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दुश्मन देश में जासूस पकड़ा जाए तो उसे बचाने के लिए क्या कानून है, इंटरनेशनल कोर्ट कब देती है दखल?

यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा का पाकिस्तान के साथ कनेक्शन कटघरे में है. क्या वाकई वे देश के खिलाफ साजिश में शामिल थीं, या मामूली ट्रैवल व्लॉगर थीं, जो अनजाने ही इस्तेमाल हो गया. कई और लोग भी इस्लामाबाद के लिए जासूसी के आरोप में हिरासत में हैं. ये तो हुई अपने देश की बात. लेकिन भारतीय जासूस अगर विदेशी धरती पर पकड़ाए तो क्या होता है? क्या उसे बचाने के लिए इंटरनेशनल स्तर पर नियम है?

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दुश्मन देश में पकड़े गए जासूस के लिए विएना कन्वेंशन में सीमित छूट है.(Photo- Getty Images)
दुश्मन देश में पकड़े गए जासूस के लिए विएना कन्वेंशन में सीमित छूट है.(Photo- Getty Images)

पहलगाम आतंकी हमले के बाद से भारतीय खुफिया एजेंसियां ऐसे लोगों को खोज रही हैं, जो अंदरभेदी हैं, यानी पाकिस्तान से मिले हुए हैं. इसी कड़ी में यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा समेत कई नाम आ चुके, जिनके तार पाकिस्तानी इंटेलिजेंस से जुड़े हो सकते हैं. दुश्मन दूसरे देश के लोगों को तो हनीट्रैप करता ही है, साथ ही वो अपने लोगों को भी दूसरे मुल्क भेजता रहा ताकि खुफिया जानकारियां उस तक पहुंच सकें. कई बार जासूस पकड़े भी जाते हैं और विदेशी जेलों में खौफनाक मौत मरते हैं. तो क्या कोई संधि या इंटरनेशनल कानून नहीं, जो जासूसी को रेगुलेट करे!

ग्लोबल स्तर पर क्या हालात हैं

जासूसी को लेकर इंटरनेशनल लॉ में स्थिति थोड़ी पेचीदा है, क्योंकि यह उन कम सबजेक्ट में से है जिनके बारे में कानून अक्सर चुप रहता है, जबकि असल दुनिया में इसकी भूमिका बहुत बड़ी है. चूंकि हर देश को अपनी सुरक्षा का अधिकार है, लिहाजा इस काम को एक नेसेसरी इविल की तरह देखा जाता रहा, जो गलत तो है, लेकिन जरूरी भी है.

सरकारें अपने लोगों को ट्रेंड करके दुश्मन देश में प्लांट करती रहीं. कई बार ये पकड़े भी जाते हैं. तब इन्हें कोई खास छूट नहीं मिलती. यहां तक कि देश की सरकार भी उन्हें बचाने से बचती रही. लेकिन जासूसी क्योंकि युद्ध और डिप्लोमेसी का जरूरी हिस्सा माना जाता रहा, तो जेनेवा कन्वेंशन ने इसपर कुछ बात जरूर की. 

केवल इस स्थिति में मिलती है कुछ छूट

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कन्वेंशन के प्रोटोकॉल 1 में जासूसों के लिए कुछ नियम हैं लेकिन वो सिर्फ जंग के दौरान हैं और सीमित वक्त के लिए. मसलन, अगर कोई सैनिक दुश्मन के इलाके में वर्दी में जाता है और जानकारी इकट्ठा करता है, तो वो जासूस नहीं कहलाता, वो स्काउटिंग ड्यूटी पर है और उसे कैदी के रूप में सुरक्षा मिलती है. लेकिन यही काम अगर सिविल ड्रेस में, छिपकर किया जाए, तो शख्स जासूस माना जाएगा. उसे जेनेवा कन्वेंशन के तहत सेफ्टी नहीं मिलेगी, बल्कि लगभग सारे देशों का जासूसी को लेकर सख्त कानून और सजाएं हैं. 

vienna convention on spies

जासूस पकड़ा जाए तो क्या होता है

पकड़े गए जासूस को उस देश के कानूनों के हिसाब से ट्रायल का सामना करना होता है. उससे कड़ी पूछताछ होती है और इस बीच टॉर्चर या डिटेंशन का सामना करना पड़ सकता है. अधिकतर मामलों में उस पर राष्ट्र की सुरक्षा से खिलवाड़ जैसी संगीन धाराएं लगती हैं. उसे लंबे समय तक हिरासत में रखा जाता है, और कई बार इसी दौरान उसकी मौत भी हो जाती है. 

