उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) ने 16 अक्टूबर 2024 को जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उन्हें उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने शपथ दिलाई. अनुच्छेद-370 और 35ए हटने के बाद केंद्र शासित राज्य जम्मू कश्मीर के वे पहले मुख्यमंत्री बने (CM Jammu-Kashmir). वे जम्मू और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले, उमर अब्दुल्ला ने जम्मू और कश्मीर में 'INDIA' गठबंधन के तहत अन्य राजनीतिक दलों के साथ सीट साझा करने के समझौते के लिए अनिच्छा दिखाई और एनसी पर कश्मीर क्षेत्र की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने पर जोर दिया.
5 जनवरी 2009 को कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन में सरकार बनाने के बाद वह जम्मू-कश्मीर राज्य के 11वें और सबसे युवा मुख्यमंत्री और सबसे कम उम्र के लोकसभा सदस्य बने.
उमर 1998 में लोकसभा सदस्य के रूप में राजनीति में शामिल हुए थे. यह उपलब्धि उन्होंने बाद के तीन चुनावों में दोहराई और केंद्रीय मंत्री भी बने रहे. उन्होंने 2002 में अपने पिता से नेशनल कॉन्फ्रेंस की कमान संभाली, हालांकि 2002 के राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान गांदरबल की अपनी सीट हार गए और चार साल बाद इसी तरह उनकी पार्टी को भी राजनीतिक जनादेश मिला. उन्होंने एक बार फिर उसी सीट से चुनाव लड़ा और 2008 के कश्मीर राज्य चुनाव में जीत हासिल की.
वह 14वीं लोकसभा के सदस्य थे, जो भारत के जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे. वह 23 जुलाई 2001 से 23 दिसंबर 2002 तक अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री थे. उन्होंने अक्टूबर 2002 में एनडीए सरकार से इस्तीफा दे दिया.
कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि कश्मीर क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण और टनलों के काम की वजह से सड़कें थोड़ी खराब हालत में हैं. श्रीनगर से राजौरी तक के बीच सड़क का हाल देखा गया है और वहां चल रहे परियोजनाओं के चलते सड़कों की नियमित देखभाल जरूरी है.
जम्मू-कश्मीर में बडगाम सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस की हार के बाद श्रीनगर के एनसी सांसद आगा सैयद रुहुल्लाह मेहदी ने कुरान की आयत साझा कर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर परोक्ष रूप से तंज किया और कहा कि अहंकार विनाश का कारण बनता है, जबकि विनम्रता और आत्मचिंतन ही सही रास्ता है.
जम्मू-कश्मीर की 2 विधानसभा सीटों नगरोटा और बडगाम अक्टूबर 2024 से खाली हैं. दरअसल मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला दो सीटों से चुनाव जीते थे. लेकिन उन्होंने 21 अक्टूबर, 2024 को गांदरबल सीट को अपने पास रखी थी और बडगाम सीट छोड़ दी थी. इस वजह से इस सीट पर चुनाव हुआ.
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए वो कम है. निर्दोष लोगों की मौत को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता है. सभी को ये समझने की जरूरत है कि जम्मू-कश्मीर में रहने वाले सभी लोग आतंकवादी नहीं हैं. न ही सभी लोग आतंकवाद का समर्थन करते हैं.
2024 के विधानसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला ने बडगाम से जीत दर्ज की थी. बाद में उन्होंने यह सीट छोड़ गंदरबल से विधायक बने रहना चुना. अब बडगाम में यह खाली सीट पार्टी की साख का सवाल बन चुकी है.
जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला सरकार को एक साल ही हुआ है, लेकिन न ही वे अपने नेताओं को संभाल पा रहे हैं और न सहयोगी कांग्रेस के साथ बैलेंस बनाकर चलते देखे जा रहे हैं. उमर की पार्टी नेशनल कॉफ्रेंस के दो सांसदों ने बागी तेवर अपना रखा है. ऐसे में सीएम उमर कैसे सियासी संकट से बाहर निकलेंगे?
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने राज्यसभा चुनाव में मिली हार पर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने सहयोगियों पर धोखा देने का आरोप लगाते हुए कहा, 'ये लोग हमारे साथ रह के हमारी मीटिंग में शामिल होके हमारा खाना खाने के बाद बीजेपी के साथ घुल मिल गए.' उमर ने अफ़सोस जताते हुए कहा कि आखिरी समय पर कुछ लोगों ने उन्हें धोखा दिया, जिनके नाम अब लगभग सभी जानते हैं.
जम्मू कश्मीर की चार राज्यसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में एक सीट पर बीजेपी उम्मीदवार सत शर्मा को जीत मिली है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की जीत से सीएम उमर अब्दुल्ला हैरान हैं, वहीं सवाल उन्हीं की पार्टी की रणनीति पर उठ रहे हैं. क्यों?
पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था. इसके बाद से जम्मू-कश्मीर में हुआ यह पहला राज्यसभा चुनाव है.
जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने केंद्र शासित प्रदेश का राज्य का दर्जा जल्द बहाल होने की उम्मीद जताई है. उन्होंने कहा कि राज्य का दर्जा मिलने से चुनी हुई सरकार को अधिक अधिकार मिलेंगे और जनता से किए गए वादे पूरे होंगे. साथ ही कहा कि उपचुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस बडगाम से चुनाव लड़ेगी, जबकि नगरोटा सीट पर कांग्रेस को समर्थन दिया जाएगा.
जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला सरकार के एक साल पूरे होने पर आजतक ने ग्राउंड रिपोर्ट ये जानने की कोशिश की कि सरकार के प्रदर्शन को लेकर जनता की कितनी उम्मीदें पूरी हुई और कौन-सी रह गई अधूरी. देखें वीडियो.
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कॉफ्रेंस के रिश्ते पर सवाल उठने लगे हैं. उमर अब्दुल्ला के अगुवाई वाली सरकार में पहले कांग्रेस को एंट्री नहीं मिली और अब राज्यसभा चुनाव में सेफ सीट की उम्मीद पूरी नहीं हो सकी. ऐसे में कांग्रेस और एनसी की कैसी यारी है, जिसमें कांग्रेस की कोई भागीदारी नहीं है?
उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि वह केंद्र शासित प्रदेश के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा (Statehood) जल्दी बहाल कराने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ गठबंधन करने के बजाय अपने पद से इस्तीफा देना पसंद करेंगे.
जम्मू-कश्मीर में बिगड़ते हालात पर चिंता व्यक्त की गई है. एक वक्ता ने कहा कि 'हालात बिगड़ने में समय नहीं लगता' और बेगुनाह लोगों का खून नहीं बहना चाहिए. उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखने पर जोर दिया. वक्ता ने कहा कि स्टेटहुड जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ केंद्र सरकार का वादा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट में भी दोहराया गया है.
लद्दाख प्रशासन ने सोनम वांगचुक को उनके गांव से गिरफ्तार किया, लेह में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन के 2 दिन बाद ये एक्शन हुआ. उनकी पत्नी और जम्मू-कश्मीर के नेताओं ने गिरफ्तारी को गलत और दुर्भाग्यपूर्ण बताया. वहीं, आम आदमी पार्टी ने जंतर-मंतर पर आज शाम 7 बजे विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है.
जम्मू-कश्मीर की चार राज्यसभा सीटों पर चार साल बाद चुनाव हो रहे हैं, जिसके लिए 24 अक्टूबर को वोटिंग है. विधानसभा में विधायकों की संख्या के आधार पर तीन सीटें नेशनल कॉफ्रेंस आसानी से जीत लेगी, लेकिन चौथी सीट पर मुकाबला काफी रोचक हो सकता है. ऐसे में निगाहें राज्य के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा पर टिकी हुई हैं.
भारत और पाकिस्तान के मैच को लेकर देश में विरोध जारी है. विपक्षी पार्टियां इस मैच पर सवाल उठा रही हैं और केंद्र सरकार पर हमला बोल रही हैं. AAP, शिवसेना यूबीटी से लेकर जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं ने इसे शहीदों का अपमान बताया है.
जम्मू-कश्मीर में AAP विधायक मेहराज मलिक पर लगे PSA ने सियासी भूचाल ला दिया है. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और कांग्रेस सभी अरविंद केजरीवाल के सपोर्ट में बीजेपी के खिलाफ खड़े हो गए हैं - क्या बीजेपी से कोई राजनीतिक चूक हो गई है?
हजरतबल दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिह्न से तोड़ फोड़ करने वालों को ऑपरेशन सिंदूर के बाद कश्मीर में आई शांति रास नहीं आ रही है. दरअसल प्रदेश के सीएम उमर अब्दुल्ला और पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती को राजनीति के लिए अशांत कश्मीर चाहिए. क्योंकि, इस विवाद में इससे बेदम दलील नहीं हो सकती कि अशोक चिन्ह से मुसलमानों की धार्मिक भावना आहत होती है.
श्रीनगर की हज़रतबल दरगाह में राष्ट्रीय चिह्न तोड़ने के मामले में पुलिस ने 26 लोगों को हिरासत में लिया. वहीं, कई दलों ने धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक लगाने का विरोध किया. महबूबा मुफ़्ती ने इसका विरोध किया, जबकि उमर अब्दुल्ला ने इसकी ज़रूरत पर सवाल उठाए.
श्रीनगर की हजरतबल दरगाह पर लगे राष्ट्रीय चिन्ह को तोड़े जाने की घटना ने राजनीति और समाज दोनों में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है. इस मामले में पुलिस ने उपद्रवियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है, जबकि दूसरी तरफ इस मुद्दे पर नेताओं के बयानबाज़ी से सियासत गरमा गई है.