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राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' से बढ़ी कांग्रेस की बार्गेनिंग पावर? तेजस्वी की दावेदारी पर चुप्पी के मायने क्या

बिहार की सत्ता से कांग्रेस साढ़े तीन दशक से बाहर है. अब पार्टी नेता राहुल गांधी ने 'वोटर अधिकार यात्रा' के जरिए दोबारा से खड़े होने की कोशिश की है. 16 दिन की यात्रा से कांग्रेस की 'बार्गेनिंग पावर' बढ़ गई है, जिसने आरजेडी की सियासी टेंशन बढ़ा दी है और अब सीट शेयरिंग में शह-मात का खेल होगा?

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बिहार में राहुल गांधी ने क्या बढ़ा दी तेजस्वी यादव की टेंशन (Photo-PTI)
बिहार में राहुल गांधी ने क्या बढ़ा दी तेजस्वी यादव की टेंशन (Photo-PTI)

बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के खिलाफ शुरू हुई कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' 16 दिन के बाद समाप्त होने जा रही है. लगभग 1300 किलोमीटर का सफर तय करते हुए 23 जिलों से होकर गुजरने के बाद सोमवार को पटना के गांधी मैदान में यह यात्रा इंडिया ब्लॉक के शक्ति प्रदर्शन के साथ समाप्त हो रही है.

राहुल गांधी ने एसआईआर को 'वोट चोरी' बताते हुए एक तरफ जहां चुनाव आयोग पर निशाना साधा, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी और उसके गठबंधन पर बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ी साजिश का आरोप लगाते हुए उन्हें घेरते हुए नज़र आए.

राहुल गांधी के साथ इस यात्रा में बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, वीआईपी के नेता मुकेश सहनी और माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य भी मौजूद रहे. राहुल और तेजस्वी एक ही गाड़ी में सवार होकर बिहार के अलग-अलग जिलों में घूमकर एनडीए के खिलाफ सियासी माहौल बनाने के साथ-साथ 2025 के चुनावी जंग जीतने की पटकथा लिखते नज़र आए. अब जब 'वोटर अधिकार यात्रा' समाप्त होने जा रही है, तो इस बात को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि यह 2025 में महागठबंधन के लिए कितना फायदेमंद होगी?

राहुल-तेजस्वी ने 110 सीटों को कवर किया
'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने महागठबंधन के नेताओं के साथ 1300 किलोमीटर से भी ज्यादा की दूरी तय की, जो 110 से ज़्यादा विधानसभा सीटों से होकर गुज़री. यात्रा की शुरुआत 17 अगस्त को सासाराम से हुई, जिसके बाद औरंगाबाद, गया, नवादा, नालंदा, लखीसराय, मुंगेर, भागलपुर, कटिहार, पूर्णिया, अररिया, सुपौल, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सीवान, छपरा और आरा होते हुए पटना में समाप्त होने जा रही है.

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राहुल-तेजस्वी ने जिन 110 सीटों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी यात्रा से कवर किया है, उनमें से लगभग 80 विधानसभा सीटों पर एनडीए के घटक दलों का कब्ज़ा है. महागठबंधन के पास केवल 30 सीटें ही हैं. इस तरह, एनडीए के मज़बूत गढ़ वाली सीटों पर राहुल-तेजस्वी ने यात्रा निकालकर न केवल चुनाव आयोग बल्कि बीजेपी और जेडीयू के खिलाफ भी सियासी माहौल बनाने की कोशिश की है.

कांग्रेस की बिहार में बढ़ी 'बार्गेनिंग पावर'
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने जिस तरह ज़मीन पर उतरकर पूरा अभियान चलाया, वैसा इसके पहले किसी अन्य राज्य में कांग्रेस की तरफ से होता नहीं दिखा है. कहा जा सकता है कि राहुल गांधी ने फ्रंट सीट पर बैठकर इस पूरी यात्रा को सफल बनाने का प्रयास किया, जबकि तेजस्वी यादव उनके साथ-साथ बैक सीट पर ही नज़र आए.

