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उमर अब्दुल्ला का मोदी सरकार से रिश्ता अपनी जगह, उनका गुजरात मॉडल क्यों अच्छा लगने लगा?

उमर अब्दुल्ला के मुंह से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की तारीफ में गुजरात मॉडल की झलक साफ नजर आती है, और ऐन उसी वक्त वो ममता बनर्जी के प्रति आभार भी जताते हैं - लेकिन सिंधु जल संधि का नाम लेकर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर देते हैं - आखिर उमर अब्दुला राजनीतिक के किस रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं?

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उमर अब्दुल्ला के लिए केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के साथ साथ ममता बनर्जी के साथ भी खड़े रहना कितना मुश्किल होगा? (Photo: PTI)
उमर अब्दुल्ला के लिए केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के साथ साथ ममता बनर्जी के साथ भी खड़े रहना कितना मुश्किल होगा? (Photo: PTI)

उमर अब्दुल्ला ने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की दिल खोलकर तारीफ की है. गुजरात दौरे पर पहुंचे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है, मैंने सोचा नहीं था कि ये प्रतिमा इतनी भव्य होगी. उमर अब्दुल्ला ने साबरमती फ्रंट सहित कई जगहों का दौरा किया है, और सभी की वैसे ही सराहना की है. 

सुबह की सैर के लिए अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट उमर अब्दुल्ला ने उसे सबसे खूबसूरत जगहों में से एक बताया है. उमर अब्दुल्ला के गुजरात दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी जाहिर की है. सोशल साइट X पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री की पोस्ट शेयर करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है, उमर अब्दुल्ला के स्टैच्यू-ऑफ-यूनिटी दौरे से बाकियों को भी देश के विभिन्न हिस्सों की यात्रा करने की प्रेरणा मिलेगी. 

उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में अपनी राजनीति की नई शुरुआत की है. जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य वाले दौर में भी मुख्यमंत्री रहे उमर अब्दुल्ला फिलहाल केंद्र शासित प्रदेश के सीएम हैं, और ये हालात से समझौता भर नहीं लगता. ये तो हकीकत को स्वीकारकर नये सिरे से आगे बढ़ने जैसा है, और ऐसा करने के लिए हिम्मत की जरूरत होती है. क्या ये सब इंजीनियर रशीद से लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद बदला है. क्योंकि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म किये जाने के बाद तो वो चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार न थे.

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लेकिन लोकसभा चुनाव की हार के बाद विधानसभा चुनाव भी लड़े, और मुख्यमंत्री भी बने. ध्यान देने वाली बात ये है कि केंद्र सरकार से भी अच्छे संबंध बनाकर चल रहे हैं, और ऐन उसी वक्त वो पश्चिम बंगाल जाकर मुश्किल वक्त में साथ देने के लिए ममता बनर्जी के प्रति भी आभार प्रकट करते हैं, और गुजरात मॉडल की भी तारीफ करते और मोदी से भी तारीफ करा लेते हैं.

'गुजरात मॉडल' के फैन कैसे हो गये उमर अब्दुल्ला

गुजरात में जो भी काम हुए हैं, विकास के गुजरात मॉडल का ही हिस्सा हैं. और, चाहे वो स्टैच्यू ऑफ यूनिटी हो, साबरमती रिवर फ्रंट हो या जहां जहां भी उमर अब्दुल्ला पहुंचें हैं. ऐसा या तो विदेशी सैलानी करते हैं, या बीजेपी समर्थक नेता और कार्यकर्ता - देश की राजनीति में दूसरी छोर पर खड़े उमर अब्दुल्ला ऐसा करने वाले पहले विपक्षी नेता होंगे. 

उमर अब्दुल्ला इससे पहले अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट पर मॉर्निंग वॉक करते नजर आए थे. उन्होंने साबरमती रिवरफ्रंट को सबसे खूबसूरत जगहों में से एक बताया. रिवरफ्रंट पर दौड़ लगाने की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि एक टूरिजम प्रोग्राम के सिलसिले में अहमदाबाद में रहते हुए मैंने यहां होने का फायदा उठाया और प्रसिद्ध साबरमती रिवरफ्रंट सैरगाह पर सुबह दौड़ लगाई.

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उमर अब्दुल्ला ने चरखा चला कर गांधीगीरी भी दिखाई, लेकिन स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को लेकर जो कहा है, वो कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है. कहते हैं, देखकर ही समझा जा सकता है कि ये किस सोच, और भाव से बनाई गई है... सरदार वल्लभभाई पटेल, जिन्हें हम आयरन मैन ऑफ इंडिया के नाम से जानते हैं, उनके लिए ये सच्ची श्रद्धांजलि है... ये नए भारत की एक बड़ी पहचान है.

नर्मदा डैम परियोजना की तारीफ करते हुए उमर अब्दुल्ला ने उसे गुजरात की जीवनरेखा बताया है. कहा है, सोचिए, डैम के जरिए कच्छ जैसे इलाकों में पानी पहुंचाया जा रहा है, जहां कभी सूखे और रेत के अलावा कुछ नहीं था... अब वहां खेती हो रही है... लोगों की जिंदगी बदल रही है.

