय में ग्रहों की स्थिति बदलती रहती है और उसका प्रभाव व्यक्ति की जन्म कुंडली पर शुभ या अशुभ रूप में पड़ता है. यह शब्द ‘गो’ (ग्रह) और ‘चर’ (चलना) से मिलकर बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- ग्रहों का चलना या गतिमान रहना.
ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु अपनी-अपनी गति से राशिचक्र में घूमते हैं और जब वे किसी नई राशि में प्रवेश करते हैं, तो उसे गोचर कहा जाता है. गोचर का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि इसके माध्यम से यह जाना जाता है कि वर्तमान समय में कौन-सा ग्रह किस राशि और भाव में स्थित है तथा वह जन्म कुंडली के अनुसार क्या फल प्रदान कर रहा है, जिससे जीवन की घटनाओं के समय का अनुमान लगाया जाता है.
ग्रहों की गोचर अवधि अलग-अलग होती है. चंद्रमा सबसे तेज गति से लगभग ढाई दिन में राशि बदलता है. सूर्य, बुध और शुक्र लगभग एक महीने में, मंगल लगभग 57 दिनों में, गुरु लगभग एक वर्ष में, शनि लगभग ढाई वर्षों में और राहु-केतु लगभग डेढ़ वर्ष में राशि परिवर्तन करते हैं.
ज्योतिषीय नजरिए से जब कोई ग्रह व्यक्ति की जन्म राशि या कुंडली के किसी भाव से होकर गुजरता है, तो वह उसी भाव से संबंधित परिणाम देता है. उदाहरण के तौर पर, शनि का गोचर साढ़ेसाती या ढैय्या के रूप में जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है, जबकि अन्य ग्रहों के गोचर का प्रभाव अपेक्षाकृत छोटा या मध्यम होता है. संक्षेप में, गोचर ग्रहों की वर्तमान चाल और स्थिति को दर्शाता है, जो जन्म कुंडली के साथ मिलकर भविष्य की संभावित घटनाओं का संकेत देता है.
Shani Dev: शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती ज्योतिष शास्त्र के महत्वपूर्ण ग्रह प्रभाव माने जाते हैं. शनिदेव को कर्मफल दाता और न्याय का देवता कहा जाता है, इसलिए इनके प्रभाव को व्यक्ति के कर्मों से जोड़कर देखा जाता है.
29 दिसंबर को बुध धनु राशि में प्रवेश करेंगे, जो साल 2025 का अंतिम गोचर होगा. ज्योतिष के अनुसार, इस परिवर्तन से तीन राशियों की किस्मत में अचानक सकारात्मक बदलाव आ सकता है. इनके नौकरी-व्यापार और करियर में लाभ के योग बनेंगे. साथ ही, वाणी और व्यवहार में सुधार से सफलता मिलेगी.