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि काफी समय बाद कांग्रेस बिहार की ज़मीन पर जीवंत नज़र आई है. बिहार में कांग्रेस के समर्थकों, उनके कैडर और नेताओं में एक नया जोश देखने को मिला है. अगर राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' को सफल माना जाए, तो यह बात लगभग तय है कि यात्रा के बाद जब सीट शेयरिंग को लेकर महागठबंधन में बातचीत आगे बढ़ेगी, तो कांग्रेस के हौसले पहले से ज़्यादा बुलंद नज़र आएंगे.

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2020 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस इस बार के चुनाव में हर सीट पर फूंक-फूंक कर अपनी दावेदारी कर रही है. 'वोटर अधिकार यात्रा' से कांग्रेस ने महागठबंधन के अंदर जिस तरह अपनी सियासी अहमियत को बढ़ाने का काम किया है, अब उसके बाद सीट शेयरिंग पर भी बातचीत के दौरान इसका असर देखने को मिल सकता है.

उत्तर बिहार बेल्ट जीतने का प्लान
बिहार के शाहाबाद इलाके में कांग्रेस, भाकपा माले और आरजेडी का प्रदर्शन पहले से भी बेहतर रहा है, लेकिन इस बार कांग्रेस ने यात्रा के दौरान सबसे ज़्यादा ध्यान उत्तर बिहार के लगभग आधा दर्जन ज़िलों पर दिया है. राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' उत्तर बिहार के 6 जिलों की कुल 23 विधानसभा सीटों से होकर गुज़री है. इस बेल्ट में ज़्यादातर सीटें ऐसी हैं, जहाँ कांग्रेस ने पिछले चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे थे, और आगामी चुनाव में कांग्रेस यहाँ अपनी दावेदारी मज़बूती से रख रही है.

राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान मिथिलांचल को साधने की योजना बनाई, जो एनडीए का मज़बूत गढ़ बना हुआ है. यात्रा मिथिलांचल के इलाके- दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण और मुज़फ्फरपुर जैसे जिलों से होकर गुज़री. इन 6 जिलों में 60 विधानसभा सीटें हैं, लेकिन उनमें से 23 विधानसभा इलाकों से राहुल की यात्रा निकली.

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मिथिलांचल में कांग्रेस का हाथ मज़बूत
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने 'वोटर अधिकार यात्रा' का जो रूट मैप बनाया था, वह बेहद सोच समझकर तैयार किया गया था. इन 23 विधानसभा सीटों में समीकरण कांग्रेस को मदद पहुँचाने वाले हैं. यहाँ दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा और मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है. बिहार में कांग्रेस फिलहाल इसी वोटर तबके को फोकस करके अपनी चुनावी रणनीति पर आगे बढ़ रही है.

मिथिलांचल के इलाके को एनडीए की मज़बूत राजनीतिक ज़मीन माना जाता है. इसके बावजूद राहुल गांधी ने इस पूरे इलाके में अपनी यात्रा को बेहद कूटनीतिक तौर पर तय किया. अगर दरभंगा ज़िले की बात करें, तो यात्रा दरभंगा ज़िले की चार सीटों- दरभंगा नगर, दरभंगा ग्रामीण, केवटी और जाले विधानसभा क्षेत्र से गुज़री. पिछले विधानसभा चुनाव में जाले सीट पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी.

मधुबनी ज़िले की चार सीटों से होकर गुज़री यात्रा, जिसमें 2020 में कांग्रेस ने फुलपरास सीट पर चुनाव लड़ा था और यहाँ कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी. राहुल की यात्रा का फुलपरास से गुज़रना यह बताता है कि कांग्रेस इन सीटों पर एक बार फिर से अपना दावा पेश कर रही है. कुछ ऐसा ही कुशेश्वर स्थान विधानसभा सीट का भी है.