जम्मू-कश्मीर के हालात का जिक्र करते हुए उमर अब्दुल्ला कह रहे हैं, हमारे लिए दुर्भाग्य की बात रही है कि जम्मू-कश्मीर में हम ऐसे प्रोजेक्ट की कल्पना भी नहीं कर सके... हमें कभी पानी रोकने की इजाजत नहीं दी गई... अब जब सिंधु जल संधि को रोका गया है, तो उम्मीद है कि भविष्य में जम्मू-कश्मीर में भी ऐसे प्रोजेक्ट्स होंगे, जिससे न तो बिजली की कमी होगी और न ही पीने के पानी की.

और इस तरह, उमर अब्दुल्ला केंद्र की बीजेपी सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ के साथ ही कांग्रेस को भी टार्गेट करते हैं - सिंधु जल संधि का नाम लेकर आखिर वो क्या समझाने की कोशिश कर रहे हैं?

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उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर चुनाव राहुल गांधी के साथ गठबंधन करके लड़े थे, लेकिन नतीजे आने के बाद कुछ मतभेद और तनाव की स्थिति पैदा हो गई. कांग्रेस गठबंधन में तो बनी हुई है, लेकिन सरकार में शामिल नहीं हुई. उमर अब्दुल्ला का रुख कांग्रेस के प्रति कोई अच्छा नहीं देखने को मिला है. ईवीएम को लेकर भी उमर अब्दुल्ला कांग्रेस नेतृत्व की कड़ी आलोचना कर चुके हैं. 

ममता के साथ, मोदी के साथ भी, लेकिन कांग्रेस के?

उमर अब्दुल्ला ने तो जम्मू-कश्मीर चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही इशारा शुरू कर दिया था कि वो शासन में केंद्र के साथ टकराव का रास्ता नहीं अपनाने जा रहे हैं. नाम तो नहीं लिया था, लेकिन इशारा दिल्ली मॉडल की तरफ ही था. तब अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, जो शुरू से ही केंद्र सरकार से दो-दो हाथ करते रहते थे. मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, और आखिरकार केंद्र सरकार ने दिल्ली सेवा बिल लाकर पूरी व्यवस्था ही बदल डाली. जम्मू-कश्मीर चुनाव में एक सीट अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को भी मिली थी, जिसने उमर अब्दुल्ला की सरकार को सपोर्ट भी किया था, लेकिन बाद में समर्थन वापस ले लिया. 

उमर अब्दुल्ला के गुजरात दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी एक्स पर लिखते हैं, कश्मीर से केवड़िया तक... उमर अब्दुल्ला को साबरमती रिवरफ्रंट पर दौड़ का आनंद लेते और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का दौरा करते हुए देखकर अच्छा लगा... स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की उनकी यात्रा एकता का एक महत्वपूर्ण संदेश देती है... और ये हमारे देशवासियों को भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा करने के लिए प्रेरित करेगा.

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गुजरात दौरे पर उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से पहुंचे हैं. ट्रैवल एंड टूरिज्म फेयर में हिस्सा लेने के बाद गांधीनगर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा, महाराष्ट्र और गुजरात, घरेलू पर्यटन के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य हैं, और हम सिर्फ ये संदेश लेकर आए हैं कि जम्मू-कश्मीर पर्यटन के लिए पूरी तरह खुला है.

गुजरात में मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल से मिलने के साथ ही, उमर अब्दुल्ला ने कोलकाता के राज्य सचिवालय नबन्ना में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की, और मुश्किल वक्त में उनके सपोर्ट के लिए आभार जताया. असल में 13 जुलाई को शहीद दिवस मनाने से रोकने के लिए नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं को प्रशासन ने नजरबंद कर दिया था, जिस पर ममता बनर्जी ने शर्मनाक और अस्वीकार्य बताया था. 

उमर का कहना था, हमारे लिए 2025 आसान नहीं रहा... पहलगाम हमले से पहले और उसके बाद... लेकिन, अब एक नई उम्मीद की किरण नजर आ रही है. उमर अब्दुल्ला का दावा है कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद घाटी में पर्यटन एक बार फिर तेजी से पटरी पर लौट रहा है.

उमर अब्दुल्ला एक ही वक्त पर मोदी और ममता बनर्जी दोनों को साधने की कोशिश कर रहे हैं. क्या उमर अब्दुल्ला भी बीते दिनों के नवीन पटनायक और जगनमोहन रेड्डी वाली लाइन पर बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, बस एक फर्क ये है कि वे दोनों अक्सर दूरी बनाने का इम्प्रेशन देते थे, लेकिन बात हमेशा बीजेपी की पक्ष वाले करते थे - क्या जम्मू-कश्मीर की राजनीति एक बार फिर महबूबा मुफ्ती और बीजेपी के गठबंधन की तरह दो अलग अलग ध्रुवों के मिलन की तरफ फिर से बढ़ रही है?

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