क्यों छोड़ देते हैं उसके अपने देश

जैसे ही कोई नागरिक दुश्मन देश में भेद लेता पकड़ा जाए, देश एकदम से डिफेंसिव हो जाता है. वो तुरंत उसे जासूस बतौर पहचानने से मना कर देता है. डिनाएबिलिटी की ये शर्त मिशन से पहले ही साफ कर दी जाती है. अगर कोई देश लाइन से हटकर मान ले कि हां हमने फलां शख्स को तुम्हारे यहां भेद लेने भेजा था तो उसका कूटनीतिक नुकसान होगा. सारे ही देश जासूस रखते और प्लांट करते हैं लेकिन बाहरी लिहाज बनाए रखते हैं. 

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डिनायेबल एसेट बनाकर रखा जाता है

यह पूरी तरह इस बात पर तय रहता है कि जासूस कितने संवेदनशील या हल्के मिशन पर था. उसकी पहचान कितनी जाहिर हो चुकी है, और सबसे जरूरी चीज- दो देशों के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक मसले कितने गहरे या हल्के हैं. अक्सर जासूस डिनायेबल एसेट की तरह तैयार किए जाते हैं. यानी वे जानते होते हैं कि पकड़े जाने पर उनका कोई आगा-पीछा नहीं होगा. देश मुकर जाते हैं कि फलां हमारा आदमी है.

उन्हें पहले से ही इसकी मानसिक तैयारी कराई जाती है. उनके पास डिप्लोमेटिक पासपोर्ट नहीं होता. वे किसी दूतावास या आधिकारिक संस्था से जुड़े नहीं दिखते. वे नकली पहचान के साथ रहते हैं, जैसे कारोबारी, पत्रकार या कुछ और बनकर. साथ में एक कहानी होती है, जो वे हरदम रिपीट करते रहते हैं.

international law on spy arrest  photo Pixabay

पहचान खुल ही जाए तो क्या होता है

अगर मामला मीडिया में आ जाए, या जासूस की पहचान देश से जुड़ जाए, और मामला राजनीतिक रूप ले ले, तो देश को दखल देना पड़ता है, लेकिन सीधे नहीं, बल्कि बैकडोर से. 

ऐसे में कांसुलर एक्सेस मतलब दूतावास से संपर्क की मांग होती है. यह वियेना कन्वेंशन के तहत मिला अधिकार है, लेकिन तभी जब पकड़ा गया शख्स आम नागरिक माना जाए, न कि जासूस. 

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बैकचैनल सौदेबाजी होती है. इसके कई तरीके हो सकते हैं. जैसे बदले में किसी और कैदी को छोड़ा जाना. देश कोआर्थिक मदद देना. कई बार जासूसों की अदलाबदली भी होती है. लेकिन ये इतनी खुफिया होती है कि दशकों तक बात हाईली क्लासिफाइड ही रह जाती है. 

क्या बड़े लेवल तक जाता है मामला

कई बार देश मामले को इंटरनेशनल मंच तक ले जाता है, लेकिन ये बेहद कम होता रहा. जैसे कुलभूषण जाधव का मामला. साल 2016 में पाकिस्तान के ISI ने दावा किया कि जाधव रॉ एजेंट है, जो बलूचिस्तान और कराची में आतंकी कामों में लगा हुआ था. भारत ने उन्हें आम नागरिक मानते हुए बचाने की कोशिश शुरू कर दी. आम लोगों के लिए कांसुलर एक्सेस की छूट है. भारत ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान उन्हें ये सुविधा नहीं दे रहा. मामला इंटरनेशनल कोर्ट तक पहुंचा. कोर्ट ने भारत के पक्ष में कई बातें की, लेकिन कुछ ठोस मदद नहीं की. 

एक केस काफी अलग था. कोल्ड वॉर के समय दोनों देशों के बीच जासूसों की अदला-बदली हुई थी. साल 2010 में भी अमेरिका में पकड़ाई रूसी एजेंट एना चैपमेन सहित 10 एजेंटों को रूस भेजा गया. बदले में मॉस्को से भी अमेरिकी एजेंट्स को छोड़ा गया. अमेरिका ने एजेंटों को अंडरकवर प्रोफेशनल्स कहा, न कि जासूस. वहीं इजरायल का तरीका एकदम अलग रहा. वो अपने जासूसों के लिए नारा देता रहा- अलाइव ऑर डेड- ब्रिंग देम बैक. वो किसी भी कीमत पर अपने एजेंट्स को अपने देश वापस लाता है. 

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