2020 में यहाँ जेडीयू के शशि भूषण हजारी चुनाव जीते थे, तब कांग्रेस के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि, शशि भूषण हजारी के निधन के बाद 2021 में हुए उपचुनाव में आरजेडी ने इस सीट पर अपना उम्मीदवार दिया था. कांग्रेस भी इस सीट पर लड़ी, लेकिन वह चौथे नंबर पर रह गई. यहाँ भी आरजेडी और कांग्रेस के बीच पेच फँसा हुआ है.

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कांग्रेस की नज़र सीतामढ़ी ज़िले की उन तीन विधानसभा सीटों पर भी है, जहाँ फिलहाल एनडीए का कब्ज़ा है. रुन्नीसैदपुर, सीतामढ़ी और रीगा से राहुल गांधी की यात्रा गुज़री थी. कांग्रेस यहाँ भी अपने विकल्प तलाश रही है. पिछले विधानसभा चुनाव में रीगा से कांग्रेस प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे.

कांग्रेस का मिशन चंपारण
पश्चिम चंपारण की बेतिया और नौतन विधानसभा क्षेत्र से भी राहुल गांधी की यात्रा गुज़री. इन दोनों सीटों पर कांग्रेस पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थी. कांग्रेस ने पूर्वी चंपारण में भी अपनी पकड़ बढ़ाने के लिए राहुल की यात्रा को ढाका, चिरैया, मोतिहारी, नरकटिया, हरसिद्धि और सुगौली विधानसभा क्षेत्र से होकर निकाला.

'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान राहुल गांधी की मौजूदगी के सहारे कांग्रेस ने उत्तर बिहार में अपने आपको मज़बूत करने का दोतरफा प्लान तैयार किया है. एक तरफ एनडीए गठबंधन को चुनौती देने की कोशिश है, तो दूसरी तरफ महागठबंधन के अंदर अपने दावे को और भी ज़्यादा मज़बूत बनाने की. अब देखना होगा कि जब सीट शेयरिंग को लेकर महागठबंधन में बातचीत शुरू होगी, तो कांग्रेस अपने दावे को कितनी मज़बूती से रख पाती है.

तेजस्वी की चुप्पी के मायने क्या?
'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान राहुल गांधी के सामने कई बार बिहार के सीएम चेहरे को लेकर सवाल उठे. राहुल गांधी से जब भी मीडिया ने पूछा कि बिहार में इंडिया ब्लॉक की तरफ से सीएम का चेहरा कौन है, तो उस पर वह खामोश रहे. तेजस्वी यादव तो राहुल गांधी को पीएम का उम्मीदवार तक बता चुके हैं, लेकिन कांग्रेस ने इस पर चुप्पी साध रखी है.

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सवाल यह है कि क्या यह रणनीति सिर्फ सीट बंटवारे में ज़्यादा मोलभाव करने के लिए है, या फिर राहुल गांधी के दिमाग में कोई और चतुर रणनीति है? इंडिया गठबंधन में चेहरे को लेकर अब भी लुका-छिपी का खेल जारी है. 'वोटर अधिकार यात्रा' करने के बाद भी जब तेजस्वी के नाम पर कांग्रेस ने कोई संकेत नहीं दिया, ऐसे में तेजस्वी ने खुद ही सीएम उम्मीदवारी का दावा पेश कर दिया, तो अखिलेश यादव ने भी उनके चेहरे पर मुहर लगा दी.

कांग्रेस बिहार में बिना सीएम चेहरे के चुनाव लड़ने की रणनीति बना रही है, जबकि आरजेडी खुलकर तेजस्वी के नाम पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है. इसे कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. तेजस्वी के नाम का ऐलान करके कांग्रेस गैर-यादव ओबीसी और सवर्ण वोटों को नाराज़ नहीं करना चाहती. कांग्रेस को लगता है कि अगर तेजस्वी को चेहरा घोषित कर चुनाव लड़ते हैं, तो दलित-ओबीसी और सवर्ण वोटर नाराज़ न हो जाएँ. इसीलिए वह सस्पेंस बनाए रख रही है और सीएम चेहरे पर खामोशी अपनाए हुए है.

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